सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अविलम्ब रोका जाना चाहिए

प्रेमकुमार मणि

डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स की किताब ‘ फ्रीडम एट मिडनाइट ‘ में उल्लिखित एक प्रसंग के अनुसार आखिरी ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटन के सरकारी आवास वायसराय हाउस पर एक रोज गांधीजी पहुँचे जो अभी का राष्ट्रपति भवन है। भवन की भव्यता देख गांधी विस्मित थे। सर्वविदित है कि माउंटबेटन बस भारत को आज़ादी दिलाने के कार्यक्रम को लेकर ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली द्वारा भेजे गए थे। भारतीय नेताओं को भी इन सबकी जानकारी थी। गाँधी को मालूम था कि आज़ादी आसन्न है और यह पूरा भवन जल्दी ही भारतीयों के हाथ होगा।

गाँधी का अपना आकर्षण होता था। माउन्ट बेटन की बेटी पामेला ने अपने दिल्ली प्रवास की स्मृतियों को एक किताब में लिखा है। गांधी के वायसराय हाउस आते ही माउंटबेटन का पूरा परिवार उनके इर्द -गिर्द हो जाता था। बातचीत शुरू हुई ,तो गाँधी ने हाउस की भव्यता निहारते हुए बेतकल्लुफ अंदाज़ में कहा – ‘ मैं इसमें हॉस्पिटल बनवाऊँगा। इसकी हमारे यहाँ बहुत जरुरत है।

इससे पहले एक हिंदी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने अमीरों की हवेली को गरीबों की पाठशाला बनाने का ख्वाब देखा था –
अमीरो’ की हवेली आज बनेगी गरीबों की पाठशाला
पासी कुम्हार तेली चमार ,खोलेंगे अँधेरे का ताला
तो यह आज़ादी के इर्द -गिर्द के हमारे ख्वाब थे। राष्ट्रपिता रायसीना हिल के भव्य वायसराय हाउस को अस्पताल में तब्दील करना चाहता था ,तो अपने समय का एक बड़ा कवि अमीरों की हवेलियों को पाठशाला बनाना चाहता था। शायद इसलिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य की अहमियत उन्हें मालूम थी।

हमारी साक्षरता उन दिनों नगण्य थी। गाँव-कस्बों के अधिकांश बच्चे कभी स्कूल की देहरी नहीं देख पाते थे। स्कूल थे भी बहुत कम। गाँव के अधिकांश स्कूल झोपड़ियों में और पेड़ तले चलते थे। गुरु जी और स्कूलों की तत्कालीन हालत पर कवि नागार्जुन ने एक कविता लिखी है ‘ दुःखहरण मास्टर ‘। उन दिनों हर साल देश के किसी न किसी कोने में महामारियाँ आती थीं। व्याधियाँ तो देश भर में हरदम होती ही रहती थीं। लाखों लोग प्रतिवर्ष चेचक , मलेरिया, टायफायड और हैजा वगैरह से मरते थे। भूख -कुपोषण और दूसरी प्राकृतिक त्रासदियों से मरने वालों की संख्या अलग थी। इन सब पर बहुत मुश्किल से काबू पाया गया।

पिछले और इस साल की कोरोना महामारी ने बतलाया कि आज भी हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जितने अस्पताल प्रति हजार की आबादी पर होने चाहिए, उससे आज भी हम बहुत दूर हैं। डाक्टरों और दूसरे पारा मेडिकल स्टाफ की बहुत कमी है। इस कोरोना ने यह बतलाया है कि हमारे अस्पताल नाकाफी हैं। साधन और चिकित्सक तो और भी कम। अस्पतालों का हाल यह था कि वहाँ ऑक्सीजन की अनुपलब्धता थी। इस इक्कीसवीं सदी में ऐसा होना अपराध है। इसीलिए लोगों ने इसे सरकारी नरसंहार कहा। यह कहने वालों की केवल खीझ नहीं है। सरकारी तौर पर की गई लापरवाही ऐसी ही थी। पहली नजर में ही यह सब जानबूझ कर किया प्रतीत होता था। पिछले साल की महामारी ने पर्याप्त समय दिया था कि हम अपने स्वास्थ्य ढाँचे को ठीक कर लें।

सरकार की प्राथमिकता देखिए। इस महामारी काल में उसने सेंट्रल विस्टा रेडेवलॅपमेंट परियोजना की शुरुआत की है ,जिसके अनुसार राष्ट्रपति भवन ,संसद भवन और आसपास के इलाकों का पुनर्संस्कार किया जाएगा। पिछले साल दिसम्बर में यह आरम्भ हुआ है और इसे 2024 तक पूरा होना है। सूचनाओं के अनुसार अभी इस पर 20000 (बीस हजार करोड़ ) खर्च स्वीकृत हुआ है। जाहिर है इसे बढ़ाया ही जाएगा। यूँ बीस हजार करोड़ की राशि ही कितनी अहमियत रखती है।

रायसीना हिल और उसके इर्द -गिर्द के सरकारी-क्षेत्र को लुटियंस जोन कहा जाता है। यह कुछ अलकापुरी की तरह की दुनिया है। पौराणिक स्वर्गलोक जैसा। एडविन लुटियंस ने पिछली सदी में इस इलाके को अपने वास्तु -कौशल से सँवारा था। अभी उसे बने बमुश्किल सौ साल हुए हैं। वे पूरी तरह बुलंद भी हैं। दुनिया भर के वास्तु -प्रेमी इस जोन को देख कर मुग्ध होते हैं। उन सब की देख -रेख पर हर वर्ष करोड़ों रुपये यूँ भी व्यय होते हैं। उनकी भव्यता अभी भी बरक़रार है लेकिन प्रधानमंत्री जी को यह फीका -फीका लग रहा है। शाहजहां ने यदि ताजमहल बनाया था तो वह सेंट्रल विस्टा तो सजा ही सकते हैं।

लेकिन मुझे एक मगही कहावत याद आ रही है ; गोइठा में घी सुखाना . यानि सम्पदा की बर्बादी। क्या यह कुछ ऐसा ही नहीं है ? मुल्क में इतनी आवश्यक चीजें करने को शेष हैं ; ऐसे में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का लिया जाना एक अपराध ही कहा जाएगा। उस राशि से देश भर के स्वास्थ्य संगठन को मजबूत किया सकता था। मैं समझता हूँ इससे देश भर के हर जिले में एक नया अस्पताल बनवाया जा सकता था या कम से कम चालीस यूनिवर्सिटियों को संसाधनों से युक्त और आधुनिक बनाया जा सकता था।

प्रधानमंत्री हमेशा अपने दरिद्रता भरे बचपन को भुनाते हैं। यदि बचपन में उन्होंने सचमुच चाय बेची होती और आर्थिक संकट देखे होते तो उस तबके के बच्चों के लिए उन्होंने कुछ किया होता। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता के. कामराज ने बस छठी जमात तक पढाई की थी। उनके पिता की मृत्यु हो गई और उन्हें अपनी दादी ,माँ और बहन की परवरिश के लिए असमय मजदूरी करनी पड़ी। उनकी पढाई छूट गई। अपनी मिहनत और लगन से राजनीति में उन्होंने मुकाम हासिल किया। जब वह मुख्यमंत्री बने ,तब उन्हें अपना बचपन याद आया।

उन्होंने तय किया कि अब किसी बच्चे की असमय पढाई बंद नहीं होने दूँगा। उन्होंने बहुत परिश्रम से साधन जुटाए और स्कूली बच्चों के लिए मध्यान्न भोजन, वस्त्र और मुफ्त किताबों का इंतजाम किया। ये बच्चे अधिकतर पिछड़ी और दलित जातियों के ही होते थे। उन सब की किस्मत को उन्होंने संवारा, लेकिन कभी अपनी जाति-बिरादरी का हवाला सरेआम नहीं दिया ,जैसे मौजूदा प्रधानमंत्री करते हैं। वोट मंगाते समय वह चायवाला और पिछड़े जात-जमात का हो जाते हैं और जब सत्ता के गलियारे में पहुँच जाते हैं ,तब पूंजीपतियों की गलबाँही करते हैं। यह सेंट्रल विस्टा परियोजना भी अमीरों को लाभ पहुँचाने के ख्याल से किया गया है।

राजनेताओं को संभव सादगी का जीवन जीना चाहिए। मैं अतिवादी सोच का नहीं हूँ ,लेकिन सोचता हूँ ,दुनिया के अनेक बड़े नेताओं ने संयम -सादगी का जीवन जिया था। लेनिन, गाँधी, हो ची मिन्ह आदि इसके उदाहरण हैं। गाँधी ने भंगी बस्ती की असुविधाओं में रह कर भी राजनीति की थी। आज विधायकों और सांसदों को इंदिरा आवास के स्तर से अधिकतम पाँच गुनी सुविधा मिलनी चाहिए।

लुटियंस जोन का परिसंस्कार यह होना चाहिए कि वहाँ गरीबों को बड़ी संख्या में जमुना पार से लाकर बसा दिया जाय ,ताकि सांसद लोग नितप्रति उनके जीवनस्तर को देखते रहें। लुटियंस जोन को किसी भी तरह सामान्य भारतीय बसावटों से बहुत भिन्न नहीं होना चाहिए। सांसद इसी देश की जनता के प्रतिनिधि हैं। अपनी जनता से उन्हें एकाकार होना चाहिए। लुटियंस जोन के प्रस्तावित परिसंस्कार से वह स्वर्गलोक का प्रतिरूप बनेगा। उसमें निवास करने वाले सांसद -मंत्री तब एक दूसरी दुनिया के नागरिक हो जाएंगे। लोकसभा परलोकसभा बन जाएगी।

देशवासियों से मेरी अपील है कि पूरी ताकत से इस परियोजना को स्थगित करने हेतु अपनी आवाज बुलंद करें। यह राष्ट्रीय अपव्यय है। इसे रोकना एक राष्ट्रीय मुद्दा बनना चाहिए। हर ओर से आवाज उठे। इस परियोजना की राशि को शिक्षा ,स्वास्थ्य और कृषि के मद में खर्च किया जाना चाहिए।

(लेखक बिहार विधान परिषद् के पूर्व सदस्य रहे हैं )