कैसा लोकतंत्र जहाँ के नागरिकों को मतदान से वंचित रहना पड़े?

फाइल फोटो - संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए


सुल्तान अहमद

17 वीं लोकसभा चुनाव के दुसरे चरण का मतदान संपन्न हुआ, भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश लोकतंत्र के आस्था का पर्व मना रहा है. हर किसी की जिम्मेदारी तय की जारही है और ऐसा मना जाता है की लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब नागरिक जागरूक होंगे ,अपने कर्तव्यों की निष्ठा पूर्ण निर्वहन करेंगे. भारत में हर नागरिक जिनकी उम्र 18 साल से अधिक है निर्वाचन के लिए पंजीकृत हैं और वह अपने संवैधानिक अधिकार मत दान के अधिकारों को अभ्यास करेंगे. यह राज्य की जिम्मेदारी है की वह नागरिकों के मतदान के अधिकारों की रक्षा करे और उन्हें वह सहुलतें मुहैया कराये जिससे वह अपने मताधिकार का उपयोग कर सकें. आबादी का बड़ा हिस्सा काम की तलाश में एक राज्य से दुसरे राज्य या अपने ही राज्य में एक शहर से दुसरे शहर, घर से मीलों दूर काम कर जिंदगी वसर करते हैं.  टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सन 2014 में कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 83 करोड़ 40 लाख थी उसमें  से 28 करोड़ जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग ही नहीं किया, तकरीबन 60 % आबादी ऐसे लोगों की थी जो मतदान करना चाहते थे लेकिन उनके पास मतदान करने का साधन नहीं था यानी की यह सभी लोग पलायन कर दुसरे शहर में रह रहे थे और उनके मौजूदा  निवास पर मतदान पहचान पत्र नहीं था इसलिए अगर उन्हें वोट देना है तो वापस अपने घर जाकर वोट देना होगा और यह  कई कारणों से संभव नहीं.

श्रोताओं आप को बता दें की जनप्रतिनिधि (representation of peoples act 20) अधिनियम की धारा 20 कहती है कोई भी भारतीय नागरिक जहाँ वह रह रहा है मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र के लिए अपना नामांकन कर सकता है और चुनाव आयोग द्वारा चयनित मतदाता नामांकन केंद्र पर जाकर या चुनाव आयोग के वेबसाइट पर ऑनलाइन अपना नामांकन कर सकता है और वहीं अपने  मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को और मजबूत बनाने में अपना आना योगदान दे सकता है. चुनाव आयोग की तरफ से ऐसा दावा भी किया जाता रहा है की कोई अंतरराज्यीय प्रवासी नागरिक अपने देश में जहाँ वह रह रहा है वहां आवेदन कर वोट डालने के लिए नाम दर्ज कर पात्रता हासिल कर सकता है  और ऐसा करने पर पुराने पते से हटाकर उसका नाम नाम नए निर्वाचन क्षेत्र में दर्ज कर दिया जाएगा. लेकिन वास्तव मैं ऐसा होता नहीं, कई मतदाता जो खास कर कम पढ़े लिखे  हैं वह  फार्म भरने की पेचीदगियों को नहीं समझते, नए निर्वाचन क्षेत्र में नाम दर्ज करने के लिए आवास का सबूत आसानी से उपलब्ध नहीं होता, मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट नहीं देते जिसकी वजह से उनका नाम नए निर्वाचन क्षेत्र में दर्ज होना असंभव होजाता है.

अंतरराज्यीय प्रवासी नागरिक चाहते हैं की चुनाव आयोग या राज्य सरकार  ऐसी सुविधा प्रदान करे जिससे उनको मताधिकार की सुविधा मिले , पिछले साल अगस्त माह में लोकसभा में बिल पारित किया गया जिसके तहत अप्रवासी भारतियों यानी की भरता का वह नागरिक जो भारत से बाहर रहता हो के लिए वोट देने की सुविधा प्रदान करना है तो भारत के अन्दर ही अंतरराज्यीय प्रवासी नागरिकों को वोट देने की सुविधां क्यों नहीं प्रदान की जासकती जिनकी संख्या भी अधिक है. इस बिल का भारत के अन्दर ही कई राजनितिक पार्टियाँ विरोध कर चुकी हैं और उन्हों ने मांग किया है अगर अप्रवासी भारतियों को मताधिकार की सुविधा दी जाती है तो अंतरराज्यीय प्रवासी नागरिकों को भी सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जो अपनी जीविका की तलाश में भारत के अन्दर पलायन करते हैं .

श्रोताओं आप बखूबी जानते हैं की हिंदुस्तान में अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार (नियमन और सेवा की शर्त) अधिनियम 1979 हैं अगर इसका उपयोग नियमित हो तो सभी कामगारों का पंजीकरण होगा काम की जगह पर बेहतर सुविधाएँ सुनिश्चित किया जा सकेगा और उन्हें आसानी से चिन्हित कर वोट डालने के लिए प्रेरित और पंजीकृत भी किया जा सकेगा.

आप जनाते होंगे की भारत की जातीय और सामजिक संरचना ऐसी थी सदियों तक भारतियों को अपने स्थान पर रहने के लिए विवस किया जाता रहा अब नवउदारवादी संरचना जिंदगी को बेहतर बनाने की लालसा लिए भारतीय आज पहले से कहीं अधिक बाहर निकल रहे हैं इसलिए जरूरी है की नागरिकता के विचारों का नियमित पालन हो। आखिरकार अंतरराज्यीय प्रवासी न केवल इमारतों, ईंटों,  सफाई, ट्रकों,  कपड़ों की सिलाई, गाड़ियों, कल पुर्जों और अन्य प्रकार के सामानों का निर्माण करते हैं। बल्कि देश भर में उनकी आवाजाही भारत के विचार को उसकी गरीब और कमजोर आबादी के बहुमत के लिए एक ठोस और वास्तविकता बनाता है। वह अपने स्तर से भारत का निर्माण करते हैं। राजनेताओं, विधायिकाओं और संस्थानों जैसे कि भारत के चुनाव आयोग को उनके चुनावी मताधिकारो के संरक्षण को संज्ञान में लेने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अंतरराज्यीय प्रवासी नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग नागरिकों के रूप में खुल कर करें, भले ही चुनाव के दिन वह भारत के अन्दर कहीं भी रह रहें हो। अंतरराज्यीय प्रवासी कामगारों का चुनावी प्रक्रिया / मताधिकारों से वंचित रहना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को बीमार करता है।

आप वोट न डालने की दर्द को बेहतर समझते हैं आप खुद ही बताएं की चुनाव आयोग को क्या करना चाहिए ताकि आप के वोट डालने का अधिकार सुनिश्चित हो जहाँ आप रहते हैं? क्या कभी ऐसा हुआ जब आप वोट डालना चाहते थे लेकिन घर दूर होने की वजह से मतदान नहीं किया हो ? क्या कभी आप ने मौजूदा स्थान पर अपना नामांकन कराया ? किस प्रकार की परेसनियों का सामना करना पड़ा? लोकतंत्र को मजबूत करने में आप का योगदान कैसा हो? अपना कमेंट्स जरूर लिखें , आपके सुझाव दुसरे पाठकों के ज्ञान को बढ़ाएगा.