सरकारी रसूखवाले ही कर रहे हैं कोरोना से जुडी दवाइयों और अन्य सामग्रियों की कालाबाज़ारी

सौमित्र रॉय
अभी हाल ही में दिल्ली पुलिस ने लोधी कॉलोनी के एक बार में छापा मारकर 419 ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर बरामद किए। इनकी कालाबाज़ारी की योजना थी। जिन 4 लोगों को पकड़ा गया, वे बड़े रसूखदार हैं। खान मार्किट में उनकी कई दुकानें हैं। अदालतों की लगातार टिप्पणियों के बाद भी सरकारें जीवनरक्षक सामानों की जमाखोरी और कालाबाज़ारी नहीं रोक पा रही है। जमाखोरी का यह मामला केवल ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर तक सिमित नहीं है बल्कि जीवन रक्षक दवाइयां और कोरोना उपचार से जुड़े अन्य सामग्रियों की भी खूब कालाबाज़ारी चल रही है। और नाही यह दिल्ली तक सिमित हैं, ऐसे कालाबाज़ारी देश के हर कोने में चल रही है।
जानते हैं क्यों? क्योंकि बेशुमार दौलत के मालिक रसूखदार इन सब पर पहले कब्ज़ा जमाना चाहते हैं। दिल्ली मामले के आरोपियों के संबंध क्रिकेटरों, फिल्मी हस्तियों और नेताओं से थे। बंगाल चुनाव में 60% से ज़्यादा रसूखदारों ने बीजेपी को वोट दिया। क्योंकि बीजेपी चंदे में मोटी रकम लेकर उन्हें मनमानी की छूट देती है। साथ में संरक्षण भी। भारत में 18-45 साल वालों के लिए टीके नहीं हैं। राज्य हलाकान हैं। मोदी सरकार की कथित विशेषज्ञ समिति ने कोविशिल्ड के दो टीकों के बीच का अंतराल बढ़ाने की सिफ़ारिश की है।
सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि टीके नहीं हैं। सिफारिश का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। आप जानते हैं इसका नतीज़ा क्या हो सकता है? दोनों टीके बेअसर हो जाएंगे और सरकार सिर्फ़ कागजों पर दिखा देगी कि टीके लग चुके हैं। खबर है कि अगले हफ़्ते सिफारिश को मंजूरी मिल जाएगी। महाराष्ट्र का किस्सा याद है? किस तरह पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अपने भतीजे को वक़्त से पहले ही टीका लगवा लिया था?

यह बात दुनिया जानती है कि 8500 करोड़ के हवाई जहाज़ में उड़ने वाले और 13500 करोड़ की हवेली बनवा रहे नरेंद्र मोदी और उनके चमचों की प्राथमिकता क्या है। उनकी सरकार किन उद्योगपतियों के लिए काम करती है? उसके लिए विकास के क्या मायने हैं? किनका विकास? क्या मोदी सरकार भारत की 130 करोड़ जनता को फ्री में वैक्सीन नहीं दे सकती? सरकार पैसे का रोना रो रही है। राज्य प्रधान मंत्री से भीख मांग रहे हैं। जनता मर रही है। क्या मोदी या किसी भी राज्य सरकार में इतना दम है कि अपने यहां अरबपतियों पर उनकी कुल दौलत का 1.6% कोविड टैक्स लगा सके?
भारत में 1000 करोड़ से ज़्यादा की दौलत रखने वाले 953 लोग हैं। उनकी औसत 5278 करोड़ रुपए है। यानी पूरी दौलत 50.29 लाख करोड़ रुपये। इनमें अगर 871 रेजिडेंट इंडियंस को भी जोड़ लिया जाए तो दोनों मिलकर भारत की 74% दौलत के मालिक हैं। यह 823 बिलियन डॉलर या भारत की कुल जीडीपी का एक तिहाई होता है। यह दौलत पाकिस्तान, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों की जीडीपी से भी अधिक है। राज्यों को 18-45 की उम्र वालों को मुफ्त वैक्सीन देने के लिए 0.72 लाख करोड़ रुपए चाहिए।
अगर इन धन कुबेरों पर सिर्फ़ 1.61% का कोविड टैक्स लगा दिया जाए तो लाखों करोड़ जमा हो जाएंगे, जिसे संख्या में लिखना भी मुश्किल है। लेकिन न तो नरेंद्र मोदी या किसी राज्य के सीएम में इतनी हिम्मत है। क्योंकि यही लोग देश की राजनीति को अरबों का चंदा देकर चला रहे हैं। सिर्फ़ यही नहीं, इन्हीं रसूखदारों से देश में स्वास्थ्य ढांचे को खड़ा करने के लिए अतिरिक्त 1% और टैक्स वसूला जाए तो देश भर में हज़ारों बेड के अस्पताल खड़े हो जाएंगे। फिर भी धनकुबेरों की दौलत कम नहीं होगी।
नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारें इन धनकुबेरों के आगे पिट्ठू हैं। इसलिए, मोदी सरकार उन पर हाथ नहीं डालेगी। वह तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाकर आपकी जेब खाली करेगी। तो जनाब, अपनी मूर्खता और वैचारिक ग़ुलामी पर हंसिये। ग़लतियों का बोझ थोड़ा कम होगा।
“जब मैं स्वयं पर हँसता हूँ तो मेरे ऊपर से मेरा बोझ कम हो जाता है”।
रवींद्रनाथ टैगौर