लोकतंत्र से गायब होता लोक और हमारी नागरिकता

आसिफ सईद

जब कश्मीर से धारा 370 ख़त्म किया जाता है और वहां गवर्नर राज लागू किया जाता है या दिल्ली की चुनी हुई सरकार के सर पर एक लेफ्टिनेंट गवर्नर को बैठा दिया जाता है, तो दरअसल जनमत को जूतों तले रौंद दिया जाता है । ऐसे फ़ैसले राजनीतिक प्रतिशोध के लिए भले ही लिए जाते हों, लेकिन ये हमारी नागरिकता के बोध को कम करती हैं।

विभिन्न सांविधानिक स्थितियों या बदले की भावना से प्रेरित होकर कई बार विभिन्न राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, लेकिन जनमत की पुनर्बहाली के लिए एक साल के अंदर चुनाव करवाना अनिवार्य है । यह हर सरकार का सांवैधानिक कर्तव्य है, जिसके बिना लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं है। जब एक चुनी हुई सरकार को साज़िशन शक्ति विहीन कर दी जाती है, तो ये उस सरकार या उसके मुखिया का अपमान नहीं है, वरन उस राज्य के प्रत्येक नागरिक का अपमान है । नागरिकता साबित करने का भार जब देश के नागरिकों पर ही होता है, तब भी ये हमारी नागरिकता का क्षय है । हम सरकार को अपना नागरिक चुनने का अधिकार देते हैं ।

दिल्ली या कश्मीर में जो कुछ हुआ वह इसी कोशिश की एक बानगी है । इन राज्यों के नागरिकों को यह साबित करना होगा कि वे अपनी नागरिकता को अक्षुण्ण रखने के लिए किस हद तक लड़ाई कर सकते हैं । केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं, जहां कश्मीर का मसला अभी तक लंबित है । फ़ैसला क्या आएगा सब को पता है, लेकिन कब आएगा किसी को नहीं । संसद सिर्फ़ नागरिकता ख़त्म करने की संस्था नहीं बन गई है, यह जनप्रतिनिधियों के सांविधानिक अधिकारों की हत्या का औज़ार भी बन गई है, जैसा कि किसान बिल राज्य सभा में पारित होने के समय दिखा । पिछले महीने बिहार विधानसभा जो कुछ हुवा , विपक्षी दल के विधायकों यहां तक की महिला विधायकों को जिस बरबर तरीके से पीटा गया और विधान सभा के बाहर लाया गया, इसे भी इसी दिशा में एक कदम माना जाना चाहिए।

संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह हमारी नागरिकता का खून निर्लज्ज हो कर सरकार के द्वारा किया जा रहा है, और सड़कें सूनी हैं । डॉक्टर लोहिया ने जो नारा दिया था कि जब सड़कें सूनी हो जाती हैं तब संसद आवारा हो जाती हैं, वह भली भांति चरितार्थ हो रहा है। आज फ़ासिस्ट पूँजीपति संसदीय प्रणाली पर डाका डालकर सत्ता नशीं हैं । इनके ख़िलाफ़ आप न संसद, न विधानसभा और न ही कोर्ट में लड़ कर जीता जा सकता है ये बात बिलकुल दूध और पानी की तरह साफ़ और कड़वी है। किसानों से सीखने की जरुरत है कि कैसे सड़क पर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जाती है । इससे पहले नागरिकता कानून के विरोध में जिस तरह से क्षात्रों और महिलाओं खास तौर से मुस्लिम महिलाओं ने जिस तरह से शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध दर्ज़ कराया वो बेशक बधाई के पात्र हैं। पूरी दुनिया में लोगों ने उनके बारे में बात की और सराहा लेकिन अफ़सोस उस वक़्त हुवा जब बाकी लोगों ने जिस तरह से साथ देना चाहिए था वो नहीं किया लोगों ने।

अभी भी राज्यों के चुनाव में सबसे बड़े दल ने अपने मैनिफेस्टो में अलग अलग राज्यों के लिए अलग अलग वादे किये हैं। जैसे कि असम में नागरिकता कानून की बात नहीं की है नाही बीफ के बारे में कोई बात की बल्कि बीफ को राष्ट्रीय आहार बताया है। वहीँ पश्चिम बंगाल में नागरिकता कानून और एनआरसी की बात की है साथ ही गो हत्या पर प्रतिबंध लागाने की बात कर रही है। बीजेपी तमिल नाडु में जो ऐडीएमके के साथ गठबंधन में है, चुनाव में गो हत्या पर प्रतिबंध की बात कर रही है वहीँ ऐडीएमके एनआरसी का विरोध कर रही है। केरल में बीजेपी नआरसी की बात कर रही है और गो हत्या पर प्रतिबंध की कोई बात नहीं करती है। जो पार्टी एक देश एक कानून का बड़े जोर शोर से बात करे वो चुनाव में एक ही विषय पर अलग अलग राज्यों में अलग अलग बात कर रही है। वो इस लिए कर पा रही है क्योंकि उसे आप नागरिक नहीं बल्कि मानसिक गुलाम बना दिया है धर्म का अफीम दे दे कर। सोशल मीडिया खास तौर से व्हाट्सप्प ने इसमें काफी अहम् भूमिका निभाई है।

लोकतंत्र का अंतिम मुखौटा, यानि संसदीय प्रणाली में सेँध लग चुका है। अब वो काफी बदबूदार भी हो चुका है। न हमारे वोट का कोई अर्थ है , न हमारे अधिकारों का। एक अज्ञात भय से मुँह पर पट्टियाँ बाँध कर मृत्यु के इस मौन जुलूस में शामिल हो कर अपने को क़ानून सम्मत नागरिक दिखाने के ढोंग से बहार निकलने में ही समाज और देश की भलाई है। समाज में खास तौर से राजनीती में जिस तरह का दाव पेच अभी चल रहा है निश्चित रूप से वो देश या देश के नागरिकों के हित में नहीं है। यही समय है अपने नागरिक होने का सबूत देने का। देश ने बहुत सारे मुददों की लड़ाई सड़कों पे लड़ी है खास तौर से इंदिरा गाँधी के इमरजेंसी के खिलाफ भी लोगों ने सड़कों पे ही लड़ाई लड़ी और कामयाब भी हुए। ये बहुत सही समय है जब जन आंदोलन के महत्व को समझा जाये और उसे सही दिशा में सपोर्ट किया जाए तभी हम अपने नागरिकता के क्षय होने पे रोक लगा सकते हैं।