हाथरस की बेटी मनीषा और परदादी होलिका में समानताएं

सिद्धार्थ रामु

कल शाम एक अनिवार्य दवा की खोज में घर से निकाला। अधिकांश मेडिकल स्टोर्स बंद थे। इस उम्मीद में कि मोहल्ले के भीतरी हिस्सों में कोई छोटी-मोटी दवा की दुकान खुली मिल सकती है, उसी दौरान धार्मिक अनुष्ठान और पुरोहित की उपस्थिति में होलिका दहन किया जा रहा था और उसका उल्लास मनाया जा रहा था और पुरोहित दान-दक्षिणा पर ग्रहण कर रहे थे।

आग की उठती लपटें और उसे और धधकाने के लिए डाली जा रही लकड़ियों और उपलों को देखकर बेटी मनीषा ( हाथरस) को लकड़ी और पेट्रोल डालकर जलाने का वीभत्सव दृश्य सामने आ गया।

होलिका को को जलाने के संदर्भ में जो हिंदू पुराणों में जो मिथक मिलते हैं और जिस तरह मनीषा को जलाया गया, उसकी मूल बात एक है। दोनों में निम्न समानताएं दिखीं।

ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों ने होलिका को अनार्य ( असुर) स्त्री के रूप में चित्रित किया है, जो ब्राह्मणवादी मूल्यों में विश्वास नहीं करती थी और अनार्य मूल्यों के आधार पर अपना जीवन जीती थी और अनार्य समुदाय के साथ धोखा करने को तैयार नहीं थी। मनीषा भी अनार्य ठहराए गए समुदाय से थी। आर्य-पुत्र सहज-स्वाभाविक तरीके से उसके शरीर पर अपना विशेषाधिकार समझते थे और मना करने को दुस्साहस। जिसका बदलना उन्होंने उसके साथ बलात्कार और हत्या करके लिया।

ब्राह्मणों द्वारा रचित हिंदू मिथकों को पढ़ने से जो संंकेत मिलते हैं, उसने यह लगता है कि हमारी परदादी की परदादी होलिका के साथ भी बलात्कार किया गया हो, उसका अंग-भंग किया गया हो और फिर से आग के हवाले कर दिया गया।

यह कोई नहीं बात नहीं, हिंदुओं के सबसे अराध्य ईश्वर और मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम ने सबसे पहली हत्या एक अनार्य स्त्री ( ताड़का) का ही किया। पूरे विवरण के लिए वाल्मीकि रामायण देखें। फिर उन्होंने कई स्त्रियों की हत्या और अंग-भंग किया। जिसमें एक अनार्य स्त्री सूर्पनखा भी शामिल है।

जिस तरह मनीषा के बलात्कारियों के पक्ष में सवर्ण हिंदू खड़े हुए और बलात्कारियों को निर्दोष ठहराया जाने लगा और मीडिया ( विशेषकर हिंदुओं के सबसे मुखर प्रवक्ता अखबार दैनिक जागरण) ने मनीष के चरित्र हनन की खबरे प्रकाशित करना शुरू किया। वही कार्य ब्राह्मणों ने अपने पुराणों में होलिका चरित्र हनन करके किया है।

मनीषा के बलात्कार, हत्या और मनमाने तरीके से रातों-रात जबर्दस्ती पेट्रोल डालकर आग के हवाले करने के कृत्य को शासन-सत्ता और मीडिया एक बड़े हिस्से का समर्थन प्राप्त था। उसी तरह होलिका का भी सारा विवरण वर्चस्वशाली ब्राह्मणों ने अपने मनमाफिक गढ़ा।

ब्राह्मणों ने बहुजन मेहनतकश समाज के सभी त्यौहारों का ब्राह्मणों के वर्चस्व के लिए की गई हत्याओं से जोड़ कर कलंकित कर दिया। होली होलिका दहन, विजय दशमी ( रावण की हत्या), दुर्गापूजा महिषासुर की हत्या और दिवाली राम की रावण पर विजय आदि।

आइए, इन त्यौहारों को इन हत्याओं से मुक्त करें।

(फेसबुक वाल से सभार)