भारत का किसान, जो कर रहा है मोती की खेती!

मोती की खेती -न्यूज हंट से साभार
देश के किसानों की व्यथा दशा बीते कुछ दशकों में बद से बदत्तर हो चली है. शहर तो स्मार्ट हो रहे हैं पर गांव का किसान आज भी अपनी फसल के उचित दाम के लिए सरकार के आगे हाथ फैलाए खड़ा है. जब गुस्सा आता है तोे दिल्ली कूच करता है और जब हताश हो जाता है तो फंदे से झूल जाता है. उम्मीद का दामन थामें किसान टकटकी लगाए बस आसमान तांक रहा है. बारिश हो जाए तो हरियाली आए, ज्यादा हो गई तो बाढ़!
वहीं दूसरी ओर देश के कुछ किसान परिवार ऐसे हैं जिनके पास आसमान की ओर देखने की फुर्सत तक नहीं है. आखिर उनके घर और छतों में मोती जो उग रहे हैं. चौंकिए नहीं यह बिल्कुल सच है. ऐसे किसानों ने अब पारंपरिक फसलों का विकल्प मोती के रूप में तलाश लिया गया है. किसान अपने घर की छतों और आंगन में इन दिनों मोती की खेती कर रहे हैं और सालाना लाखों रूपए कमा रहे हैं.
मोतियों की खेती बेहद रोचक विषय है. चलिए जानते हैं इसकी विकासयात्रा की कहानी!
सीप की होती है सजर्री, फिर…
मोती एक प्राकृतिक रत्न है जो सीप से पैदा होता है. जाहिर सी बात है कि यह समुद्र में पाया जाता रहा है. लेकिन वैज्ञानिकों ने मोती को मीठे पानी में पैदा करने की तकनीक तैयार कर ली है. जिसमें कम खर्च में किसान घर पर ही मोती पैदा कर सकते हैं.
मोती या ‘मुक्ता’ एक कठोर पदार्थ है जिसे मुलायम ऊतकों वाले जीव सीप में भीतर तैयार करते हैं. प्राकृतिक तरीके के अलावा मोती बनाने का रासायनिक तरीका भी है. रासायनिक रूप से मोती सूक्ष्म क्रिटलीय रूप में कैल्सियम कार्बोनेट है, जो जीवों द्वारा केन्द्रक (न्युक्लिअस) के ऊपर परत दर परत चढ़ाकर बनाया जाता है.
मोती की खेती करने के लिए बड़े भूभाग की जरूरत नहीं है बल्कि इसे घर के आंगन या छत पर भी पैदा किया जा सकता है. मोती की खेती में छह प्रमुख चरण होते हैं. जिसमें सीपों को इकट्ठा करना, इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब या टैंक में उपजाना और मोतियों का उत्पादन.
उड़ीसा के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर से मोती की खेती सीखने वाले मप्र के इंजीनियर विनोद कुमार बताते हैं कि मोती की खेती शुरू करने का सबसे अनुकूल मौसम अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है. खेती के लिए कम से कम 10 गुणा 10 फीट की जगह चाहिए. जहां अधिकतम 50 सीपों से मोती उत्पादित हो सकते हैं.
यदि आपके पास पर्याप्त जगह है तो मोती कल्टीवेशन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25,000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है. सबसे पहले मछुवारों से कुछ प्राकृतिक सीप खरीदने होते हैं जो अधिकतम 200 से 300 रुपए में मिल जाता है. इसका आदर्श आकार 8 सेंटी मीटर से ज्यादा होना चाहिए. इस्तेमाल से पहले दो-तीन दिनों तक पुराने पानी में रखा जाता है जिससे इसकी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो.
सीप में तैयार होते हैं डिजाइनर मोती
इसके बाद सीप की सतह के केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी में से किसी एक विकल्प का चुनाव कर सीप की सजर्री की जाती है. इसके भीतर घोंघा नाम का एक कीड़ा होता है, जिसे मॉलस्क कहते हैं. मॉलस्क ही सीप की बाहरी पर्तों का निर्माण करता है. मॉलस्क बाहरी पर्त बनाने के बाद सीप के अंदर ही मोती का निर्माण करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 18 माह का समय लगता है. यानि टैंक और तालाब के भीतर सीप को 18 माह तक अनुकूल वातावरण दिया जाता है.
तालाब में डालने से पहले इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है. जो सीप मृत हैं यानि जिसमें घोंघा मर चुका है उन्हें अलग कर दिया जाता है और केवल जीवित सीप ही तालाब या टैंक में रख देते हैं. इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है.
उत्पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जा सकती है. पालन अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल कर सजर्री के द्वारा मार दिया जाता है. इस दौरान सीप के भीतर मोती तैयार हो चुका होता है.
20×10 फीट एरिया में 1 हजार सीप से 1 हजार मोती तैयार हो सकते हैं. ऐसा नहीं है कि मोती का आकार प्राकृतिक रूप से गोल ही हो. बल्कि सजर्री के दौरान किसान उन्हें अलग—अलग आकृतियां दे सकता है. यदि सर्जरी सही तरीके से की गई है तो सीप में से उसकी डिजाइन का मोती बाहर निकलता है.
इन दिनों मोतियों में भगवान गणेश, शिवलिंग, सांई बाबा, बुद्ध, फूल की विभिन्न आकृतियां तैयार कर रहे हैं. जिनकी डिमांड न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी है.
5 से 10 लाख रुपए साल हो सकती है कमाई
विनोद ने केवल 60 हजार रुपए की लागत से मोती की खेती शुरू की थी और दो ही साल में वे 5 लाख रुपए सालाना कमाने लगे हैं. देश के भीतर मोतियों का सबसे अच्छा बाजार सूरत, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कलकत्ता में है. देशभर के किसाना यहां के मोती व्यापारियों के संपर्क में है. वे डिमांड के मोती डिजाइन करते हैं.
वहीं यदि विदेश में मोतियों को एक्सपोर्ट करना है तब भी इन्ही व्यापारियों का नेटवर्क काम करता है. खास बात यह है कि अब तो सरकार भी मोती की खेती को बढावा दे रही है. देश भर के एग्रीकल्चर कॉलेजों और शोध संस्थानाओं को इंटरनेट के माध्यम से कनेक्ट कर दिया गया है. यदि कोई किसान अपने राज्य से बाहर नहीं जा सकता तो वह पास के किसी संस्थान से एक सप्ताह का कोर्स कर सकता है.
मोती की खेती के लिए बैंक से लोन की सुविधा दी जा रही है. इसके अलावा कई स्वयंसेवी संगठन भी आए दिन मोती उत्पादन के सेमीनार आयोजित कर रहे हैं. राजस्थान की ढाणी बामणा वाली के सत्यनारायण यादव और उनकी पत्नी सजना ने भी ऐसे ही प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बनकर मोती की खेती करना शुरू किया है और वे हर माह 25 हजार रुपए से ज्यादा की कमाई कर रहे हैं.
सरकारी आंकडों पर नजर डालें तो इस समय देश में करीब 50 हजार किसान मोती की खेती कर रहे हैं. खासबात यह है कि इनमें से अधिकांश वे लोग हैं जो पहले प्राइवेट कंपनियों में जॉब किया करते थे.
एक शोध के अनुसार भारतीय बाजार में गोल मोती की कीमत उसकी क्वालिटी के हिसाब से 500 से 50000 तक हो सकती है. यदि मोती का आकार बड़ा है तो यह कीमत 1 लाख रुपए प्रति मोती तक जाती है. 9 महीने में एक सीप से 2 डिजायनर मोती तैयार होते हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत 1 लाख रुपए से शुरू है. यानि सालभर में यदि कोई किसान केवल 10 मोती भी बनाए तो वह 10 लाख रुपए कमा सकता है.
पूरी दुनिया में इस तरह के मोतियों का कारोबार करीब 20100 करोड़ रुपए का है. भारत हर साल करीब 50 करोड़ रुपए से अधिक के मोती इंपोर्ट करता है. जबकि भारत से 100 करोड़ रुपए से अधिक के मोती सालाना एक्सपोर्ट भी होते हैं. तो यदि आप भी देश की और साथ में अपनी जेब की इकोनॉमी बढ़ाने का सपना संजोए हुए हैं तो मोती की खेती करने वाले किसान किसी प्रेरणा से कम नहीं है.