कोर्ट के आदेश के बाद भी कश्मीरी राजनितिक कैदी जेलों में बंद क्यों ?

रिज़वान रहमान
हिन्दुस्तान के अलग-अलग जेलों में क़ैद किए गए कश्मीरी राजनितिक बन्दी, इस कोविड संकट में भी यातनाएं झेल रहे हैं। उन्हें मेडिकल हेल्प नहीं मिल रही है। ऐसा लग रहा है कि घर-परिवार से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर जेल की दिवारों से घिरे हुए ये कश्मीरी, असहाय महसूस करने और मानसिक पीड़ा से गुजरते रहने के मकसद से ही रखे गए हैं। इन जेलों में दम तोड़ चुके कई कैदी की सूचना भी उनके घर वालों को तब मिली, जब तक बहुत देर हो चुकी थी। इसे सबसे खराब किस्म के मानवीय संकट से अलग कुछ और भी नाम दिया जा सकता है क्या?
इन राजनीतिक कैदियों को पहले उनकी विचारधारा के लिए जेलों में डाला गया। और फिर हिन्दुस्तान के अलग-अलग हिस्से में भेज कर क़ैद में रखा गया है। कोविड-19 की भयावहता को देखते हुए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने क़ैदियों को आज़ाद करने का आदेश दिया था। तब से अब तक पूरे देश में लगभग 45,000 कैदियों को रिहा किया गया है। लेकिन कश्मीरी राजनितिक बन्दी अब भी जेलों में हैं। बीते 7 मई को भी अदालत ने दुहराते हुए कहा, “चिंताजनक हालात को देखते हुए हमें जेलों में भीड़ कम करना होगा। ” लेकिन क्या छोड़े जाने वाले क़ैदियों में कश्मीरी राजनितिक बन्दी शामिल हो पाएंगे?

11 मार्च, 2020 को, गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया था कि “5 अगस्त, 2019 को आर्टिकल 370 खतम होने के बाद से कुल 7,375 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।” गृह मंत्रालय के मुताबिक, “गिरफ्तार व्यक्तियों में प्रो-फ्रीडम एक्टीविस्ट, प्रोटेस्ट में भाग लेने वाले युवा, राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता शामिल थे। ये गिरफ्तारियां 5 अगस्त, 2019 से 29 फरवरी, 2020 तक की गईं. इनमें से 451 क़ैदी के अलावा सभी छोड़ दिए गए हैं। 399 को पीएसए के तहत हिरासत में रखा गया है, जबकि बाकी 55 सीआरपीसी 107 के तहत गिरफ्तार किए गए हैं।
कश्मीरी राजनीतिक बंदी को लेकर भारत सरकार के इन आंकड़ों पर दी जम्मू एंड कश्मीर कोलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (JKCCS) ने आपत्ति दर्ज करते हुए विरोध जताया है। JKCCS का मानना है कि अभी भी लगभग 1,000 से अधिक कश्मीरी विभिन्न जेलों में बंद हैं। इस संगठन के कॉओर्डिनेटर खुर्रम परवेज़, महामारी के दौरान कश्मीरी राजनितिक बन्दियों के साथ भारत सरकार के रवैये पर बोलते हुए कहते हैं, “कश्मीरी पूरे भारत के विभिन्न जेलों में प्रिवेंटिव डिटेंशन में हैं। यह मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है। उन्हें फौरन रिहा किया जाना चाहिए। अगर महामारी के बीच एक भी कैदी के साथ कुछ भी होता है तो उसका जिम्मेदार सरकार होगी।”