जनता के साथ वादा और कंपनियों से सौदा का त्योहार चुनाव

रफी अहमद सिद्दी – दिल्ली
दिल्ली और आसपास की फैक्ट्रियों के पास बसीं मजदूर बस्तियों में रौनक दिखाई दे रही है। यहां कुछ लोग घूम रहे हैं, उनकी बांछें खिली हुई दिखाई दे रहीं हैं। वे हर किसी से बड़े प्यार से मुस्कुरा के बात कर रहे हैं। इसके बीच बिहार के रहने वाले रमेश दो साल पहले तक एक किसान थे और अब उनकी पहचान एक प्रवासी मजदूर के रुप में है। रमेश समझ नहीं पा रहे हैं कि मज़दूरों के प्रति अचानक इतना प्यार कहां से उमड़ रहा है क्योंकि उन्होंने दो साल में अब तक अपनी फैक्ट्री या बस्ती में शायद ही किसी आदमी से इस तरह की मीठी बोली नहीं सुनी है।
रमेश से मेरी मुलाकात कुछ दिनों पहले हुई थी, अब उनके बारे में सोचता हूं तो हंसी आती है, और एक उम्मीद भी कि शायद अब तक वे समझ चुके होंगे कि चुनाव आ गए हैं और मजदूरों की बस्ती और फैक्ट्रियों में घूमने वाले वो लोग चुनाव की वोट काटने वाले किसान हैं। जो हर बार चुनावों के वक्त ही दिखाई देते हैं। वोट की फसल काटने वालों के लिए फैक्ट्रियों और बस्तियों में रहने वाले लोग एक सुंदर नज़ारा होता है। जितना ये लोग बढ़ते हैं फसल उतनी बेहतर मानी जाती है। इस बार ये लोग और भी खुश हैं क्योंकि इस बार फसल का उत्पादन काफी ज्यादा है और उन्हें पता है कि सभी के हिस्से कुछ न कुछ जरूर आएगा और ऐसे में सभी की कोशिश है कि वे ज्यादा से ज्यादा फसल काट लें।
लोकतंत्र का पांच साला त्यौहार आ चुका है। इस त्यौहार में नागरिकों की अहमियत बढ़ रही है क्योंकी इन नागरिकों की फसल पाक चुकी है और कटाई से केवल मुनाफा है नुकसान कुछ नहीं वो है वोट की फसल, जिसे हर पांच साल में काटा जाता है। और मजदूर बने इंसान की हालत को इससे भी दोयम दर्जे की हो चुकी है। हालांकि मजदूर कहते हैं कि जब वे किसान थे तो भी हालात कमोबेश ऐसे ही थे। ऐसे मौके कम ही आते हैं जब फैक्ट्री के मालिक-मजदूर और बस्ती सब खुश हो जाते हैं और फिलहाल मौका ऐसा ही लग रहा है।
नेताओं के ठाठ वोट के लाभ पर निर्भर करता हैं वोट उत्पादन बढ़ने के लिए पंचवर्षीय लोकतंत्र की कंपनियों के रजिस्ट्रेशन की तारीख भी घोषित हो चुकी है अब जल्दी से जल्दी वोट उत्पादन के माध्यम से प्रजातंत्र के ठेकेदारों की टोलियां वोट लाभ के लिए भ्रमण कर रही हैं इस प्रक्रिया में, वोट उत्पादक अर्थात वोट मज़दूरी से राष्ट्रीय नीतियों, प्रजातंत्री मूल्यों, और सार्वजनिक सेवाओं के महत्व को संज्ञान में लेकर लोकतंत्र ठेकेदार अपने साथ हम मज़दूरों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
मज़दूरों के वोट के लाभ और नेताओं के ठाठ बनाये रखने के लिए लोकतंत्र फैक्ट्री के ठेकेदार अपने नेतृत्व के माध्यम से नागरिकों को संगठित करने और सकारात्मक परिवर्तनों को प्रेरित करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में सफलता के लिए, सार्वजनिक समानता, न्याय, और सहयोग के सिद्धांतों पर ध्यान दिलाया जा रहा है। संविधान का पाठ बार बार पढ़ाया जा रहा है।
इस चुनावी त्योहार में कंपियों के मालिकों के भी बांछें खिली हुई देखि जा सकती है , हर कोई जुगार ढूंढ रहा है की किसी तरह राजनीतिक पार्टी के करीब आजाएं , क्यों की ये पाँच वर्षीय चुनाव ही होता है जब राजनीतिक पार्टियां जनता के साथ वादा और कंपनियों से सौदा करती है। कंपनियां यह सौदे के नफे और नुकसान के तौल में परिसान दिखता है की किस पार्टी को ज्यादा समर्थन दिया जाए , जो पार्टी सत्ता में जीत के साथ आएगी सरकार बनाएगी वही आगे चलकर कंपनी के लिए मजदूर विरोधी कानून बनाएगी , टैक्स में छूट देगी, कर्ज माफी होगी , फैक्ट्री लगाने के लिए मुफ़्त में sez योजना के तहत जमीन , मशीन खरीदने के लिए कर में छूट और मनमाने तरीके से इन्डस्ट्रीअल उत्पाद के दामों में बढ़ोतरी के लिए राजी होंगे। इस चुनावी त्योहार में राजनीतिक पार्टियां , सरकारी अधिकारी और फैक्ट्री के मालिक और साथ में चुनावी पत्रकार सत्ता पक्ष के समर्थन में सबसे जायद व्यस्त पाए जाते हैं और अपनी संभावनाओं की तलाश में रहते हैं , बस मजदूर और निर्धन केवल 500 -1000 या शराब के एक बोतल में समर्थन को तैयार हो जाता है बाकी के सभी बड़ी मछली पकड़ने की तलाश में होते हैं।