बच्चों के हक और हमारी जिम्मेदारियाँ

भागीरथ, सांवरीज, फलोदी, राजस्थान जिला समन्वयक ग्रामीण एवं सामाजिक विकास संस्था, अजमेर

हाल के दशकों में बाल अधिकारों की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, फिर भी दुनिया भर में लाखों बच्चे अब भी अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं। आज का समय बच्चों के लिए और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। हिंसा, सशस्त्र संघर्ष, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, जबरन श्रम और शोषण ने उनके बचपन को खतरे में डाल दिया है।

हमारा कर्तव्य है कि हम बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करें और उन्हें एक ऐसा बचपन दें, जिसमें वे सुरक्षित, सशक्त और सम्मानित महसूस करें।

बाल अधिकार क्या हैं?

बाल अधिकार दरअसल बच्चों के मानवाधिकार हैं। ये अधिकार जन्म से ही हर बच्चे को प्राप्त हैं – चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग, आर्थिक स्थिति या देश में जन्मा हो।

बाल अधिकार बच्चों को: सुरक्षा, सम्मान, शिक्षा ,पोषण, विचार रखने, मनोरंजन जैसे जीवन के हर पहलू में संपूर्ण और समान अवसर प्रदान करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC)

1989 में संयुक्त राष्ट्र ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन पारित किया, जिसे दुनिया के अधिकांश देशों ने अपनाया। इसके तहत:

🔹 18 वर्ष से कम उम्र के सभी व्यक्ति ‘बच्चे’ माने जाते हैं।
🔹 किसी भी भेदभाव के बिना हर बच्चे को सभी अधिकार मिलते हैं।
🔹 बच्चों का सर्वोत्तम हित हर निर्णय का मूल आधार होना चाहिए।
🔹 उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, अभिव्यक्ति और विश्राम का अधिकार है।
🔹 उन्हें हिंसा, शोषण, दुर्व्यवहार और तस्करी से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
🔹 बाल मजदूरी और बाल सैनिक बनने से बच्चों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।

आज की चुनौतियाँ , वर्तमान में कई बच्चों का बचपन:

बाल श्रम – खतरनाक कार्यस्थलों पर काम
बाल विवाह – कम उम्र में शादी और जिम्मेदारियों का बोझ
यौन शोषण और तस्करी
नशीली दवाओं की तस्करी में इस्तेमाल
बाल सैनिक के रूप में उपयोग
शिक्षा और पोषण से वंचित रहना

इन सभी हालातों में बच्चों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक वृद्धि रुक जाती है। वे न तो सुरक्षित होते हैं, न ही स्वतंत्र।

स्थानीय परिप्रेक्ष्य: फलोदी, राजस्थान

फलोदी जैसे रेगिस्तानी इलाके में बाल अधिकारों की स्थिति और भी संवेदनशील है। यहां शिक्षा की पहुंच सीमित है, और कई बच्चे प्राथमिक विद्यालय से आगे नहीं पढ़ पाते।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फलोदी ब्लॉक के लगभग 12% बच्चे किसी न किसी रूप में बाल श्रम में लगे हुए हैं। ये बच्चे या तो खेतों में काम कर रहे हैं, या ईंट भट्ठों और दुकानों पर मजदूरी करते हैं।

एक उदाहरण:
सांवरीज गाँव की 13 वर्षीय गुड्डी को उसकी मां की बीमारी और पिता की असमर्थता के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। अब वह पास के ईंट भट्ठे पर दिनभर काम करती है। गुड्डी जैसे हजारों बच्चे शिक्षा, पोषण और सुरक्षा जैसे मूल अधिकारों से वंचित हैं।

उम्मीद की किरण:
ग्रामीण एवं सामाजिक विकास संस्था द्वारा चलाई जा रही “शिक्षा केंद्र योजना” के तहत 5 गाँवों में 300 से अधिक बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ा गया है। साथ ही, बाल अधिकार जागरूकता शिविरों में स्थानीय समुदाय को बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार और उनके अधिकारों के बारे में सिखाया जा रहा है।

हम क्या कर सकते हैं?

  • शिक्षा और जागरूकता: बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में बताना ज़रूरी है।
  • सुरक्षात्मक वातावरण: घर, स्कूल और समाज को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाना चाहिए।
  • समुदाय की भूमिका: वयस्कों को बच्चों के साथ मिलकर उनके लिए काम करना होगा।
  • नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन: सरकार को ज़मीनी स्तर पर जिम्मेदारी निभानी होगी।
  • पुनर्वास: शोषण के शिकार बच्चों को मानसिक और सामाजिक सहयोग की आवश्यकता है।

बाल अधिकारों की रक्षा – सामूहिक जिम्मेदारी

बाल अधिकारों की सुरक्षा केवल सरकार या किसी संस्था की जिम्मेदारी नहीं, यह एक सामूहिक प्रयास है। माता-पिता, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, और आम नागरिक – सभी की भूमिका अहम है।

हमें यह समझना होगा कि अगर एक भी बच्चा अपने अधिकारों से वंचित रह जाता है, तो यह पूरे समाज की असफलता है।

एक सशक्त समाज की नींव उसके बच्चे होते हैं। अगर वे अपने अधिकारों के साथ बड़े होंगे, तभी वे एक बेहतर कल बना सकेंगे।

आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें –
“हर बच्चे को उसका बचपन लौटाएं, हर अधिकार दिलाएं और एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ हर बच्चा मुस्कुरा सके।”