ज़फर के हत्यारे बरी हो गए

राजस्थान के प्रतापगढ़ में कोई सवा साल पहले माले के ज़फर हुसैन स्वच्छ भारत अभियान के अधिकारियों-कर्मचारियों के हाथों मारे गए थे. उन्होंने शौच करती औरतों की फ़ोटो खींचने का विरोध किया था. चार लोगों ने पीट-पीटकर उनकी जान ले ली. यह अखबार में छपी रिपोर्ट से पता चला था जिसमें रिपोर्टर ने घटना के कई चश्मदीदों से बात की थी.
इस तरह जान ले लेना भारत को स्वच्छ बनाने के अभियान का ही हिस्सा रहा होगा! इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ दफ़ा 302 के तहत एफ़आईआर दायर की गयी थी.
ताज़ा स्थिति क्या है, जानना चाहेंगे? वह यह है कि पुलिस इन चारों के ख़िलाफ़ अदालत में कोई चार्ज-शीट दाख़िल नहीं कर रही, क्योंकि ज़फ़र हुसैन, उसके अनुसार, दिल का दौरा पड़ने से मरे थे. पुलिस अपनी ‘तहक़ीकात’ के बाद इस नतीजे पर पहुँची है कि 16 जून 2017 को मामूली झड़प के बाद ज़फ़र अपने घर चले गए, संयोग से उसी समय उन्हें सांस की दिक्कत हुई, दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे. कार्डियो-रेस्पिरेटरी फेलियर…. यह नाम है उस शारीरिक गड़बड़ी का जिसने ज़फ़र हुसैन की जीवन-लीला समाप्त कर दी और ज़ाहिर है, इस गड़बड़ी में कुछ मिनट पहले हुई मार-पीट की कोई भूमिका नहीं थी.
यह आख्यान ज़फ़र की हत्या के तुरंत बाद गढ़ लिया गया था. अब यह पूरी तरह से ऑफिशियल है.
अब लगता है, शासक पार्टी के हुकुम पर मामलों की भ्रूण-हत्या करने में राजस्थान पुलिस का कोई सानी नहीं. इससे पहले पहलू खान के मामले में उसने यही किया. उनके हत्यारों के ख़िलाफ़ कोई चार्ज-शीट दाख़िल नहीं हुई क्योंकि घटना-स्थल पर उनके मौजूद होने के सबूत ही नहीं मिले…. पुलिस हमेशा से अपने राजनीतिक आकाओं के हुकुम का पालन करती आयी है, मामलों को कमज़ोर और मज़बूत बनाना उनकी पुरानी प्रैक्टिस है, लेकिन मामले को इस तरह नेस्तनाबूद करना नया रुझान है. और आनेवाले समय के लिए सबसे बड़ा ख़तरा यही है कि भाजपा रहे चाहे न रहे, यह रुझान रहेगा. हर पार्टी की सेवा करेगा, हर पार्टी के काम आयेगा.
लहर डेस्क