मुसलमानों का वोट तो चाहिए लेकिन उनकी उम्मीदवारी नहीं?

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लोकसभा चुनाव में मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए बिहार में महागठबंधन को मुस्लिम मतदाताओं का वोट तो चाहिए लेकिन उन्हें मुस्लिम नेता (मुस्लिम कयादत) मंजूर नहीं। कुछ ऐसा ही इस बार बिहार महागठबंधन में लोकसभा टिकट के बंटवारा में देखने को मिला है। चाहे खुद को मुसलमानों का मसीहा बताने वाले लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल हो या सेक्युलर होने का दंभ भरने वाली कांग्रेस पार्टी, दोनों की प्रमुख दलों ने मुस्लिम नेतृत्व को खारिज कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने तो अपने हिस्से से एक भी टिकट मुस्लिम नेता को नहीं दिया है।

दरअसल, सबसे हैरानी कांग्रेस के दिग्गज नेता सह राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. शकील अहमद के मधुबनी से टिकट कटने पर हुई। डॉ. शकील अहमद दो बार मधुबनी से सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं। पहले तो यह कहा जाता रहा कि मधुबनी सीट कांग्रेस किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी, लेकिन अंत में गठबंधन धर्म की दुहाई देकर डॉ. शकील अहमद का पत्ता साफ कर दिया गया। इतना ही नहीं, इसी सीट से राजद ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सह दरभंगा के पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी को चुनाव लड़ाने की बात करती रही, लेकिन अंत में उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया। यह सीट महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को दे दी गई। इस तरह एक तीर से महागठबंधन के नेताओं ने डॉ. शकील अहमद और अली अशरफ फातमी का शिकार कर लिया।

वहीं, शिवहर लोकसभा सीट जहां से पहले पूर्व सांसद अनवारुल हक सांसद होते थे, वहां से टिकट के प्रबल दावेदार रहे विधायक फैसल रहमान, अबू दोजाना और मो. शमशेर को दरकिनार कर महागठबंधन ने मुस्लिम चेहरा के नाम पर दिल्ली के ऊर्दू अखबार के संपादक सैयद फैसल अली को टिकट दे दिया है। मूलरूप से गया निवासी सैयद फैसल अली के लिए शिवहर सीट से विपरीत परिस्थिति में चुनाव लड़कर जीतना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव पहले ही यहां से अंगेश सिंह को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर चुके हैं। साथ ही पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल हुई लवली आनंद और झारखंड कांग्रेस के प्रवक्ता मो. शमशेर भी टिकट की रेस में थे। स्थानीय नेता एवं कार्यकर्ताओं की नाराजगी उन्हें झेलनी पड़ सकती है। ऐसे में शिवहर सीट से बाहरी मुस्लिम प्रत्याशी का जीतना लगभग नामुमकिन होगा। यहां यह भी बेहद दिलचस्प है कि जब राजद के पास पहले ही मुस्लिम नेताओं की भरमार थी तो उन्होंने शिवहर में बाहरी प्रत्याशी क्यों थोपा गया ?

बेगूसराय से कन्हैया कुमार के सामने डॉ. तनवीर हसन को उम्मीदवार बनाकर भी महागठबंधन ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देने के नाम पर रस्म अदायगी मात्र की है। टिकट की रेस में रहे राजद के मुस्लिम नेता मो. शफीक खान, विधायक डॉ. शमीम और युवा राजद के प्रदेश अध्यक्ष कारी सोहैब जैसे संघर्षशील, जुझारू और तेज तर्रार युवा नेता की काबीलियत भी महागठबंधन के गांठों में दम तोड़कर रह गई।

मुसलमानों की अनदेखी से नाराजगी

टिकट वितरण में महागठबंधन द्वारा मुस्लिम नेताओं की हुई अनदेखी से मुस्लिम समाज में भारी आक्रोश है। इसका खामियाजा आने वाले वक्त में महागठबंधन के प्रत्याशियों को उठाना पड़ सकता है। लोगों का मानना है कि महागठबंधन के नेताओं को लगता है कि मुसलमान मतदाता उन्हें वोट नहीं देंगे तो आखिर कहां जाएंगे? ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम एनडीए और महागठबंधन के साथ-साथ अन्य दलों के प्रत्याशियों की काबीलियत और सलाहियत देखकर ही मतदान करेंगे।