मुझे अपने पिताजी पर फक्र है

फादर्स दे स्पेशल की स्पेशल रिपोर्ट

ये मेरे परमआदरणीय पिताजी हैं ,बाबा गांव के जमींदारो से लोहा लेते रहे और जवानी मे ही उत्पीडन से निजात पाने के लिये रंगून चले गये ,लौटकर दूसरे गांव मे बस गये तब तक कलकत्ता गुलजार हो चुका था फिर काम की तलाश मे कलकत्ता गये साथ मे दादी गयीं वही मीठातलाव मुहल्ले २४ परगना मे पिताजी का जन्म हुआ.

चूंकि आजादी की लडाई लगभग अमतिम पडाव पर थी नोवाखाली के दंगे मे पिताजी 9 साल के थे दंगाइयो ने बस्तियो मे कत्लेआम किया बाबाकारखाने से लौटते वक्त दंगे फँस गये और बुरी तरह पूरी शरीर लहूलुहान थी मिलीटरी पहुंचकर हास्पिटल लेगयी पिता जी अकेले बाबा को ढूंढते सडक की तरफ भाग रहे थे चूंकि बाडी मुस्लिम की थी हिंदू सब रहतेथे इब्राहिम बाबा के दोस्त थे भागत चिल्लाते पिताजी को देखकर इब्राहिम ने पिताजी को लुकते छिपते अपने घर लाये चूंकि पिताजी को दंगाइयो से बचाना था इसलिये पिताजी की पूरी हुलिया बदल दिया बाकायदा टोपी पाजामा कुर्ता पहनाकर घर से न निकलने की हिदायत देकर बाबा की खोज किया तो पता चला कि बाबा हास्पिटल मे थे इब्राहिम ने पिताजी व बाबा को मिलाया उस सीन को याद करते पिताजी की आँखो मे आँसू आ जाते मैं चूंकि छोटाबेटा था चंचल था इसलिये पूंछता रहता थाकि कलकत्ता की हाल बताइये तो पिताजी बताते थे.

सबसे बडी बात जो उन्होने बतायी वह यह थी कि इब्राहिम ने पिताजी को हफ्तो अपना भतीजा बताकर उनकी जान बचायी, कोई पूंछता तो इब्राहिम बताते कि धनबाद से मेरा भतीजा आया है ,केवल 9 साल की उम्र मे पिताजी को दुनिया एहसास हो गया था कि हैवानो की दुनिया मे इंसानियत का जिंदा रहना जरूरी है उसके लिये कुर्बानी देनी पडे तो देना हर इन्सान का असली फर्ज है,##पिताजी बंगाल मे 30 बर्ष रहे लौटे तो सामंती लडाई शुरू हुई मुझे याद है जब गांव का ठाकुर गांव मे घुसताथा लोग चारपाई छोडकर खडे रहते ,लडाई हुई सरपंच के चुनाव की मैं तब 1970 मे इलाहाबादवि.वि. मे आगया था पिताजी ने वहां गुंडो को पछाडा सरपंच का चुनाव उसी ठाकुर को हराकर जीते गां मे हत्या बलात्कार गुंडई खत्म हुई गांव गंगापुर आजाद हुआ.

अब तो गां मे वैग्यानिक,डाक्टर मास्टर वकील तमाम पैदा हुये विकास इतना कर गया कि अनाज खेती लहलहाती है सडके पक्की हैं बिजली 35 बर्ष पहले से है सबके पास खेत है सब सुखी हैं लगातार सरपंच रहते सरकारी ट्यूबेल पानी के साधन से गां समपन्न है हमे तब अचरज हुआ जब मै पिताजी द्वारा बनवाये गये स्कूल पर बार्षिक उत्सव मे पहुंचा तो जैसे ही पिताजी वहां पहुचे सबने नारा लगाया कि तूफान नही ये आँधी है ,गंगापुर का गांधी है, मै समझता हूंपिताजी की जीवन की कमाई यही जनता की आवाजथी, ईमानदारी प्रतिमूर्ति जो हम लोगो को हमेश सिखाये आज हमारे पास नही हैं लेकिन उनका आचार व्यवहार ईमांदारी सब हमे मार्गदर्शन करती रहेगी

मुझे अपने पिताजी पर फक्र है कि उनको लोग ईमानदार कहते रहे

भूपेंद्र निषाद