पुस्तक समीक्षा-“रिमेम्बरिंग मुस्लिम मेकर्स ऑफ मॉडर्न बिहार”

हाल में एक किताब प्रकाशित हुई है,जिसका नाम “रिमेम्बरिंग मुस्लिम मेकर्स ऑफ मॉडर्न बिहार” है. किताब अंग्रेजी ज़बान में है. इस किताब के संकलनकर्ता एवं सम्पादक प्रोफ़ेसर मोहम्मद सज्जाद हैं जो अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में कार्यरत हैं।  जैसा कि इस किताब के नाम से ही जाहिर हो रहा है. इस किताब में बिहार के 65 मुस्लिम शख्सियात के बारे में लिखा गया है. जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. लेकिन उनके योगदान को या तो भूला दिया गया है या उनको उचित स्थान नहीं दिया गया है. आज के इस दौर में जहाँ भूलना और याद करना (memory and amnesia) एक रणनीति का हिस्सा हो गया है.

राज्य, सत्ता और समाज अपने-अपने हिसाब से अपने नायकों को याद करता है, या भूला देता है या फिर नये नायक गढ़ भी लेता है. और बात अगर मुस्लिम नायकों की हो तो मामला और भी पेंचीदा हो जाता है. जहाँ महमूद गजनी को तो याद रखा जाता है,लेकिन अलबरूनी को भूला देने की हर संभव कोशिश की जाती है.जहाँ मोहम्मद गोरी को तो याद रखा जाता है लेकिन ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को सीमित करने की हर संभव कोशिश की जाती है. जहाँ मोहम्मद अली जिन्ना को तो याद रखा जाता है लेकिन खान अब्दुल गफ्फार खान को भूला दिया जाता है. क्योंकि इसतरह से और इसतरह के मुस्लिम व्यक्तित्व को याद करके मुस्लिम समुदाय को एक ख़ास तरह के इमेज में कैद करना आसान हो जाता है. इस लिहाज से ये किताब ऐसे ही सोच और विचार वाले भूला दिए गए मुस्लिम नायकों को याद करने की कोशिश है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह एक भूलने के खिलाफ एक अभियान है.

इस किताब में उन्ही नायकों/ नायिकाओं को शामिल किया गया है, जो अब इस दूनिया में नहीं हैं. और जिनका कालखंड 1857 के बाद शुरू हो कर वर्तमान तक आता है. किताब में केवल मुस्लिम नायक और नायिकाओं को शामिल किया गया है। किताब के संकलनकर्ता और संपादक प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहना है कि आज के इस राजनैतिक बहुसंख्यकवाद के दौर में जहाँ मुसलामानों के खिलाफ नफ़रत और हिंसा सरकार के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सहयोग से चलाया जा रहा हो. जहाँ मुसलमानों के पहचान को मिटाने का अभियान चल रहा हो. जहाँ मुसलमानों को राष्ट्रवाद के नाम पर उनके बहिष्कृत किया जा रहा हो और देश निकाला की धमकी दी जा रही हो. बात बात पर मुसलामानों को पकिस्तान भेजने की धमकी दी जा रही है। ये सारी चीजें केवल मुस्लिमों के साथ ही हो रहा है. इसलिए जरुरी हो जाता है कि मुसलमानों के उन नायक/ नायिकाओं को याद किया जाएं जिन्होंने इस मुल्क को बनाने में अपना खून और पसीना बहाया है. और ये बात लोगों को बताई जाएं कि इस राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में मुसलमानों की हिस्सेदारी अन्य समुदायों से कम नहीं है. उन्होंने ये भी बताया कि बिहार अपने पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और बंगाल की तुलना में राजनैतिक रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान भी और आज़ादी के बाद भी सांप्रदायिकता को उस तरह से आत्मसात नहीं किया जैसे कि बिहार के पड़ोसी राज्यों में हुआ. मुस्लिम लीग अपने अंतिम दौर में भी उस तरह से सफल नहीं हो पाई जैसे उसे यूपी या बंगाल में सफलता मिली थी. यही बात हिन्दू महासभा पर भी लागू होती है. यह लेख योग्य Face mask उत्पादों पर मुफ़्त शिपिंग की पेशकश करता है, या ऑनलाइन खरीदें और चिकित्सा विभाग में आज ही स्टोर से उठाएँ।

इस किताब की ख़ास बात ये हैं कि इसमें शामिल किए गए लोग केवल राजनीति से जुड़े हुए ही नहीं हैं. इसमें वैसे लोगों को भी शामिल किया गया है. जिनका राजनीति के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी योगदान रहा है. इसमें शिक्षाविद भी है. किसानों और मज़दूरों की हक़ की आवाज़ उठाने वाले भी हैं. साहित्य और कला से जुड़े हुए लोग भी हैं.

जिन पैंसठ लोगों का किताब में ज़िक्र है उनमे तीन महिलाएं भी हैं। उनमे से एक महिला जिनका नाम रशीदु उन निशा है.( पृष्ठ स.45) ये पहली महिला उर्दू उपन्यासकार हैं, जिन्होंने इस्लाह-ए-निशा नाम का उपन्यास लिखा था. जिसका विषय वस्तु महिला जागरूकता एवं उत्थान है. उसी प्रकार एक अन्य व्यक्ति हैं जिनका वर्णन उस किताब में है. उनका नाम मौलाना सज्जाद है( पृष्ठ स.91) इनका कहना था कि सियासत ही दीन है. अगर सियासत इंसाफ के साथ और मजलूमों के हक़ में की जाएं तो ये भी इबादत है. ये एक मौलाना की सोच है. जिससे आज के लोग सबक ले सकते हैं.

ये किताब इस मायने में भी पठनीय है कि ये मुसलामानों के बारे में बनाई गई रुढीवादी धारणाओं को तोड़ती हुई नज़र आती है. इस किताब में 65 लोग अलग अलग सामाजिक पृष्ठभूमी से लिए गए हैं. इसमें सुन्नी भी हैं, शिया भी हैं, पसमांदा( अज़लाफ और अर्जल) सभी को शामिल किया गया है. इस मायने में भी ये किताब बहुत ही संतुलित नज़र आती है. लेकिन अगर जेंडर बैलेंस की बात की जाए तो 65 में से केवल 3 महिलाएं ही हैं. ये संपादक का पक्षपात नहीं बल्कि मुस्लिम समाज का आईना है. ये मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाता है.

इस किताब में सर फखरुद्दीन का भी ज़िक्र है जो बिहार और उड़ीसा के पहले मुस्लिम मंत्री थे। उन्होंने एक महत्वाकांक्षी परियोजना “स्टेट स्कॉलरशिप प्रोग्राम” की शुरुआत की थी.जिसके तहत बी.ए. और एम.ए. के प्रतिभाशाली छात्रों को कैंब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड पढ़ने के लिए भेजा जाता था। इसके बदले में उन्हें स्वदेश वापस लौट कर पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाना था। 

एक अन्य व्यक्ति जिनका इस किताब में ज़िक्र है उनका नाम ग़ुलाम सरवर है। इन्हें “बाग़ी दानिश्वर”के उपनाम से भी जाना जाता है। ये बिहार के एक प्रमुख राजनितिक हस्ती में शुमार थे। साथ ही ये मशहूर उर्दू दैनिक “संगम” के संपादक भी थे। अपने सम्पादकीय लिखने की वजह से उन्हें कई बार जेल भी हुआ था। इन्होने उर्दू के उत्थान के आंदोलन भी चलाया। साथ ही इन्होने संविधान की धरा 374 में संशोधन कर उर्दू को दूसरा राजकीय भाषा का दर्जा देने की मांग की.

हलाकि की संपादक ने इस किताब की कमियों एवं इसकी सीमाओं को खुद ही रेखांकित किया है। लेकिन एक बात ज़रूर कही जा सकती है कि इसमें काम से काम दो और शख्सियात मोइन-उल-हक़ और क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम को ज़रूर ही स्थान दिया जाना चाहिए था। दूसरी बात ये कि जहां तक कंटेंट का सवाल है  ये किताब कहीं -कहीं असंतुलित नज़र आती है।किसी -किसी के बारे तो बहुत ही काम कंटेंट दिया गया है।  इस किताब का प्रकाशन ब्राउन पब्लिकेशन ने किया है. जिसे बिहार कॉलेक्टिव के सहयोग से प्रकाशित कराया गया है.

इस किताब के प्रस्तावना में संपादक ने इस किताब के प्रकाशन के मकसद और महत्व को रेखांकित किया है. किताब में “समकालीन बिहार में मुस्लिम समुदाय की राजनीति” शीर्षक से संपादक का लेख भी है. जो बिहार के मुस्लिम सियासत के सफलता उसकी विफलता उसकी सीमा तथा उसके विरोधाभाष एंव अंतरविरोध को भलीभांति दर्शाता है. साथ ही मुख्य धारा की राजनीति के साथ उसके संबधों के भी बयान करता है. इस किताब को दो लोगों को समर्पित किया गया है. पहला नाम सैयद हसन अस्करी का है, जो मध्यकालीन इतिहास के इतिहासकार थे. जबकि दूसरा नाम पापिया घोष का है जो आधुनिक इतिहास की इतिहासकार थी. 

Book-Remembering Muslim Makers of Modern Bihar

Edited & Compiled by- Prof.Mohammad Sajjad

Publisher- Brown Books Publication (2019)

Page 208, Price-Rs.200

 

रेयाज अहमद (लेखक, स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार )