दिल्ली स्थित आईआईएमसी में छात्रों का आंदोलन

उपेंद्र प्रताप
ये आईआईएमसी संस्थान भी जानता है और यहाँ पढ़ने वाले छात्र भी कि आज जिस तरह से मीडिया डिजिटल हुआ है उसमें पुराने अखबारी ढर्रे की कोई जगह नही है। चीजें कलम कागज से निकल कर कंप्युटर और कैमरे पर चली गई हैं। कोई डिजिटल मीडिया हाउस किसी छात्र को अपने यहाँ इसलिए नही नौकरी पर रखना चाहेगा की लड़का केवल कलम चलाना ही जानता हो। उस लड़के को कैमरा हैंडल करना, फ़ोटो एडिट करना, वीडियो एडिटिंग करना, न्यूज को डिजिटल फ्रेम में तैयार करना इत्यादि चीजें आती हों।
पत्रकारिता एक प्रकार से प्रेक्टिकल क्लास है और संस्थान को भी ये समझ होगा कि थियोरी की क्लास पढ़ कर आपके छात्र क्या ही सीख सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई का आलम ये है कि छात्रों को कैमरा चलाने जैसा प्रेक्टिकल चीज भी ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। जिस छात्र ने कभी कैमरा छुआ तक नहीं, वो फोटोग्राफी कैसे सीख सकता है। संस्थान की जिम्मेदारी बस इतनी मात्र नहीं है कि वो कोर्स कम्प्लीट करने के नाम पर कोरम पूरा करे। वो अपने छात्रों को पर्याप्त समय देकर सभी चीजों को सिखाए।
बहुत ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज आईआईएमसी के टीचर अपने बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा, ये भरोसा दिलाने पर लगे हैं कि वो आपका प्लेसमेंट किसी भी तरीके से करा देंगे। ये एक प्रकार से ऐसा ही है कि छात्रों को तैरना सिखाए बिना ही उन्हें समुंदर मे फेक देना। आईआईएमसी आज जिस तरह से अपने जिम्मेदारियों से भाग रहा है वो अपने छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। संस्थान को ये समझना चाहिए कि पत्रकारिता केवल एक डिग्री मात्र नही है, जिसमें दाखिला इसलिए लिए लिया जाता है कि डिग्री मिल सके। यहाँ सारे छात्र पत्रकारिता के गुण सीखने आते है। पत्रकारिता की बारीकियों को जानने आते हैं।
आज छात्र आंदोलन पर इसलिए बैठे हैं कि उन्हें प्रेक्टिकल क्लासेस मिल सके। छात्र संस्थान में जमा किए गए फीस का हिसाब मांग रहे हैं। उनका कहना है कि इतनी मोटी फीस दिए जाने के बाद भी प्रेक्टिकल चीजें नहीं सीखने को मिली हैं। यहाँ सारे छात्रों को पता है कि पत्रकारिता का भविष्य क्या है और वो उन्हीं जरूरतों के लिए लड़ रहे हैं।
(लेखक आईआईएम्सी के क्षात्र हैं )