जल प्रबंधन, ऊंट और बड़ी कंपनियां

पानी प्रबंधन के मामले में ऊंट बहुत समझदार जानवर होता है। शायद इसीलिए बिसलेरी कंपनी अपना नाम बेचने के लिए अब ऊंट की इस छवि को भुनाने पर उतारू हो गई है। आपकी निगाह भी शायद बिसलेरी के उस विज्ञापन पर गई होगी, जिसमें बाकी पानी छोड़कर ऊंट बिसलेरी के पानी की तरफ भाग रहे हैं। बिसलेरी कंपनी ऊंटों के साथ-साथ हमारी समझदारी को भी चकमा देना चाहती है।
आखिर ऐसा है क्यों। दुनियाभर की पानी कंपनियां भारत के प्रति इतना फोकस्ड क्यों हैं। जवाब सीधा है। भारत में पानी का कारोबार आठ हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है। और यह हर साल पंद्रह फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है। बिजनेस लाइन में पिछले साल जुलाई में छपी खबर के मुताबिक भारत में 5735 कंपनियां पानी को पैक करके बेचने के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के पास पंजीकृत हैं।
ये वो कंपनियां हैं जिन्होंने पानी के कारोबार के लिए लाइसेंस लिया हुआ है। इसके अलावा हजारों कंपनियां ऐसी हैं जो पानी का कारोबार बिना लाइसेंस के करती हैं। एक आकलन के मुताबिक इस तरह की तीन हजार से ज्यादा कंपनियां केवल दिल्ली-एनसीआर में हैं, जिनका कोई ब्रांड नहीं है और वे कारोबार कर रही हैं। इसलिए पानी का कुल कारोबार आठ हजार करोड़ से बहुत ज्यादा है।
कंपनियां पानी को पाउच, प्लास्टिक की बोतल, प्लास्टिक के गिलास और बीस या चालीस लीटर की बड़ी बोतलों में पैक कर रही हैं। इनमें से प्लास्टिक के पाउ, गिलास और बोतलें एक बार के इस्तेमाल के बाद ही प्लास्टिक कचरे में शामिल हो जाते हैं और इस पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए बड़ी हद तक जिम्मेदार साबित होती हैं। जबकि, पानी को पैक करने के दौरान केवल 66 फीसदी पानी का ही इस्तेमाल होता है बाकी पानी बेकार हो जाता है।
अगर सरकार की ओर से हर सार्वजनिक स्थान पर साफ-सुथरा पानी उपलब्ध करा दिया जाए तो पर्यावरण को खराब करने वाले प्लास्टिक की इस भारी तादाद से बचा जा सकता है। लेकिन, सरकारों को इसकी परवाह कहां है।
उन्हें तो परवाह है उस आठ हजार करोड़ रुपये के बिजनेस की जो हर साल पंद्रह फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वे इसमें और भी तेजी चाहते हैं।
कुछ हिस्सा तो उनका भी होता ही होगा इस बिजनेस में। फिर पर्यावरण की परवाह किसे हो।
संजय कबीर