मोदी को प्रोटोकॉल से ज़्यादा खामियाँ उजागर होने की चिंता

शशि शेखर
प्रधान मंत्री के साथ राज्यों के मुख्य मंत्रियों की कोरोना को लेकर जो बैठक हुई और जिस प्रकार से दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल ने उसे मीडिया को लाइव किया उससे एक बहस उठी है। और ये बहस प्रधान मंत्री खुद ने ये कहते हुए छेड़ा है प्रोटोकॉल का पालन होना चाहिए। दरअसल प्रधान मंत्री को प्रोटोकाल की नहीं खुद के एक्सपोज्ड होने की चिंता है। मतलब, जनता का जनता के लिए की गयी बात का क्या प्रोटोकाल? ऑक्सीजन नहीं हैं, ऑक्सीजन मिलना चाहिए, इस बात का क्या प्रोटोकाल? लोग मर रहे हैं, आपको प्रोटोकाल सूझ रहा है !
दिल्ली, देश की राजधानी। एक अपूर्ण राज्य। अपूर्ण राज्य के सीएम को निष्क्रिय करने के तमाम प्रोटोकाल। उप राज्यपाल को सर्वेसर्वा बना दिया। आज लोग मर रहे है, तो सवाल किससे होगा? उपराज्यपाल से? नहीं। सीएम से होगा। तो सीएम ने पीएम से पूछ लिया, मार्गदर्शन कीजिए प्रभु, ऑक्सीजन ख़त्म होने पर किससे बात करनी है। इसमे कैसा प्रोटोकाल, कौन सा प्रोटोकाल टूट गया?
यही कि उसने इस बात को लाइव कर दिया? तो ये बात किसने सुनी? मालिक ने या जनता ने। चौकीदारों के मालिकों ने। मालिक तुम्हारी बात न सुन सकता। कैसा प्रोटोकाल है ये? आग लगा दो इसे। जला दो लखनऊ के भैसाघाट में जलती चिताओं के साथ ऐसे प्रोटोकाल को। 8 चरण का चुनाव ख़त्म होने के बाद, तुम्हे याद आया कि देश में महामारी फ़ैली है। दर्जनों रैलियाँ बिना मास्क के करने के बाद तुम्हे सूझा कि ऑक्सीजन चाहिए मरीजों को।
हाईकोर्ट ने लताड़ा, सुप्रीम कोर्ट ने पुचकारा। जब हाई कोर्ट ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत के लिए सरकार पर ह्त्या का मुकदमा चलाने की बात करता है, तो सारे हाई कोर्ट में दाखिल कोरोना रिलेटेड केसे सुप्रीम कोर्ट अपने पास ले लेता है और सुनवाई की तारीख 27 अप्रैल सुनिश्चित करता है। 4 दिन में जो मौतें होंगी, उसके लिए कौन जिम्मेवार होगा? तुम्हारा प्रोटोकाल?
इस वक्त सीएम हो या पीएम, सबके हर एक मीटिंग का लाइव टेलीकास्ट हो। जो प्रोटोकाल इसे रोकता है, उसकी बत्ती बना कर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाए। सारे चैनल लाइव दिखाए। लोगों को पता तो चले जिसे खुदा माना था वो कम से कम खुदा का भेजा फ़रिश्ता है या इब्लिश? तुम्हे खुदा होने का यकीं था। खुदा ने उसे तोड़ दिया। बता दिया इंसान की औकात और उसकी बिसात। जंगल के बीहड़ों में रहने वाले बादूरों (चमगादड़ों) के आगे इंसान कितना बेबस है। लेकिन, इस बेबसी की पराकाष्ठा तब, जब खुद के खुदा होने का भ्रम पाले इंसान को ये गफलत थी कि वो बड़ा “नसीब वाला” है। लेकिन, आज वो “नसीब” कहा गया? नसीब प्रोटोकाल से नहीं पैदा लेता, वो अच्छे कर्मों से बनता है। और जब कर्म अच्छे हो तो भला किसे क्या जरूरत है किसी के प्रोटोकाल को तोड़ने की। .
इस भीषण वक्त में पंचायत चुनाव करा के एक सीएम ने यूपी को जिस आग में झोंका, उसकी बानगी आनी अभी बाकी है। लेकिन, भरी बैठक में कोई सीएम इस दर से छींकता तक नहीं कि कहीं मेरा खुदा नाराज न हो जाए, तब एक अपूर्ण राज्य के पूर्ण सीएम ने प्रोटोकाल ही नहीं तोड़ा, तुम्हारे खुदा होने के भ्रम को भी तार-तार कर दिया।
अभी मीटिंग का प्रोटोकाल टूटा है। कल बहुत सारा प्रोटोकाल टूटेगा। कल वे भी तोड़ेंगे तुम्हारा प्रोटोकाल, जिन्होंने अपना दिमाग राम मंदिर की नींव में दफ़न कर दिया था। वो मोहतरमाएं भी तोड़ेंगी तुम्हारा प्रोटोकाल, जिनके लिए तुम तीन तलाक बिल लाए थे। नोटबंदी की लाइन में लगा हर इन्सान, हर महीने बिल बनाने को मजबूर व्यापारी, वो युवा, वो पेंशनभोगी, हर वो शख्स आने वाले कल को तुम्हारे प्रोटोकाल की धज्जियां उडाएगा, जिसे तुमने झूठे सपने दिखाए, जिसे तुमने यकीन दिलाया था कि तुम खुदा हो। अरे तुम एक नेकदिल इंसान भी साबित नहीं हुए। ऐसे संगदिल का भी क्या प्रोटोकाल?
बंद कमरों में हुक्मरानों की मीटिंग का प्रोटोकाल क्या होता है। बंद कमरों में साजिशें रची जाती है? फेस सेविंग के लिए धूर्त स्ट्रेटजी बनाई जाती है? ऐसे समय में ऐसा प्रोटोकाल अगर टूट जाये तो कोई हर्ज़ नहीं क्योकि कोई भी प्रोटोकॉल जनता की जान से बढ़कर नहीं हो सकती। इस लिए ऐसा प्रोटोकाल तोड़ने वाले को आप जिंदाबाद बोल सकते हैं।