डीआरडीओ की दवा 2DG कितनी प्रभावी होगी कोरोना उपचार में?

सौमित्र रॉय
आज ही लहर हिंदी ने दो पहर में डीआरडीओ की कथित कोविड उपचार की दवा 2DG के पतंजलि से रिश्ते की पोल खोली थी। अलबत्ता कुछ लोग इसका प्रचार खूब जोर-शोर से कर रहे हैं। बताते चलें की 2DG पर 1956 से रिसर्च चल रही है, लेकिन इसे अभी तक किसी बीमारी के उपचार के लिए मंजूरी नहीं मिली है। इसका उपयोग डायग्नोस्टिक और रिसर्च के लिए किया जाता रहा है।
डीआरडीओ की इस कथित दवा के समर्थन में जो तस्वीर बीते दिनों में लगातार दिखाई गई है, वह 2DG के इन विट्रो ट्रायल की है। यानी 2DG का ट्रायल इंसान या चूहों जैसे जैविक प्राणियों पर नियंत्रित रूप से नहीं हुआ, जिसे इन वीवो कहा जाता है। पतंजलि के शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर पर इसका मॉडल्स बनाकर ट्रायल किया, जिसे इन सिलिको कहा जाता है।
अगस्त 2020 में एक अध्ययन हुवा, जिसमें कहा गया कि अमरीकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (USFDA) ने आइवरमेक्टिन (ivermectin), हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine), क्लोरोक्विन (chloroquine), डॉक्सीसाइक्लिन (doxycycline) , एज़िथ्रोमाइसिन (azithromycin) और लोपिनवीर (lopinavir) जैसी दवाओं के एन्टी वायरल गुणों की जांच की। लेकिन एक को भी इंसान पर ट्रायल में उपयोगी नहीं पाया गया। हालांकि, इनमें से आइवरमेक्टिन (ivermectin) को गोवा समेत कुछ राज्यों ने अनिवार्य घोषित कर आपराधिक षड्यंत्र किया है।

भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने इन सबके बावज़ूद मई 2020 में 2DG के दूसरे चरण के ट्रायल को मंजूरी दी। इसे दो चरणों में 6 और 11 अस्पतालों में 110 मरीज़ों पर किया गया। आप जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि देश के क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री (CTRI) में 2DG के फेज 1 ट्रायल के लिए पंजीयन भी नहीं हुआ। सिर्फ फेज 2 ट्रायल के रजिस्ट्रेशन में 12 अस्पतालों के 40 मरीज़ों को दर्शाया गया है। 2DG ट्रायल का पंजीकरण न होना भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के एथिकल गाइडलाइन का सरासर उल्लंघन है।
साथ ही भारत सरकार रक्षा मंत्रालय ने 8 मई 2021 को एक प्रेस रिलीज़ के माध्यम से बताया है कि भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने आपातकालीन उपयोग के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित एंटी-कोविड दवा 2DG को मंजूरी दी। प्रेस रिलीज़ में आगे बताया गया है कि यह दवा डीआरडीओ के परमाणु चिकित्सा और संबद्ध विज्ञान और डॉ रेड्डी लेबोरेटरीज, हैदराबाद के सहयोग से बनी है लेकिन पतंजलि का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है।

2DG के तीसरे चरण के ट्रायल में 26 स्थानों पर 220 मरीज़ों पर परीक्षण बताया गया है। लेकिन क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री (CTRI) के रजिस्ट्रेशन में ट्रायल के मापकों का ज़िक्र नहीं है। सरकारी बयान तीसरे चरण के ट्रायल में दो शब्दों का उल्लेख करता है- लक्षणों में सुधार और ऑक्सीजन पर कम निर्भरता। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने क्लीनिकल ट्रायल के 10 मापक तय किये हैं लेकिन 2DG के ट्रायल में उनका कोई जिक्र नहीं।
2DG के ट्रायल को किसी भी साइंस जर्नल में अभी तक नहीं छापा गया। चोर अपनी जानकारी उजागर नहीं करता। सितंबर 2010 में अमेरिका में 2DG का 12 कैंसर मरीज़ों पर ट्रायल हुआ था। पाया गया कि सुबह-शाम कुल 60 एमजी का DG डोज़ देने पर मरीज़ों में दिल की बीमारी का ख़तरा पैदा होता दिखा। डीआरडीओ के फेज 3 ट्रायल में तो मरीज़ों को कुल 90 एमजी डोज़ दी गई। अब हालत का अंदाज़ा आप खुद लगाएं।
इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद अगर आपके दिमाग के जाले हट जाएं तो आपको सोचना चाहिए कि आप अपने शरीर को किसी दूसरे के मुनाफ़े के लिए कैसे सौंप सकते हैं? फिर भी आप अगर देश हित में जान देना चाहें तो आपकी मर्ज़ी।