मुसलमान नहीं रहे तो?

आमिर मलिक

बड़े-बड़े लोगों ने कहा कि मुसलमान सिर्फ़ पंक्चर बनाने का काम करते हैं।  ये दिखाने के लिए, या कहें जताने के लिए कि वो दोहरे दर्जे के नागरिक हैं।  हज़ारों बार ये कहा गया कि हिंदोस्तान में मुसलमान अगर कुछ कर सकते हैं तो ये कि वो पंक्चर बनाए।  बल्कि मीडिया के एक धड़े में मुसलमानो को पंक्चर पुत्र कहा भी जाता है। 

जिसे भी राजनीति के ऊंचाइयों को छूना है वो मुसलमानों को बदनाम करके उनके बदन पर गालियों के कोड़े बरसाने लगते हैं।  इस कड़ी में बड़ा नाम तेजस्वी सूर्या का जुड़ता है।  उन्होंने सीधा सीधा कह दिया कि अनपढ़, जाहिल और पंक्चर की दुकान लगाने वाले नागरिकता क़ानून का विरोध कर रहे हैं. उनका बयान ऐसे समय आया जब विरोध करने वाले अधिकतर मुसलमान थे।

ऐसा करते हुए तेजस्वी सूर्या ने एक ऐसे सच की तरफ़ इशारा किया जो हमने नज़रंदाज़ कर दिया।  उन्होंने हमें बताया कि मुसलमानों में शिक्षा का अभाव है।  बहुत बड़ा अभाव।  हमने तेजस्वी की बात को वहीं रोक दिया. जरूरत थी उसे आगे बढ़ाने की।  ये बताने की कि मुसलमान मजबूर कर दिए गए कि वो अपनी हालत पर मर मिटे या कि वो आगे बढ़ने का सोचे ना।

वो सिर्फ़ इस लायक़ है कि वो पंक्चर बनाए. देश के मुसलमान अगर आगे बढ़ने का सोचे, शिक्षा और स्वास्थ हासिल करने का सोचे, तो सरकारी तंत्र कभी नरेंद्र मोदी की शक्ल में कभी कपिल मिश्र और योगी की शक्ल में उनको ये बताने में जी जान लगा देते हैं कि तुम पंक्चर बनाने वाले हो. तुम और कोई सोच नही रख सकते.

हालाँकि अर्थवयवस्था का जो हाल  है उसमे सभी मुस्लमान सहित सभी समुदाय का हाल पंक्चर पुत्र की तरह होने वाला है /होना शुरू हो गया है।  क्योंकि शिक्षा व्यवस्था का लचर हाल है।  रोजगार का ये आलम है कि पुलिस विभाग में चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी पास छात्र आवेदन कर रहे हैं और ये उस राज्य में हो हो रहा है जिसको राम राज्य की तरह लोगों को परोसा जा रहा है।  कभी कभी सोचता हूं. मुसलमान न रहे तो पंक्चर कौन बनाएगा?

तस्वीर: दिल्ली में करोल बाग़ की तरफ़, पंक्चर बनाने वाले मुसलमान एक हिंदू की गाड़ी का पहिया फिट करते हुए.