खुश रहें ताकि कोरोना को आ जाए रोना

आशुतोष आर्यन

मैं जब पॉजिटिव हुआ। टेस्ट कराने से पहले दो दिनों तक ख़ुद के लक्षण पर नजर बनाए रखा। बुखार और शरीर में तेज दर्द था। मुझे समझ आ गयी कि मैं संक्रिमत हो गया हूं। इसके बावजूद, घर में किसी को नहीं बताया। बेवजह लोग घबरा जाते। खुद को दो दिन तक आइसोलेट करके रखा। लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया। घर से निकलना बंद कर दिया। थर्मामीटर से चेक किया सच में बुखार हैं। दवाई खाने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ। मुझे समझ आ गए कि ये कोरोना के लक्षण हैं। उसके बाद टेस्ट करवाया रिपोर्ट पॉजिटिव आई।

फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क में आए लोगों को सूचित कर दिया। आप खुद का ख्याल रखें। ज़रूरी एहतियात बरतने की कोशिश करें। संभव हो तो कुछ समय तक ख़ुद को आइसोलेट करके रखें! कोरोना के लक्षणों पर पैनी निगाह बनाएं रखें। उसके बाद रिपोर्ट आने के बाद थोड़ी देर के लिए ज़रूर घबराहट हुई। एकदम असहज महसूस होने लगा। शरीर और दिमाग नियंत्रण से बाहर जाने लगा। आंख के सामने अंधेरा छाने लगा। पैर के नीचे से जमीन खिसकने लगी।

मन में डर और भय दोनों एकसाथ आ धमके। लेकिन, खुद को संभाला। दिमाग से लड़ना शुरू किया। दिमाग को इस बात पर सहमत कर लिया की मैं संक्रिमत हूं लेकिन जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा। दुनिया भले, इधर से उधर हो जाएं। मुझे मजबूत रहकर संक्रमण का सामना करना है। हौंसला को टूटने नहीं दिया। संक्रमित व्यक्ति के भीतर इस डर का घर कर जाना ही उसके शुरुआती मुश्किल पैदा कर देती है। घर में मां-पापा बीमार हैं। उनकी भी चिंता थी। उनसे एकदम दूर रहना है। यह सोचकर अपने आप को संभालने की कोशिश करने लगा। खुद, खुद को भरोसा और हिम्मत देने लगा।

स्वाद और सुगंध भी बाद में धीरे-धीरे जाने लगे। स्वाद तो इस कदर गये कि अभी तक वापस नहीं लौटे हैं। सोशल मीडिया पर दु:ख और पीड़ा से अनगिनत कहानियां अटी पड़ी हैं। खुद को कोरोना गाइडलाइन के मुताबिक आइसोलेट करके रखा। किसी से भी मिलना जुलना यहां तक की परिवार के लोगों से भी बंद कर दिया। डॉक्टर से लगातार संपर्क में बना रहा। उनकी सलाह सर आंखों पर लिया। भोजन पौष्टिक और गर्म खाना शुरू किया। गुनगुना पानी अनिवार्य रुप से पीने लगा। गला में खरास होने के बावजूद जबरन खाते-पीते रहा।

स्वाद का पता तक नहीं लगता था, बेस्वाद लगने लगा सबकुछ। स्वाद को तिलांजलि दिया। खाना-पीना नहीं छोड़ा। खानपान एकदम नित्य लेने का आदी हो गया। तब तक डॉक्टर के परामर्श और खुद के अनुभव के बाद कोविड को डिकोड कर चुका था। कैसे खुद को बचाना है? थोड़ी सी लापरवाही कैसे दूसरे को मुश्किल में डाल सकता था। हर वक्त कोशिश करता था मास्क पहने रहूं। सैनेटाइजर का प्रयोग निरंतर करता रहा। दोस्तों से फोन पर खूब बात-चीत करने लगा। हंसता-मुस्कुराता रहा। किताबें पढ़ने लगा। गाना सुनने लगा। तनाव व चिंता से खुद को कुछ दिनों के लिए मुक्त कर दिया। एकदम बेपरवाह होना ही मुनासिब लगा। एकदम बेपरवाह होकर समय गुजारने लगा।

हां, एक सबसे खास और जरूरी बात। कोविड से संक्रमित होने के बाद आप हीन भावना से भी देखें जायेंगे। इसका दूसरा पहलू यह है कि, आप बेहतर लोगों से मिल पायेंगे, जिनमें वाकई आपको मानवता की प्रतिमूर्ति दिखेंगी। मानवता बचाने की जद्दोजहद, उनकी बैचेनी आपको चकित करेंगे। आपने ऐसा कौन सा अपराधिक कृत्य कर दिया है लोग आपको अलग नजरिया से देखेंगे। भेद-भाव से भरा व्यवहार कोविड मरीजों को मानसिक अवसाद की ओर ढकेलता है। मजबूती से नहीं निबटे तो अवसाद में जाने से आपको कोई नहीं रोक सकता है।

होम आइसोलेशन में रहकर खुद का ईलाज इस बात की भी तस्दीक करता है कि अगर आप संक्रमित हो गये हैं तो इस बात पर अधिक ध्यान रखें कि घबराना बिल्कुल भी नहीं है। दूसरों का भी ख्याल रखना है। आपकी लापरवाही कहीं दूसरे को ना संक्रमित कर दे। उनसे एकदम दूरी बना के रखें चाहें वो कितने भी अज़ीज़ क्यों ना हों। बेहद करीबी होने के बावजूद मिलने से इंकार कर दिया। उनकी हिफाजत करना पहली प्राथमिकता बना लिया।

अगर सांस लेने में दिक्कत नहीं है, ऑक्सीजन लेवल सही है तो घर में रहकर भी खुद का खुद से ईलाज किया जा सकता है। ताकि, बेवजह अस्पताल के चक्कर से छुटकारा मिल सकें। वैसे मुझे सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई और ना ही मैंने कभी ऑक्सीजन लेवल ज़्यादा ऊपर – निचे हुवा। सबकुछ सही लग रहा था। लेकिन, इस मामले में एकदम चुस्त-दुरुस्त था। जरूरत पड़ते ही व्यवस्था हो जाएगी इस बात को भी लेकर आश्वस्त था। कई दोस्तों के तरफ से लगातार भरोसा दिया जा रहा था कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है। नौबत पड़ने पर इंतजाम हो जाएगा।

मुझे ज़रूरत नहीं पड़ेगी ऐसा आभास होने भी लगा। मुझे इतना ही समझ आया कि जब आप संक्रमित होते हैं तब खुश रहने का तरीका बदल कर उसे सौ गुणा कर दें। ताकि, आपके खुश रहने पर कोरोना को रोना आ जाएं। वैसे, इस बार के म्यूटेंट पिछले साल के ज़्यादा खतरनाक भी हैं। सावधान हैं, सतर्क हैं तो कुछ भी नहीं है। कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए वक्त बेहद खराब होता है लेकिन, उम्मीद बनाएं रखने पर ही आप कोविड को शिकस्त दे सकते हैं। वैसे, अब पहले के वनिस्पत बेहतर हूं। स्वाद भी धीरे-धीरे लौटने लगी है। कब तक दूर रहेगी। वापस तो अपने पास ही उसे लौटना है।

साथ बने रहने के लिए सबका शुक्रिया, सबका आभार।