विनोद कापरी

सिस्टम के नाखून नुकीले हो गए है
दांत और भी पैने

अब उसे तुम्हारी नौकरी नहीं खानी
ना उसे है तुम्हारी रोटी की भूख
उसे तुम्हारी आज़ादी भी नहीं
चाहिए
और ना ग़ुलामी

उसे अब चाहिए मौत
मौत भी सौ दो सौ नहीं
लाखों मौत
उसे चाहिए
खून
शव
श्मशान

सिस्टम के नाखून नुकीले हो गए हैं
दाँत और भी पैने