मनरेगा मजदूरों ने किया प्रदर्शन एवं प्रधानमंत्री को भेजा पत्र

लहर डेस्क -समस्तीपुर: मनरेगा में मिले 200 दिन रोजगार की गारंटी, ₹600 न्यूनतम मजदूरी और ग्राम सभा/ वार्ड सभा द्वारा स्वीकृत योजनाओं पर हो काम की मांग के साथ मजदूरों ने किया प्रदर्शन एवं प्रधानमंत्री को भेजा पत्र
एक अध्यन के मुताबिक बिहार, झारखण्ड और मध्य प्रदेश में अब तक केवल 25-30% जॉब कार्ड धारी मनरेगा मजदूरों को ही काम मिल रहा है , कहीं मशीन से काम तो कहीं वेतन समय से न मिलना , तो कहीं पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा मजदूरों की कमाई को गवन कर जाना आम बात है.
आज दिनांक 29 जून 2020 को युवा सौर्य के के बैनर तले मोरदीवा, पतैली, नागर बस्ती, मालती, जितवारपुर, हकीमाबाद, इत्यादि के मजदूरों ने मनरेगा अधिकार दिवस 2020 के अवसर पर युवा सर के प्रशासनिक कार्यालय बहादुरपुर में इकट्ठा हुए जहां उन्होंने केंद्र सरकार से मनरेगा अंतर्गत कम से कम 200 रोजगार दिवस की गारंटी एवं ₹600 की न्यूनतम मजदूरी व ग्राम सभा या वार्ड सभा से पास योजनाओं का शत प्रतिशत क्रियान्वयन को लेकर भारत के माननीय प्रधानमंत्री को लिखे जाने वाले पत्र पर अपना हस्ताक्षर बनाया मजदूरों की मांग थी कि हाल की राष्ट्रीय तालाबंदी के कारण हम मज़दूरों की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई है। पैसे के अभाव में हममें से कई भुखमरी, इलाज का अभाव व कई अन्य गंभीर परेशानियां झेल रहे हैं। जो मज़दूर साथी दूसरे राज्यों में जाकर विभिन्न प्रकार के काम करते थे वे भी वापस लौट रहे हैं और मनरेगा में काम कर रहे हैं। जिनके जॉब कार्ड नहीं बने हैं, वे उसको बनवाने का प्रयास कर रहे हैं और बनने के बाद काम की माँग करेंगे। इन परिस्थितियों में मनरेगा के तहत काम की मांग बहुत बढ़ गई है। पर अभी तक आपकी सरकार ने हमें कोई अतिरिक्त सहायता नहीं दी है। आज हम आपसे मांग करते हैं कि मनरेगा में रोज़गार की गारंटी व मज़दूरी बढ़ाई जाए और केवल ग्राम/वार्ड सभा द्वारा चयनित योजनाओं पर ही काम हो।
सालाना काम की गारंटी 200 दिन प्रति व्यक्ति की जाए: मनरेगा में अभी सालाना काम की गारंटी केवल 100 दिन प्रति परिवार है। यह बहुत ही अपर्याप्त है, विशेष रूप में अब जब रोज़गार के अन्य साधन बहुत सीमित हो गए हैं और प्रवासी मज़दूर वापस घर लौट रहे हैं। कई परिवार जल्द ही अपने 100 दिन पूरा करने वाले हैं। फिर उनके पास बाकी साल तक रोज़गार का क्या साधन बचेगा? काम की गारंटी कम से कम 200 दिन प्रति व्यक्ति की जाए, जिससे हम सब मनरेगा में मज़दूरी करके अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
मज़दूरी 600 रुपये की जाए: 2009 से मनरेगा की मज़दूरी को न्यूनतम मज़दूरी से अलग कर दिया गया है। तब से कई राज्यों के मनरेगा मज़दूर न्यूनतम मज़दूरी से कम दर पर काम कर रहे हैं। यह बंधुआ मज़दूरी के बराबर होता है। मनरेगा मज़दूरी सम्मानजनक जीवनव्यापन के लिए बहुत अपर्याप्त होने के कारण कई ग्रामीण मज़दूर मजबूरी में पलायन करते हैं। पौष्टिक भोजन, कपड़ा, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर होने वाले खर्च की गणना करते हुए सरकार के सातवें वेतन आयोग ने अपने कर्मियों के लिए 18,000 रुपये की मासिक न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित की है। इसलिए, दैनिक मनरेगा मज़दूरी भी कम से कम 600 रुपये की जाए।
केवल ग्राम/वार्ड सभा द्वारा चयनित योजनाओं पर काम हो: मनरेगा कानून की धारा 16(1) के अनुसार ग्राम पंचायत, ग्राम सभा और वार्ड सभाओं की सिफ़ारिश के अनुसार योजनाओं का कार्यान्वयन होना है। पर पिछले कई वर्षों से सरकार की प्राथमिकताओं के अनुसार मनरेगा काम चलाए जा रहे हैं। सरकार अपनी अन्य योजनाओं, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना व स्वच्छ भारत में मनरेगा मज़दूरों से काम करवाकर न्यूनतम मज़दूरी दर से कम में घर व शौचालय आदि का निर्माण करवा रही है। अब तो आपकी सरकार हमसे रेलवे का काम करवाने की भी सोच रही है। ऐसे सब कामों के लिए मज़दूरों को कुशल मज़दूरी मिले।
हम आपसे यह भी मांग करते है कि मनरेगा में काम की गारंटी व मज़दूरी बढ़ाने के लिए पर्याप्त बजट आवंटित हो। हर साल मनरेगा का बजट अपर्याप्त होने से मज़दूरों को पूरा काम नहीं मिलता और भुगतान में विलम्ब होते हैं। साथ ही साथ, काम न मिलने पर हमें बेरोजगारी भत्ता मिले, समय पर भुगतान न होने पर मुआवज़ा मिले, कार्यस्थल पर दवा, पानी, छाया और बच्चों की देख-रेख की सुविधा हो और एक सप्ताह के अन्दर हमारी शिकायतों का निपटारा हो।
कार्यक्रम को युवा सौर्य के सचिव के साथ मालती निवासी विनोद कुमार गिरि, नरेश राय ने मजदूरों से चर्चा की एवं अनिल कुमार सिंह, महेश राय, गोविंद कुमार इत्यादि के साथ विभिन्न पंचायतों में आयोजित कई कार्यक्रमों में 100 से अधिक मजदूरों ने भाग लिया।