22 मई 1987 है इतिहास का काला दिन

मेरठ : शहर के हाशिमपुरा मोहल्ले में 19 पीएसी के जवान प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह के साथ तलाशी अभियान के नाम पर घुसते हैं फिर लगभग 40-50 नौजवान मुस्लिम लड़को को एक ट्रक में भर कर ले जाते हैं रात के वक़्त पॉइंट ब्लेंक से गोली मार के कुछ लाशो को गंग नहर मुरादनगर में फेंक दिया जाता है और कुछ लाशो को हिंडन नदी में फेंक दिया जाता है । जिसमे 42 मुस्लिम नौजवान मर जाते हैं जबकि 5 गोली लगने पर भी बच जाते हैं । पीएसी के जवान इस लिए बुलाए गए थे क्योंकि उस वक़्त के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सरकार ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का निर्देश दिया था जिसके बाद देश मे कई जगह दंगे हुए ।
मेरठ शहर में भी दंगे हुए थे जिसे कंट्रोल करने के लिए पीएसी को बुलाया गया था । उस वक़्त केंद्र में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी थे और राज्य में काँग्रेस के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे । ये सारी कहानी महात्मा गाँधी और मौलाना आज़ाद के भारत की ही है ना कि हिटलर के नाज़ी जर्मनी की । उस वक़्त के नेताओ का आरोप है कि तत्कालीन मिनिस्टर ऑफ स्टेट होम पी.चितम्बरम ने सारा खेल रचा था मुसलमानो को सबक सिखाने के लिए जैसे 1984 में सिखों को सिखाया गया था । राजीव गाँधी को डर था कि अगर इन्क्वायरी बैठाई गयी तो चितम्बरम का नाम आ जाएगा जिससे सरकार की किरकिरी होगी ।
1991 आते ही लगभग 4 साल बाद ये मुद्दा इंटरनेशनल मुद्दा बन चुका था । 1996 में लगभग 9 साल बाद पहली चार्जशीट कोर्ट में फ़ाइल हुए और फिर 2006 में मतलब 19 साल बाद पहली बार चश्मदीद की गवाही हुई । स्टेट स्पोंसर्ड जेनोसाइड में शामिल लोगों को बिना सरकार के चाहे कौन बचा सकता है । 2015 में यानी घटना के 28 साल बाद सारे अभियुक्त तीस हजारी कोर्ट द्वारा बाइज़्ज़त बरी कर दिए जा चुके हैं क्योंकि उनके खिलाफ जाँच एजेंसी सबूत नही जुटा पाई।
उस वक़्त की काँग्रेस पार्टी जिसकी उत्तरप्रदेश में सरकार थी ने एक जान की कीमत मात्र 20 हज़ार लगाई थी मुआवजा के नाम पर । फिर सुप्रीम कोर्ट में ( पीपुलस यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट ) ने मुआवजा बढ़ाने और इन्क्वायरी की मांग की थी जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने 20 हज़ार और बढ़ाने को बोला था सरकार को । 1994 में क्राइम ब्रांच सेंट्रल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट ने राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी जो आजतक पब्लिकली नही लाया गया । इस घटना के 12 साल बाद तक हाशिमपुरा मोहल्ले में कोई शादी नही हुई थी।
31 साल के लंबे इंतेज़ार के बाद मिला था न्याय । 31 अक्टूबर 2018 को हाशिमपुरा नरसंहार में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया था जिसमे 16 (पीएसी) पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सज़ा हुई थी । दोनों जांबाज़ महिला वकीलों वृन्दा और रेबेका मम्मेन जॉन को भी मुबारकबाद इस लंबी लड़ाई के लिए । और मुबारकबाद और शुक्रिया इस केस के सबसे अहम व्यक्ति रणदीप सिंह बिश्नोई जी का जो इस केस के गवाह थे । शुक्रिया प्रवीन जैन साहब का जिनके द्वारा खींचे गए फोटोज़ को माननीय हाइकोर्ट ने सबूत माना ।
ज़हरीले नाग कितना भी ज़हर घोल ले इस मुल्क़ में लेकिन कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे हम लोगों को जुदा नहीं कर पाएंगे । देखिये मुस्लिमों को इंसाफ के लिए कैसे एक पंजाबी औऱ ईसाई वक़ील केस लड़ते हैं एक हिन्दू गवाही देता है एक जैनी के खिंचे गए फ़ोटो को सबूत माना जाता है । ख़ैर में उन लोगों से कहना चाहूँगा जो लोग कल राजीव गाँधी को श्रीदांजलि दे रहे थे क्या आज हाशिमपुरा के बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों पर 2 लाइन लिख सकते हैं जो सरकार द्वारा प्रायोजित जेनोसाइड में बर्बरता से मारे गए । मेरी तरफ से उन सभी लोगो को नम आँखों और भारी दिल से खिराजे अक़ीदत और उनके घर वालो के सब्र को सलाम ।
लहर डेस्क