सिस्टम खूब काम करता है बस आम आदमी के लिए नहीं

शशि शेखर

कुरुक्षेत्र के मैदान से पानीपत तक और दक्षिण से ले कर दिल्ली के खूनी दरवाजे तक, हर जगह सिस्टम था। तैनात और चौकस। हर दौर में एक भगवान और करोड़ों इंसान। भगवान अमर रहे और इंसान खेत होते रहे। आज भी हो रहे है. आज भी भगवान बच जाएगा। तुम मारे जाओगे क्योंकि, सिस्टम भगवान का बनाया हुआ है। इसे चुनौती मत दो।

दे सकते हो तो भगवान को चुनौती दो। सवाल करो या फिर आत्मा अजर-अमर है, मान कर चुप रहो। विलाप न करो। कर सको तो सवाल करना, भगवान तुम क्यों नहीं मरते। किसी भी युद्ध में सिर्फ इंसान क्यों मरता है। अपने इस विश्वास को पहले खंडित करो कि भगवान अमर है, इंसान नश्वर। फिर सिस्टम भी आसानी से टूट जाएगा।

आत्मा की रक्षा धर्म है। जो धारण किये हो, वही धर्म है, तुमने प्राण धारण किया है। उसकी रक्षा ही तुम्हारा धर्म था। पूछो खुद से, क्या धर्म का पालन किया या नित नए भगवान की तलाश को ही धर्म माना। भगवान अजन्मा है तो मानव शरीर में क्यों। क्यों उसकी वजह से हर युद्ध में इंसान मरता रहा वह भी धर्म के नाम पर और सत्य के नाम पर।

मौत ही सत्य है। सत्य सिर्फ प्राण है। बाकी सब मिथ्या। न अगला, न पिछला। बस यही एक जन्म है जो तुम जी रहे हो। लेकिन क्या जी रहे हो। क्यों ऐसे जी रहे हो। सिर्फ भगवान के कारण कि भगवान बचा लेगा। कैसे बचा लेगा। भगवान ने इंसान को बचाने का सिस्टम ही नहीं बनाया। उसने खुलेआम घोषणा की है मैं ही सृष्टि का संहारक हूँ।

“सिस्ट” या सिस्टम, सिस्टम सिस्ट बना गया। प्राणघातक सिस्ट। जानलेवा। किसने बनाया। सत्ता ने, समाज ने, बल्कि दोनों ने। हाँ, दोनों ने। जज साहेबान का सिस्टम देखो। पांच सितारा अशोका में कोविड सेंटर बनवा रहे है खुद के लिए। अमीरों को देखो। प्राइवेट जेट ले विदेश उड़ रहे हैं। सिस्टम ही तो है। सब सिस्टम से हो रहा है फिर सिस्टम खराब किसके लिए और किसके कहने पर।

सिस्टम सत्ता का गुलाम या सत्ता सिस्टम के आगे कमजोर। अंडा पहले या मुर्गी, बड़ा झोल – महाझोल है। सवाल सिस्टम का नहीं, सवाल सत्ता का भी नहीं बल्कि सवाल आपका है। आप हो क्या। हो क्या आप जो आपके लिए सिस्टम काम करे। सिस्टम खूब काम करता है, जोरदार काम करता है, बस आपके तुम्हारे लिए नहीं। आप हो कौन?

आप इंसान हो, होगे लेकिन आप जैसे 130 करोड़ हैं। सिस्टम इंसान के लिए काम नहीं करता। सिस्टम पीएम, सीएम, डीएम के लिए काम करता है। सिस्टम जज के लिए काम करता है। सिस्टम अमीरों के लिए का करता है बल्कि कर रहा है। आँखें घुमाओ, दिख जाएगा। रह गए आप वहीं के वहीं। तो सवाल वही है कि आप हो कौन? इंसान। 6 अरब से ज़्यादा इंसान है धरती पर।

इंसान हो आप और इंसान बने रहना सबसे बड़ी चुनौती थी मगर आप हार गए। इंसान है तो भगवान है। आपमें भगवान है तो इंसान के सूत्र को माना। खामियाजा कौन भुगतेगा, इंसान। सिस्टम को दोष मत दीजिए। जा कर देखिए सिस्टम, अशोका होटल में चकाचक दिखेगा, लुटियंस में दमकता, मुस्तैद दिखेगा।

वैसे धन्य हो कोरोना काल का, इस सिस्टम ने थोड़ा अमीर गरीब के फर्क को कम किया है। जो लोग सोचते थे कि प्राइवेट अस्पताल में जाके इलाज करा लेंगे वो भी उसी सिस्टम से जूझ रहे हैं और दम तोड़ रहे हैं जिसमे आम इंसान दर दर भटकता है। मतलब साफ़ है कि सिस्टम हिला तो है और थोड़ा अमीरों के लिए भी हिला है लेकिन इस सिस्टम की मार सबसे ज़्यादा आम गरीब लोगों पर ही पड़ी है और आनेवाले समय में भी पड़ता रहेगा। कोरोना से हज़ारों बल्कि लाखों लोगों की जान जाने के बावजूद सिस्टम वैसे ही है जैसे था. मुझे यकीन है कि फिर देश इस सिस्टम को बदलने के लिए आवाज़ नहीं उठाएगा।