I I अप्रैल फूल I I

अनुराग अनंत

नदियां मूर्ख नहीं हैं, जो प्यासी रहती हैं
पर अपना पानी नहीं पीतीं
वृक्ष मूर्ख नहीं हैं जो अपना फल नहीं खाते
वे लोग जो जीवन को गणित की तरह नहीं देखते
बच्चों की तरह माटी के गोपाल बना लेते हैं
लहरों से नहीं डरते और समंदर किनारे बनाते हैं घरौंदा
वे मूर्ख नहीं हैं

जहाजों को उड़ते हुए देख कर हिलाते हैं हाथ
पहाड़ों से अपना दुःख कह आते हैं
नदी में प्रवाहित कर देते हैं अपने प्रिय के नाम लिखी चिट्ठियाँ
गाय की पूंछ पकड़कर दान कर देते हैं साल भर की बचत
गंगा में बहाते हैं दीपक मानो बहा रहे हो अपने मन का अंधकार
वे मूर्ख नहीं हैं

बात बात पर हंस देते हैं
किसी भी पीड़ा का अपमान नहीं करते
खुल कर रोते हैं
डर जाते हैं बात बात पर
छोटी छोटी बीमारियों से मर जाते हैं
मच्छरों के काटने से त्यागते हैं प्राण
जो बिल्लियों के रास्ता काटने से स्थगित कर देते हैं यात्रा
वे मूर्ख नहीं हैं

वे मूर्ख नहीं हैं जो निरपराध ही मारे जाते हैं
कर्ज़ लेते हैं और फांसी पर लटक जाते हैं
उफ्फ तक नहीं करते, बार बार चुनते हैं अपनी त्रासदी
किसी भी जादूगर की बातों पर करते हैं यक़ीन
आंख बंद करके देखते हैं तमाशा
वे मूर्ख नहीं हैं

वे जिनके लिए एक ही विकल्प छोड़ा गया है
वे विकल्पहीन लोग ढो रहे हैं पृथ्वी
वे मूर्ख नहीं हैं

वे भोले भाले लोग तुम्हारी हर बात मान लेंगे
क्योंकि उन्हें मालूम है
मूर्ख उसे ही बनाया जा सकता है जो भीतर से बच्चा है
भोला है, सच्चा है
वे स्वीकार करते हैं तुम्हारी नज़रों में मूर्ख बनना
पर नहीं त्यागते अपना बचपन, सच्चाई और भोलापन
वे लोग मूर्ख नहीं हैं

वे जब जब बनते हैं मूर्ख बस इतना ही कह रहे होते हैं
किसी को मूर्ख समझना सबसे बड़ी मूर्खता है
कभी कभी लोग अपनी इच्छा से बनते हैं मूर्ख
क्योंकि उनकी इच्छा है वे बने रहें बच्चे
थाम लें समय
देखें जीवन को कला की तरह
गणित में बने रहें कमज़ोर