उर्दू भाषा के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए भारत-श्रीलंका के बीच साहित्यिक समझौता

चारमीनार एजुकेशनल ट्रस्ट और सबोधी श्रीलंका की ओर से साहित्यिक सम्मेलन व मुशायरा – प्रोफेसर एस.ए. शकूर, प्रोफेसर मसूद अहमद और श्रीलंका के लेखकों ने किया संबोधन

हैदराबाद- (अनीस आर खान)

चारमीनार एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट और सबोधी श्रीलंका के संयुक्त तत्वावधान में एवान-ए-अहमद, मल्कापेट में “इंडो-लंका कल्चरल, लिटरेचर एंड पोएट्री” के सहयोग से एक अनोखी साहित्यिक महफ़िल और मुशायरा 16 जुलाई को आयोजित किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता दायरा-ए-मआरिफ के निदेशक प्रोफेसर एस.ए. शकूर ने की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि उर्दू एक सभ्यता है, और लंबे समय तक इसकी बादशाहत आज भी कायम है। खासकर हैदराबाद-दक्खन में इसका गहरा प्रभाव रहा है और अब यह एक वैश्विक भाषा बन चुकी है। दुनिया के अनेक देशों में उर्दू बोली और समझी जाती है।

उन्होंने इस आयोजन के लिए प्रोफेसर मसूद अहमद को दिल से बधाई दी और कहा कि प्रो. मसूद ने उर्दू भाषा और साहित्य को केवल हैदराबाद या तेलंगाना तक सीमित नहीं रखा, बल्कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से अन्य देशों के लोगों को जोड़ने का कार्य कर प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा दिया है।

यह भी उल्लेखनीय है कि यह विशेष साहित्यिक कार्यक्रम श्रीलंका में भी ऑनलाइन प्रसारित किया गया, और वहां के प्रतिभागियों ने भी इसे खूब सराहा। प्रो. शकूर ने आगे कहा कि किसी भी भाषा की कविता से उस दौर की परंपराओं का पता चलता है। उर्दू में की गई शायरी बेहद दिलचस्प और मीठी है, जिसे पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि उर्दू की ग़ज़ल एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है और उर्दू की विशेषता यह है कि यह किसी में भेदभाव नहीं करती। उर्दू आज एक सांस्कृतिक सेतु की भूमिका निभा रही है।

प्रमुख अतिथियों में जद्दा से जनाब आरिफ कुरैशी, जनाब हबीब नसीर, जनाब मुजफ्फर अहमद और गवाह वीकली के मुख्य संपादक डॉ. फाज़िल हुसैन प्रोवेज़ शामिल रहे।

प्रोफेसर मसूद अहमद ने सभी अतिथियों और शायरों का स्वागत करते हुए कहा कि जीवन में संबंधों का बहुत महत्व होता है। यदि ये संबंध साहित्यिक और सामाजिक स्तर पर हों, तो जीवन और भी सुखद हो जाता है। उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ समाज में हमें सभी के साथ मिलकर जीना चाहिए – यही जीवन है और यही सफलता है।

प्रो. मसूद ने बताया कि चारमीनार एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट और सबोधी कोलंबो, श्रीलंका के बीच एक साहित्यिक समझौता हुआ है, जिसके तहत कोलंबो में उर्दू ग़ज़ल के शौकीनों के लिए एक छह महीने का ऑनलाइन प्रमाणपत्र कोर्स शुरू किया जा रहा है – उर्दू ग़ज़ल के बुनियादी उसूल। यह कोर्स सप्ताह में एक बार होगा और इसके बाद दोनों संस्थाओं द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिया जाएगा। इस घोषणा का हैदराबाद और कोलंबो दोनों स्थानों पर मौजूद श्रोताओं ने तालियों की गूंज के साथ स्वागत किया।

प्रो. मसूद ने यह भी कहा कि वे शायरी की बुनियादी संरचना जैसे काफिया, रदीफ, मतला, बह्र और मक़्ता के बारे में लोगों को अवगत कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य उर्दू के प्रचार-प्रसार में अधिक से अधिक योगदान देना है। इस दिशा में उर्दू पर सेमिनार, कॉन्फ्रेंस और अन्य गतिविधियाँ की जाएंगी, ताकि उर्दू प्रेमियों को जोड़ा जा सके, चाहे वे भारत से हों या किसी और देश से। यदि किसी को उर्दू से प्रेम है, तो हम उस प्रेम को बांटना चाहते हैं।

प्रो. मसूद अहमद ने आगे कहा कि भले ही आज उर्दू के लिए अनेक संस्थाएं कार्य कर रही हैं, लेकिन अभी भी और अधिक प्रयासों की जरूरत है।

डॉ. इर्शाद बल्खी (प्रमुख, मक्तब-ए-सूफ़िया, हैम्बर्ग, जर्मनी) ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि हमारा उद्देश्य भी यही है कि उर्दू से भारत, श्रीलंका ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी रिश्ते मजबूत हों। उन्होंने कहा कि सूफ़िया ने दिलों को जोड़ा है, भाषा और सोच अलग हो सकती है, लेकिन सकारात्मक सोच ही इंसानों को आगे ले जाती है। उन्होंने प्रो. मसूद अहमद की उर्दू-सेवा की सराहना करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को उर्दू से जोड़ना जरूरी है। इससे समाज में बेहतर और स्वस्थ माहौल बनेगा।

डॉ. थमीरा मंजू (चेयरमैन, सबोधी श्रीलंका) ने भारत-श्रीलंका के साहित्यिक संबंधों को गर्व की बात बताया और मातृभाषा के प्रचार-प्रसार की प्रतिबद्धता व्यक्त की। डॉ. अमरा श्री विक्रमसिंघे (सीनियर एडवाइजर, सबोधी कोलंबो) और जनाब सराज अंसारी (डायरेक्टर, QPL, दोहा-कतर) ने भी ऑनलाइन शामिल होकर उर्दू भाषा की महत्ता और उपयोगिता पर प्रकाश डाला और इसे पूरी मानवता की मीठी भाषा बताया।

जनाब मोहम्मद हुसामुद्दीन रियाज़ ने मुशायरे में उपस्थित शायरों और वक्ताओं से अपील की कि वे मोबाइल फोन पर देखकर शायरी पढ़ने की जगह कागज़ या डायरी से पढ़ें। उन्होंने कहा कि अब एक प्रवृत्ति बन गई है कि चाहे छोटा या बड़ा मुशायरा हो, अधिकांश शायर मोबाइल पर देखकर पढ़ते हैं – यह अशोभनीय और अनुचित प्रतीत होता है। तकनीक का उपयोग करें, लेकिन उर्दू लेखन की आदत खत्म न करें।

मुशायरे की अध्यक्षता मखदूम अदबी अवार्ड से सम्मानित मशहूर शायर डॉ. फारूक शकील ने की। संचालन डॉ. लतीफुद्दीन लतीफ ने किया और इस दौरान उन्होंने प्रो. मसूद अहमद की साहित्यिक सेवाओं की जमकर सराहना की और कहा कि उन्होंने उर्दू के वैश्विक प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया है – जो सराहनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।

मुशायरे में डॉ. फारूक शकील, प्रो. मसूद अहमद, जनाब समीउल्लाह हुसैनी, सरदार बलबीर सिंह, जनाब हसन उमर कादरी, जनाब अमीनुद्दीन (उर्दू न्यूज़, जद्दा), जनाब सुलेमान सिद्दीकी एतबार, शायर तमन्ना, प्रो. अरजुमंद बानो, एलिजाबेथ कुरियन मोना, सबीहा तबस्सुम, आरज़ू महक, जनाब रहीम रियाज़ (मुंबई), जनाब नवीद जाफ़री, जनाब जहांगीर क़यास, जनाब खा़दम रसूल आइनी, जनाब शकील ज़हीर आबादी और जनाब मुइन अफरोज़ आदि ने अपने कलाम पेश किए।

हास्य-व्यंग्य शायरों – जनाब शाहिद अदीली, फरीद सहर और लतीफुद्दीन लतीफ – ने अपने मज़ाहिया शेरों से महफ़िल को हंसी से लबालब कर दिया।

अध्यक्ष डॉ. फारूक शकील ने अंत में कहा कि प्रो. मसूद अहमद ने केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया, बल्कि एक देश को दूसरे देश से जोड़ने का महान कार्य भी किया है। उन्होंने उर्दू प्रेम और इसके प्रचार के लिए किए जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की।

प्रो. मसूद ने अंत में डॉ. फारूक शकील और डॉ. शाहिद अदीली का गुलपोशी और शालपोशी कर उन्हें उर्दू सेवा के लिए बधाई दी।