धात्री एवं गर्भवती महिलाओं को अन्नप्राशन दिवस पर पूरक आहार के महत्व को समझाया गया

लहर डेस्क – 22 अप्रैल 19- अन्नप्राशन दिवस पर सभी 6 माह के बच्चों को दिया गया पोषाहार साथ ही  धात्री माताओं को बच्चों को कुपोषण से कैसे बचाया जाए विषय पर विस्तार पूर्वक बताया गया. जिले के सभी आँगनवाड़ी केन्द्रों पर अन्नप्राशन दिवस मनाया गया है. इस अवसर पर सभी आँगनवाड़ी केन्द्रों पर 6 माह के बच्चों को पूरक पोषाहार दिया गया एवं बेहतर पोषण के लिए जरुरी पूरक पोषाहार के विषय में जानकारी भी दी गयी.

जिले के 2588 क्रियाशील आंगनवाडी केन्द्रों पर अन्नप्राशन दिवस का आयोजन किया गया. पोषक क्षेत्र के शिशुओ को खीर व हलवा खिलाकर इसकी शुरुआत की गयी तथा धात्री माताओं को भी पूरक पोषाहार के विषय में एवं साफ़- सफाई के बारे में जानकारी दी गयी. आज ही सभी केन्द्रों पर गोदभराई कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.

जिले के सिलाव प्रखंड के बढाकर पंचायत की आंगनवाडी संख्या 53, बढाकर 1 में सेविका संजू कुमारी द्वारा शिशुओं को अनुपूरक आहार दिया गया. प्रखंड की बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कविता कुमारी ने इस अवसर पर अनुपूरक आहार के महत्त्व पर प्रकाश डाला एवं शिशु की साफ़ सफाई की जरुरत पर जोर दिया.उन्होंने बताया की अनुपूरक आहार शिशु के आने वाले जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. 6 माह से 23 माह तक के बच्चों के लिए यह अतिआवश्यक है. इस अवसर पर महिला पर्येवेक्षिका रजनी कुमारी भी मौजूद थी.

आप जानते होंगे की राष्ट्रिय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4(2015-16) के अनुसार नालंदा जिले में मात्र 29.9 प्रतिशत शिशु ऐसे हैं जिन्हें 6 महीने के उपरांत माँ के दूध के साथ उपरी आहार प्राप्त हो रहा है. सर्वेक्षण के मुताबिक जिले में 6-23 माह के शिशुओं की संख्या 30 प्रतिशत है जिन्हें माँ के दूध के साथ पूर्ण रूप से अनुपूरक आहार प्राप्त हो रहा है.

इसलिए जरुरी है पूरक आहार: छह माह तक शिशु का वजन लगभग दो गुना बढ़ जाता है एवं एक वर्ष पूरा होने तक वजन लगभग तीन गुना एवं लम्बाई जन्म से लगभग डेढ़ गुना बढ़ जाती है. जीवन के दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से विकास होता है. इसके लिए अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है. इसलिए 6 माह के बाद शिशुओं के लिए स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार देना चाहिए.

पूरक आहार बनाने की बिधि: 6 माह से 8 माह के बच्चों के लिए नरम दाल, दलिया, दाल -चावल, दाल में रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नही) , खूब मसले साग एवं फल प्रतिदिन दो बार 2 से 3 भरे हुए चम्मच से देना चाहिए. ऐसे ही 9 माह से 11 माह तक के बच्चों को प्रतिदिन 3 से 4 बार एवं 12 माह से 2 वर्ष की अवधि में घर पर पका पूरा खाना एवं धुले एवं कटे फल को प्रतिदिन भोजन एवं नास्ते में देना चाहिए.

समेकित बाल विकास योजना के अंतर्गत 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बेहतर पोषण के लिए पोषाहार वितरित किया जाता है. पूरक पोषाहार के विषय में सामुदायिक जागरूकता के आभाव में बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. इससे बच्चे की शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी अवरुद्ध होती है एवं अति कुपोषित होने से शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है. इस तरह के अभियान से शिशु मृत्यु दर एवं मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाने का प्रयास सरकार और समज सेवी संस्थाएं कर रही हैं.