प्रवासी मजदूरों को गुलामी की जंजीरों से कराया मुक्त


अमरजीत कुमार

आज से 2 माह पूर्व हरदा जिले के ग्राम रूठूवाला,रकटिया के 17 आदिवासी मजदूर धूलघाट के ठेकेदार सीताराम ,राजकुमार ने महाराष्ट्र का बोलकर गन्ना काटने के लिए कर्नाटक के बीजापुर जिले के सिथकी थाने के ग्राम एरगन डी ले गया था । सीताराम,राजकुमार ठेकेदार ने खेत मालिक से 6 लाख रुपए गन्ना काटने के लिए लिया था लेकिन 17 मजदूरों को एडवांस में पांच,पांच हजार रुपए ही दिए और काम के दौरान हजार हजार रुपए दिया।

जब मजदूरों ने कहां की हमारा काम खत्म हो गया है हम घर जाना चाहते हैं तब खेत मालिक सेठ मुनेश ने कहा मैंने आप लोगों को 6 लाख रुपए दिए हैं,अभी आपका काम खत्म नहीं हुआ है यह बात जब मजदूरों को पता चला तो उन्होंने खेत मालिक को कहा कि हमें सिर्फ 6 हजार रुपए ही मिले हैं, बाकी पैसे हमें नहीं मिले हैं। जब मजदूर अपने घर लौटने की जिद करने लगे तो खेत मालिक द्वारा उनके साथ मारपीट करते हुए शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान कर बंधक बना लिया गया, इस दौरान श्रीमती सुनीता बाई,उनके पति अजय और अनिल के साथ मारपीट भी की गई।

जैसे तैसे मजदूरों ने फोन के माध्यम से अपने परिजनों से संपर्क किया तो यह खबर सामाजिक कार्यकर्ता श्री राकेश बकोरिया के माध्यम से क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता श्री करुणा शंकर शुक्ला को मिली, उन्होंने तुरंत ही सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता श्री विक्रांत कुमरे को इस घटना से अवगत कराया, श्री विक्रांत कुमरे द्वारा कर्नाटक के डीजीपी और कमिश्नर से संपर्क कर बंधक मजदूरों की घटना से अवगत कराया, तुरंत ही डीजीपी द्वारा एक्शन लेते हुए एसपी को अवगत कराते हुए टीम गठित कर बंधक मजदूरों को वहां से मुक्त करवाया गया , सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विक्रांत कुमरे द्वारा आदिवासियों को आर्थिक सहयोग भी किया गया , जिससे मजदूरों ने भोजन किया और रेलवे स्टेशन से अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए।

खंडवा रेलवे स्टेशन पर कुमरे जी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में कार्य कर रही टीम के खंडवा जिले के सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता मोहन रोकड़े ओर सहयोगी प्रभु मसानी, अजय भलराय, अमरजीत द्वारा रेलवे स्टेशन से मजदूरों को रिसीव कर सभी को भोजन करवाया गया, रात्रि विश्राम कराया गया और प्रातः खंडवा रेलवे स्टेशन से हरदा की टिकट कराते हुए उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक भिजवाया गया।

खंडवा रेलवे स्टेशन उतरते ही मजदूरों के चेहरे खिल उठे उनकी मायूसी दूर हुई और रिसीव कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को देख आंखें नम हो गई, उन्होंने हरदा जाते समय रेलवे स्टैंड पर बताया कि हम खंडवा जिले की टीम और मोहन रोकड़े सर का बहुत बहुत आभारी हैं जिन्होंने इतनी ठंडी रात में रेलवे स्टेशन पहुंचकर हमें प्रेम पूर्वक भोजन करवाया हमारे रुकने की अच्छी व्यवस्था की है और हमारे घर पहुंचने हेतु टिकट भी बुक करवाई है हम सभी क्षेत्र के मजदूरों भाइयों को यह संदेश देना चाहते है कि भूल से भी किसी ठेकेदार के झांसे में आकर अपने क्षेत्र को छोड़कर बाहर काम करने ना जाए, वरना लौट कर आना मुश्किल है।

खंडवा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता मोहन रोकड़े ने बताया कि हरदा और खंडवा जिले की यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी पूर्व में कई मर्तबा क्षेत्र के गरीब आदिवासियों को ठेकेदार झांसा देकर कर्नाटक, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र मजदूरी करवाने ले जाते हैं और उन्हें गुलामी की दलदल में झोंक कर खुद पैसे लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं, सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल से कुछ मजदूर तो लौटकर आ जाते हैं लेकिन वास्तव में देखा जाए तो आज भी कई ऐसे आदिवासी मजदूर बाहर काम करने गए हैं जो लौट कर नहीं आए हैं और ना ही ग्राम स्तर पर उनकी कोई जानकारी है उस ग्राम से कितने मजदूर बाहर काम करने गए हैं और कितने लौट कर आए हैं। सरकार लाख दावा करे की पलायन करने वाले मजदूर का लेखा जोखा पंचायत स्तर पर होता है यह एक कोरी झूठ ही साबित हो रही है , वर्तमान में आवश्यकता है ऐसे ठेकेदारों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की, साथ ही जिले में हर ग्राम पंचायत में बाहर काम करने जाने वाले प्रत्येक मजदूर की जानकारी हो साथ ही जिस ठेकेदार के माध्यम से जा रहे हैं उसकी जानकारी हो और ग्राम पंचायत द्वारा जिस ठेकेदार के माध्यम से उन्हें ले जाया जा रहा है उसके साथ एक करारनामा होना चाहिए तभी वहां के मजदूर काम करने बाहर जा सकते हैं यदि इस प्रकार की व्यवस्था ग्राम पंचायत स्तर पर की जाती है तो निश्चित ही आने वाले समय में ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है और गरीब आदिवासी मजदूरों को अन्याय और अत्याचार से बचाया जा सकता है।

इस लेख के लिए लेखक अमरजीत के साथ सहयोगी साथी-मोहन रोकड़े, प्रभू मसानी ,अजय भलराय ने काम किया है .