राजीव श्रीवास्तव

दारू के नशे में टुन्न सुरेश की आवाज़ सुनकर उसके पड़ोस की लड़की जानकी की जान ही निकल गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था की इस “भाई” से रात के समय वह कैसे निबटे। कई बार दिन में भी इसी तरह की छींटाकशी करी थी सुरेश ने। लेकिन तब सिर्फ नजरअंदाज करने से काम चल गया था। बीमार मां को अस्पताल खाना देने गई थी और मां की गंभीर हालत देख वहीं रुक गई और देर हो गई।

सुरेश उस मोहल्ले का सबसे बदनाम गुंडा था। मारपीट, दंगा फसाद, पुलिस, कचहरी और जेल उसकी दिनचर्या का हिस्सा थे। ना जाने कितने मुकदमे चल रहे थे उसके ऊपर। सुरेश के मां बाप भी दिन भर खून के आंसू रोते थे। अपनी किस्मत से हार चुके थे।

खैर, किसी तरह तेज कदमों से, मुंह को पूरा ढक कर और नजरें जमीन पर गड़ाए जानकी चलती रही और सुरक्षित घर पहुंच गई। खाना गरम किया, सबको खिलाया और थक हारकर बिस्तर पर लेट गई। बाहर कमरे में जानकी के पिताजी टीवी पर समाचार सुन रहे थे। अचानक वैसे ही कर्कश सी आवाज़ सुनी जानकी ने।

दीदी….. ओ दीदी

कलेजा मुंह को आ गया। लगा सुरेश घर में घुस आया। घबराकर चिल्ला पड़ी थी वह। पिता दौड़े दौड़े आए और पूछा – क्या हुआ बेटी? भरे गले से जानकी ने पूछा – कौन आया है? किसकी आवाज थी ? जवाब में उसके पिता ने कहा – “अरे वह तो टीवी में हमारे प्रधान जी बोल रहे थे।”

जानकी के दिमाग में पहली बात यह आई की इतनी टुच्चई से क्या देश का पीएम बोलता है? क्या इनके मां बाप ने बोलने का सलीका भी नही सिखाया ? महिलाओं से क्या देश का सर्वे सर्वा ऐसे बोलता है? शक्ल से तो गुंडा सा दिखने वाले पीएम से चिढ़ है ही अब तो आवाज़ से भी..

उसे यह शक भी था की क्या सब मर्द ऐसे ही होते हैं ? लुच्चे लफंगे टाइप? सोचने को मजबूर कर दिया था इस मनहूस सी आवाज़ ने। अच्छा अगर वह महिला नही सुनती तो क्या पीएम साहब सीटी बजाकर बुलाते ? या गुंडे की तरह गाली देकर बुलाते ? कोई पीएम कितना गिर सकता है?

यही सब सोचते सोचते पता नही कब उसकी आंख लग गई।
और वह गहरी नींद में सो गई। बिल्कुल अपने देश की तरह…