सवालों के घेरे में पप्पू यादव की गिरफ़्तारी

रिजवान रहमान

पप्पू यादव गिरफ्तार हो गए। हमें “जनता के आदमी” की गिरफ्तारी का विरोध करना चाहिए। जी हां, मैं फिर से दोहरा रहा हूं, पप्पू यादव “जनता का आदमी है।” अगर पप्पू यादव “अपराधी रहा है” तो केंद्र और बिहार सरकार किस हद तक अपराधिक प्रवृत्ति की है कि एक “अपराधी रहे व्यक्ति” के सवालों से डर रही है। उसे गिरफ्तार कर लेती है। एक “अपराधी रहा व्यक्ति” जो बाढ़ से लेकर महामारी में घूम-घूम कर लोगों के आंसू पोंछने की कोशिश में दिन-रात लगा रहा। आप सवाल करेंगे, एक अपराधिक पृष्ठभूमि वाला “जनता का आदमी” कैसे कहला सकता है। ये सवाल मेरे अंदर भी आते हैं। लेकिन मैंने जवाब ढूंढने की कोशिश की है। हो सकता है आप इससे सहमत न हो, गुस्सा हो जाएं।

जब सरकारें जन-विरोधी हो जाती हैं। तो आम जनता के बीच से कोई उठ कर उसके दुख-दर्द-पीड़ा बांट लेता है। और वही मेरे लिए “जनता का आदमी” बन जाता है। चाहे वह अपराधिक पृष्ठभूमि वाला ही क्यों न हो। और पप्पू यादव चाहे जो भी रहा हो, जन-विरोधी तो नहीं रहा है। माफ कीजियेगा! अगर पप्पू यादव अपराधिक पृष्ठभूमि वाला है, और “जनता का आदमी” नहीं कहला सकता है, तो आजाद हिंदुस्तान की तमाम सरकारों जनविरोधी और अपराधिक पृष्ठभूमि वाली है। 2021 से गिनते हुए 1947 तक चले जायें। है कोई सरकार जिस पर जनविरोधी होने का आरोप न लगा हो? है कोई सरकार जिसके राज में “स्टेट वायलेंस” का खूनी खेल न हुआ हो? है कोई सरकार जिसमें बेगुनाह न मारे गए हों? है कोई सरकार जिसने वंचित समुदाय को और लूटा न हो?

सरकारेँ नागरिकों के विरूद्ध शारीरिक, संरचनात्मक और सांस्कृतिक हिंसा को अंजाम देता रहा है जो समाज में दिखने वाली हिंसा से लाखों गुना अधिक है। ये खुले तौर पर भी होती हैं और छुपे तौर पर भी। एकाएक इसके क्रूर वर्गीय-जातीय हिंसा के दांत बाहर निकल आते हैं। तब कानूनी और गैर-कानूनी के दरम्यान का फ़ासला खत्म सा होता जाता है।

सरकारें सांप्रदायिक उन्माद को मुंह ताकते हुए देखती रहती है। खास पहचान को मानवाधिकारों से योजनाबद्ध तरीके से वंचित करती है जिसे कश्मीर और उत्तर पूर्व की स्थिति से समझ सकते हैं। विशेष जाति-समूह को उनके दैनिक जीवन की आधारभूत जरूरतों की पहुँच से दूर रखा जा रहा है, इसे ह्यूमेन डेवलपमेंट इंडेक्स में उनके पीछे छूट जाने के रूप में देख सकते हैं। क्या यह स्टेट द्वारा भीतर से की गई हिंसा नहीं है।

वर्तमान में कोविड क्राईसिस में सरकार की निष्क्रियता स्टेट वायलेंस ही है। और इस पर सवाल खड़ा करने वाले जेल में डाले जा रहें। अब ऑकसीजन, राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है। आप किसी अपने की जान बचाने के लिए इसकी मांग करेंगे तो आप रासुका लगा दिया जाएगा। पप्पू यादव ने एंबुलेंस की धांधली पर सवाल उठाने की हिम्मत की तो उसे कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार को एम्बुलेंस चोर को गिरफ्तार करने के बजाये अपराध उजागर करने वाले को गिरफ्तार कर लिया।

जब सरकार हमें मरते रहने के लिए छोड़ चुकी हो तो पप्पू यादव जैसा कोई उम्मीद बन जाता है। हमें अभी उसी पप्पू यादव की ज़रूरत है। कहाँ कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन का आरोप भाजपा के रसूखदार नेता और पूर्व मंत्री राजीव प्रताप रूडी पे लगना चाहिए। उन्होंने ने न सिर्फ कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है बल्कि मानवीय अपराध भी किया है। इस घडी में जब चारों तरफ मौत का तांडव है उस वक़्त स्वास्थ्य सेवा के लिए जरुरी सुविधा एम्बुलेंस को अपने घर में छुपा के रखा। ये सारे एम्बुलेंस कोई रूढ़ि ने अपने पैसे से नहीं ख़रीदे थे बल्कि ये जनता के गाढ़ी कमाई सांसद निधि के पैसे से ख़रीदे गए थे। और इस मुश्किल समय में लोगों की जान बचाने के बजाये ये एम्बुलेंस बालू ढोने का काम कर रहे थे। ये मानवता के विरुद्ध घिनौना अपराध है। हमें उसकी गिरफ्तारी के विरोध में उसके साथ खड़ा होना होगा।