संजीव भट्ट की रिहाई एक रहस्य

संजीव भट्ट रिहाई एक बड़ा राजनितिक बहस का मुद्दा बना है। उनकी जमानत याचिका कई बार सुप्रीम कोर्ट में भी रद्द हो चुकी हैं जहाँ आम आदमी भी न्याय की बड़ी आस लगा के देखता है. यहां तो देश के एक सीनियर पुलिस आफिसर की बात हो रही है और उनको भी न्याय मिलता दिख नहीं रहा है। इस मामले की कड़ी गुजरात दंगे से जुडी हुई है.

27 फरवरी 2002 की रात को तत्कालीन मुख्य मंत्री मोदी ने संजीव भट्ट सहित 8 आईपीएस को तथाकथित मुस्लिमों को सबक सिखाने की बात कही थी।बाकी सब आईपीएस ऑफिसर ने हां में हाँ मिला दिया पर संजीव भट्ट ने मना कर दिया।उन्होंने कहा लॉ एंड ऑर्डर हमारी ड्यूटी है और एक आईपीएस के रूप में इसे पालन करना मेरी जिम्मेदारी है।यह बात मोदी को नागवार गुजरा ,बताते हैं उनकी आंखें इस विरोध से लाल हो गई थीं।कालांतर में इसी वजह से इस आईपीएस को निलंबित किया गया,अंत में बर्खास्त भी कर दिए गए।अब 2018 में मोदी विरोध की वजह से उन्हें 23 साल पुराने कथित प्रकरण में जेल/हिरासत में भेज दिया गया है।

याद रहे की इस तरह की रिपोर्ट्स आ रही हैं कि संजीव भट्ट के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है।उनकी वही दशा कर दी गई है जो चंद्रशेखर रावण के साथ किया गया था।उन्हें कहाँ रखा गया है,किस हाल में है किसी को खबर नहीं है।उनकी पत्नी श्वेता भयंकर डरी हुई है और परसो ही उन्होंने अपने परिवार को जान से खतरा बताते हुए सशस्त्र पुलिस सुरक्षा की मांग अदालत से की है,जो उन्हें नहीं मिली है।संजीव की बेल एप्लिकेशन हाई कोर्ट ने औऱ सुप्रीम कोर्ट ने कई मर्तबा खारिज़ कर दिया है।एक परिवार को टारगेट कर खत्म किया जा रहा है।

इस बात की पूरी संभावना है कि किसी बीमारी का हवाला देकर संजीव भट्ट की जिंदगी को खत्म करने की साजिश चल रही है।आप इस देश के नागरिक हैं।आप खुद सोचिए जब एक सीनियर आईपीएस ऑफिसर की जिंदगी को खतरा है तो देश में कौन सुरक्षित है? संजीव भट्ट पत्नी अदालत में अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए गुहार चुकी हैं. जब एक आला पुलिस ऑफिसर के साथ ऐसा हो सकता है तो आम आदमी बारे में आप कल्पना कर सकते हैं. सरकार को चाहिए की उनकी पत्नी/परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

कौशल तिवारी