मातृ स्वास्थ्य योजना- सरकार के कथनी और करनी में बड़ा फर्क

सरकार की मातृ स्वास्थ्य योजना यानी कि मैटरनल हेल्थ स्कीम के उद्देश्य और हकीकत के बीच के बड़े फ़ासले की. अलग-अलग स्टडीज़ के ज़रिये, हमने पाया है कि प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना को और अधिक प्रभावी बनाने की पहल उस तरह से काम नहीं कर पाई है जैसा कि होना चाहिए था या सरकार ने सोचा था. आम चुनाव से पहले, हम भारत सरकार की प्रमुख मातृ स्वास्थ्य योजना का विश्लेषण कर रहे हैं, यह समझने के लिए कि जो महिलाएं इस योजना की हकदार हैं, वे वित्तीय सहायता के लिए संघर्ष क्यों कर रही हैं. 

महाराष्ट्र के नांदेड़ में अंजली वाघमारे की मृत्यु की भयावह स्वास्थ्य संकट के बाद, उनका परिवार अभी भी वह लोन चुका रहे हैं जो उन्होंने अंजली की डिलीवरी के लिए एक निजी ठेकेदार से लिया था. महाराष्ट्र में अस्पताल में भर्ती होने पर अपनी जेब से ज्यादा खर्च करने की यह कोई अकेली घटना नहीं है. एक दूसरा वाक़या है संगीता का, जिन्होंने एक निजी अस्पताल में अपनी तीसरी डिलीवरी के लिए 15,000 रुपये उधार लिए क्योंकि उनका परिवार लड़का होने की स्थिति में कोई कठिनाई नहीं चाहता था. और ऐसा इसलिए है क्यूंकि संगीता ने पहले ही 2 लड़कियों को जन्म दिया, जिसकी वजह से अब उनके परिवार ने लड़का होने की उम्मीद लगा ली थी. महाराष्ट्र में गन्ना काटने वाले परिवार जो कि दिहाड़ी प्रवासी मज़दूर भी हैं, वो संस्थागत डिलीवरी के लिए औसतन 30,000 रुपये का भुगतान करते हैं. कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और अनिश्चित जीवन की वजह से इन परिवारों को अपने मातृत्व अधिकारों तक पहुंचने के लिए उचित दस्तावेज के साथ भी संघर्ष करना पड़ता है. और रही बात मातृ लाभ तक पहुंच के लिए, तो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के तहत उनके संवैधानिक अधिकार में यह एक साफ़ अंतर दिखता है.

कठिन दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया के कारण भी कम महिलाएं प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत भर्ती हो रही हैं. कागज पर, मातृत्व का समर्थन करना महिला सशक्तिकरण या नारी शक्ति को बढ़ावा देने के लिए सरकार की घोषित रणनीतियों में से एक है। इसे साकार करने के दो ज़रूरी साधन “मातृ वंदना योजना” और “जननी सुरक्षा योजना” हैं. दोनों नगद हस्तांतरण योजनाएं, यानी कि कैश ट्रांसफर स्कीम हैं, जो कुछ फ़लां नतीजों पर आधारित हैं. पहली स्कीम का उद्देश्य गर्भावस्था के दौरान ‘आंशिक वेतन हानि’ की भरपाई करना है, और दूसरी का उद्देश्य संस्थागत डिलीवरी को बढ़ावा देना है. 2022 में, सरकार ने मातृ वंदना योजना को फिर से शुरू किया जो अब महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए मिशन शक्ति की समर्थ उप-योजना के तहत है. अब यह एक के बजाय दो जीवित जन्मों पर लाभ प्रदान करता है, लेकिन केवल तभी जब दूसरी लड़की पैदा हो. सरकार के अनुसार, चाइल्ड सेक्स रेश्यो में सुधार करना और बालिकाओं के खिलाफ अपराधों को कम करना है इस योजना का इरादा है.

2022 तक भुगतान तीन किश्तों में जारी किया जाता था, जो कि अब 2 किश्तों तक ही लागू रह गया है. मिशन शक्ति की गाइडलाइन्स के अनुसार, जननी सुरक्षा योजना के साथ अधिकार धारकों को औसतन 6,000 रुपये मिल सकते हैं जिसमें मातृ वंदना योजना के अंडर 5,000 रुपये का किस्त-वार भुगतान शामिल है. दूसरे जीवित बच्चे के जन्म के लिए, डिलीवरी के बाद एक किस्त में 6,000 रुपये जारी किए जाते हैं.  हाल के परिवर्तनों में कीमतों में वृद्धि को एडजस्ट नहीं किया गया है या डिलीवरी पर लगातार उच्च जेब खर्च पर विचार नहीं किया गया है, जैसा कि अंजली और संगीता के मामलों में देखा गया है. 

2023 में अकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव के एक विश्लेषण से पता चला कि मातृ वंदना योजना के तहत मुद्रास्फीति-समायोजित भुगतान में कम से कम 1,600 रुपये की वृद्धि होनी चाहिए थी. यहां तक कि इसी तरह की राज्य योजनाओं – उड़ीसा की ममता योजना और तमिलनाडु की डॉ मुथुलक्ष्मी रेड्डी योजना ने अधिकार धारकों के लिए नगद ट्रांसफर को 10,000 रुपये और 18,000 रुपये तक संशोधित किया है. इसके अलावा, महाराष्ट्र में प्रवासी महिलाओं ने बेहनबॉक्स को सूचित किया कि उनके पास किसी भी मातृत्व स्वास्थ्य योजना तक पहुंचने के लिए ज़रूरी दस्तावेज हैं ही नहीं. पिछली शर्त जो थी, कि पति का आधार कार्ड प्रदान किया जाना चाहिए, उसे हाल ही में हटा दिया गया. पहली किस्त के लिए, गर्भवती महिला को अपना आधार कार्ड, मातृ एवं शिशु संरक्षण (एमसीपी) कार्ड के साथ प्रस्तुत करना आवश्यक है, जो मातृ और शिशु स्वास्थ्य के लिए सेवाओं के उपयोग और बैंक या डाकघर खाते के विवरण को रिकॉर्ड करता है। दूसरी किस्त के लिए एमसीपी कार्ड के साथ-साथ बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र यानि बिरथ सर्टिफिकेट भी आवश्यक है। हर कदम पर, महिलाओं को पंजीकरण से लेकर आधार को बैंक खाते से जोड़ने या यहां तक कि आधार को अपडेट करने तक कई फॉर्म भरने पड़ते हैं. दस्तावेज़ीकरण और जाँच की यह मुश्किल व्यवस्था, अक्सर हाशिए पर रहने वाली महिलाओं द्वारा स्पष्ट रूप से व्यक्त या प्राप्त नहीं की जाती है, और यहाँ तक कि उन्हें योजना के तहत उनके अधिकार से भी वंचित कर देती है. 2021 में, 72% योग्य नागरिक आधार से जुड़े थे और 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 98% हो गया; लेकिन उसी साल कम गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माँओं ने योजना के तहत लाभ की मांग की, जो दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है.

इस स्कीम के तहत सरकार दायरा तो बढ़ा रही है, पर लाभ घटते ही जा रहे हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा सूचना के अधिकार के तहत दी गई जानकारी के अनुसार, योजना के तहत लाभ प्राप्त करने वाली गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माँओं की संख्या 2019-20 से घट रही है. वहीं, 2022-23 और 2023-24 के बीच भुगतान प्राप्त करने वाले अधिकार धारकों की संख्या में भी गिरावट आई है. 2022-23 में 312 लाख से अधिक गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माँओं को भुगतान प्राप्त हुआ, जबकि 2023-24 में केवल 22 लाख को ही भुगतान मिला. यह एक चिंताजनक विकास है क्योंकि इसका मतलब  यह है कि न केवल पहले जीवित जन्म के लिए पंजीकृत अधिकार धारकों को लाभ से वंचित किया जा रहा है, बल्कि दूसरे को भी लाभ से वंचित किया जा रहा है. साथ ही, यह भी ज़रूरी नहीं है कि भुगतान प्राप्त करने वाले अधिकार धारकों को सभी किश्तें प्राप्त हुई हों. 2020 में नीति आयोग ने यह भी नोट किया था कि किस्त-वार भुगतान में देरी होती है और कम अधिकार धारकों को अंतिम किस्त प्राप्त होती है.

नामांकित अधिकार-धारकों की घटती संख्या का अनुवाद कम बजटीय प्राथमिकता में देखा जा सकता है जब 2020-21 में वर्ष के मध्य में बजटीय व्यय में लगभग 50% की कटौती की गई थी. अब देखा जाए तो अभी बहुत लम्बा सफ़र तय करना है सरकार को. अंजली और संगीता की तरह, 2022 में कम से कम 198 लाख गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माएँ थीं जो योजना के तहत दो जीवित जन्मों के लिए लाभ उठा सकती थीं. हालाँकि, उस वर्ष केवल 59 लाख ही नामांकित हुईं थीं. योजना के तहत अगर कुछ प्रस्ताव रखे जाएं तो कहा जा सकता है कि ऑनलाइन आवेदन के ज़रिये स्व-लाभार्थी पंजीकरण और भुगतान के सुचारू वितरण के लिए आधार और आईएफएससी का सत्यापन यानि वेरिफ़िकेशन होना हो सकता है. लेकिन, जटिल दस्तावेज़ीकरण, लागत में वृद्धि, कम इंटरनेट उपयोग, बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच और योजना के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता के मुद्दे को पर्याप्त रूप से संबोधित किए बिना, कॉस्मेटिक बदलाव अप्रभावी बने रहेंगे. 

यह आर्टिकल नारीवाद दृष्टिकोण के नज़रिये से बेहनबॉक्स के आम चुनाव 2024 कवरेज का एक हिस्सा है जो कि तान्या राणा द्वारा रिसर्च और लिखित, प्रांजली शर्मा द्वारा अनुवादित की गई है. अधिक जानकारी के लिए हमसे इसी तरह जुड़े रहें, और हमें सुनने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.