कहानियां सुनाकर चमकी बुखार को दूर भगा रहीं डॉ सुरभि


फ़ौजिया रहमान खान -मुजफ्फरपुर। 2 जुलाई

आर्थिक तंगी ऐसी जहाँ परिवारों के लिए पालतू जानवर जीवन जीने का मुख्य आधार हो , आजीविका का मुख्या साधन हो , कभी उनका गोबर बेच कर तो कभी बछरा तो कभी दूध , इनती आमदनी नहीं की जानवरों के लिए अलग से गौशाला बनाया जाए परीणाम स्वरुप अपने रहने सोने के इर्द गिर्द ही लोग जानवरों का आवास बनाते हैं , कई बार साफ़ सुरक्षा का ध्यान रहता ,कई बार संभव न हो पाता. आर्थिक रूप से ऐसे पिछड़े टोले-मुहल्ले, जहां लोगों के सोने के कमरे के इर्द-गिर्द ही मवेशी बांधे जाते हों, साफ-सफाई के प्रति जागरूकता न हो, वहां स्वच्छता और बच्चों के पोषण के बारे में समझाना आसान काम नहीं होता। आरबीएसके बोचहां प्रखंड की चिकित्सा पदाधिकारी डॉ सुरभि ने चमकी बुखार के प्रति जागरूकता फैलाने के अभियान में जब परेशानियों का सामना किया तो प्रयोगधर्मिता का सहारा लिया। गंदगी से नुकसान और साफ-सफाई के फायदे पर छोटी-छोटी कहानियों को चमकी बुखार के खिलाफ बड़ा हथियार बनाया। निरंतर प्रयास से न केवल बच्चों, बल्कि उनके अभिभावकों में साफ-सफाई अपनाने  में कामयाब हुईं। लोगों में बच्चों के पोषण और स्वच्छता को लेकर समझ विकसित हुई तो परिणाम यह हुआ कि जिस बोचहां प्रखंड में पिछले साल 24 बच्चे एईएस की चपेट में आ गए थे और 5 की जान भी चली गई थी, आज उसी प्रखंड के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में अब तक एक भी मामला नहीं आया है। विगत वर्ष यह माह जून और जुलाई का ही था जहाँ जिले में 100 से ज्यादा बच्चे इस बीमारी की वाह से मौत के आगोश में समा गए थे.

पांच वर्षों से जुटी हैं जागरूकता अभियान में :

डॉ सुरभि प्रखंड में पोषण और साफ-सफाई पर सितंबर 2015 से काम कर रही हैं। वे बताती हैं कि प्रखंड के अधिकतर आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चे बिना ब्रश किए, बिना नहाए, गंदे कपड़ों के साथ आते थे। उन्होंने न केवल इन बच्चों को हाथ धोना, ब्रश करना और साफ-सुथरा रहना सिखाया, बल्कि छोटी-छोटी कहानियों के जरिये भी यह बताया कि साफ-सुथरा रहने से क्या लाभ होता है और गंदगी के कितने नुकसान हैं। वे मलिन बस्तियों में निरंतर सेवाभाव से लोगों के बीच पहुंचती रहीं और उन्हें गंदगी से बाहर निकालने का प्रयास करती रहीं।

कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा :

डॉ सुरभि ने बताया कि हमारे क्षेत्र में कई कुपोषित बच्चे ऐसे मिले, जिनके माता-पिता उन्हें पोषण पुनर्वास केंद्र भेजने को तैयार नहीं थे। उन्होंने हमीदपुर गांव के एक कुपोषित बच्चे के माता-पिता से आग्रह किया कि इसे केंद्र पर भेज दिया जाए, लेकिन वे लोग तैयार नहीं हुए। काफी समझाने के बाद बच्चे के पिता ने कहा कि पहले हम जाकर वहां देखेंगे। फिर वे डॉ सुरभि के साथ केंद्र गए, व्यवस्था से संतुष्ट हुए तो वहां अपने बच्चे को भेजा। कुछ दिनों में बच्चा स्वस्थ होकर घर लौट आया।

लगातार फॉलोअप और पोषण पर जोर :

पिछले साल एईएस से ठीक हुए बच्चों का डॉ सुरभि ने न केवल लगातार फॉलोअप किया, बल्कि उनके माता-पिता को सलाह दी कि आपके घरों में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले खाने में भी पोषण के तत्व होते हैं। उन्हें पहचानिए और विशेष तौर पर बच्चों के खान-पान पर ध्यान दीजिए। बच्चों को चावल पकने के बाद जो पानी निकलता है वह पिलाईए। रात में भूखे पेट बच्चों को सोने न दें। नीचे गिरे हुए गंदे और फटे लीची खाने से मना किया। रात के खाने के बाद मीठा खिलाने की सलाह दी। प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक आलोक कुमार ने बताया कि हमारी पूरी टीम ने जागरूकता पर पूरा बल दिया है। इसमें डॉ सुरभि का योगदान सराहनीय है।

इस सम्बन्ध में जब प्रखंड के कुछ परिवारों से पुछा गया तो उन्हों ने बताया की डॉ सुरभि बच्चों और परिवारों के बीच काफी चर्चित हैं , बच्चे और माता- पीता खास कर बड़े बुजुर्ग कहानी से बहूत प्रभावित होते हैं और कहानी में बताई गयी बातों से बहूत जल्द सीख लेकर स्वक्षता के प्रति व्यवहार में परिवर्तन लाराहे हैं , डॉ सुरभि के प्रयास से यह भी प्रतीत होता है की आज भी हमारा समाज में  दादी ,नानी के कहानी से सीखने की परम्परा जारी है , अगर आज भी कहानी सुनाने की इस मौखिक परम्परा को जिन्दा रखा जाए जिसमें मुद्दे परक बातों को शामिल किया जाए तो बहोत जल्द लोग व्यवहार परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ेंगे.