इंसान को देवता होने का भ्रम

शशि शेखर
पूंड्रक और शिशुपाल फिर आज फर्जी कृष्ण बन घूम रहे है। इंसान को भगवान होने का भ्रम हो जाए तो खुदा उसे शैतान बना देता है। हर युग में इंसान को देवता होने का भ्रम रहा है। लेकिन ईश्वर ने हर बार इस भ्रम को तोड़ा है। कलयुग में भी टूटेगा। बस, असली कृष्ण को इंतज़ार है, कि कब पूंड्रक और शिशुपाल अपनी 100 गलतियों को पूरा करते है।
विज्ञान लगातार फर्जी कृष्ण बने पूंड्रक और शिशुपाल को चेतावनी दे रहा है, धर्म को नुमाइश न बनाओ, उसे अध्यात्म के पैराहन में लिपटे रहने दो। लेकिन, फर्जी और दंभी कहाँ किसी की सुनता है। भगवान कृष्ण ने तो कर्म की बात की थी, लेकिन इस फर्जी को तो सिर्फ फल चाहिए, जो विज्ञान की जीत से निष्फल हो सकता है। सो, धर्म की चाशनी में इसने मानव मन को वैसे ही लपेट दिया है, जैसे चीनी की चाशनी में लिपटी और मौत का इन्तजार करती मक्खी। धर्म और विज्ञान के द्वन्द में फंसा दी गयी मानवता आज कराह रही है। जो पीड़ित है, उसे विज्ञान की महत्ता समझ आ रही है। जो पीड़ित नहीं है, वो धर्म और विज्ञान के बीच झूल रहा है। कभी हरिद्वार जाता है कुंभ नहाने तो कभी अयोध्या मंदिर के लिए जमा पैसे से अस्पताल बनाने की बात करता है।
इस सब के बीच पूंड्रक और शिशुपाल देश के सुदूर उत्तर और दक्षिण में घूम-घूम कर अट्टाहस कर रहे हैं। सिर्फ इस भरोसे कि लोग अब भी उनकी इस बात से मुतमइन है कि धर्म की रक्षा करते रहो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा। वो गलतियों पर गलतियाँ करता जा रहा है। उसे भ्रम है कि वो स्वयं कृष्ण है। उसके पास सुदर्शन है, मोर पंख भी, जिसे देख-देख उस पर रिझने वाले असंख्य लोग भी है।
ये भरोसा ही उसे ये दु:साहस देता है कि मरकज की यादें धुंधली हो गयी होंगी, चलो जाओ सब हरिद्वार में दुबकी लगाओ, मैं कृष्ण (फर्जी) तुम्हारी रक्षा करूंगा। मरकज से हरिद्वार आते-आते लोगों को स्मृतिलोप हो जाता है, धर्म विज्ञान पर भारी पड़ जाता है और करोड़ों की भीड़ मरकज के 1 या 2 हजार की भीड़ को पछाड़ देती है।
धर्म सिर्फ समर्पण मांगता है, विज्ञानं समझदारी। बुराई दोनों में नहीं है। बस संतुलन चाहिए। लेकिन कलयुग के पूंड्रक और शिशुपाल ने इसी संतुलन को बिगाड़ दिया है। नतीजा, जब मानव जाति को विज्ञान की मदद चाही थी, तब इसने धर्म को आगे कर दिया। समर्पण ने पहले ही समझदारी पर ताला लगा दिया था। सो, प्रकृति के “सुदर्शन चक्र” के आगे सब विवश होते चले गए।
एक से बढ़ कर एक, पूंड्रक और शिशुपाल समर्थक मेरे मित्रों के फेसबुक वाल पर जब आज जाता हूँ, तो उनकी बेचैनी देख कर सहम जाता हूँ। किसी भी परिस्थिति में पॉजिटिव रहने की सलाह देने वाले मित्रों की पोस्ट देख कर, उसमें सन्निहित निराशा के भाव को पढ़ कर बेचैनी बढ़ जाती है। लेकिन, पूंड्रक और शिशुपाल का दंभ देखिए। उसे अब भी यकीन है कि उसके नकली मोर पंख मोह के धागे को कभी टूटने न देगा. क्या सचमुच ऐसा ही होगा?
नहीं। बिलकुल नहीं। कलयुग में भी कृष्ण जागेंगे। असली कृष्ण (जनता) बस 100 गलतियों के पूरे होने का इन्तजार है।