श्रम का सम्मान: प्रवासी श्रमिकों की उम्मीदें,अधिकार और चिंताएं

प्रवासी श्रमिक www.theindianiris.com से साभार

लेखक- सुल्तान अहमद

‘मेरा सपना था जो पैसे कमऊंगी उससे अपने बच्चों को पढ़ाऊंगी और अपने बूढ़े माता पिता की देख भाल करूंगी’ ऐसा कहना है जमुई से काम करने गयी गुजरात राखी का. गुजरात में हुए हिंसक तनाव से राखी को घर वापस आना पड़ा पहले इसके की वो इतने पैसे कमा पाती जिससे ईनके परिवार की जरूरत पूरी हो पाती.

गोविन्द कानपुर से हैं हरयाणा काम करने गए इनका कहना है की ‘बेतन कभी समय पर नहीं मिला, जो काम करते थे उसके बदले बेतन बहुत  कम था. हमारे साथ जानवर की तरह वर्ताव किया जाता था, स्थानीय लोग यह सोचते हैं की वो हम से बहुत अच्छे हैं’

राखी और गोविन्द की कहानी कोई अनोखी नहीं है, बिहार, झारखण्ड,मध्य-प्रदेश, उत्तर-प्रदेश जहाँ मोबाइल वाणी क्लब है श्रोताओं और समुदाय के साथ काम कर उनके अनुभव और प्रतिक्रिया को समझने का प्रयास किया की आखिर क्या चल रहा है इन प्रवासी मजदूरी के मन में. मोबाइल वाणी के खास अभियान श्रम का सम्मान के द्वारा समुदाय के उन व्यक्तियों तक पहुँचने का प्रयास किया गया जब प्रवासी मजदूरों के साथ गुजरात में हिंदी भाषी श्रमिक द्वारा बलात्कार की घटना छोटी से बच्ची के साथ घटी और उसके बाद भड़की हिंसक घटनाएं जो प्रवासी मजदूरों को राज्य छोड़ने पर मजबूर किया. इन प्रवासी श्रमिकों को किस प्राकर भेदभाव और हिंसा सहन करना पड़ा यह पता करने की कोशिश की गयी इस अभियान के जरिए.

पलायन कौन करते हैं और क्यों करते हैं?

भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2016- 2017 के रिपोर्ट के अनुसार लग भग 90 लाख लोग भारत के अन्दर पलायन करते हैं. ऐसा अनुमान है की इस रिपोर्ट में अंतर-राज्य  पलायन और कुछ समय के लिए मौसमी पलायन की संख्या को भी शामिल किया गया होगा.  अंतर-राज्य प्लान बड़ी संख्या में बिहार, उत्तर प्रदेश से होती है जहाँ से काम की तलाश में श्रमिक दक्षिण और पश्चिम के राज्य जैसे तमिलनाडू, महाराष्ट्र, केरल और दिल्ली जाते हैं. आर्थिक सर्वेक्षण के रिपोर्ट 2016-17 में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है की जिन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय कम है उन राज्यों से पलायन अधिक संख्या में होता है इस दृष्टी से बिहार और उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है जहाँ से पलायन की दर सबसे अधिक है और यह इस बात को स्पष्ट करता है की जिन राज्यों में आय के सीमित साधन से वहां से पलायन अधिक संख्या में होता है, वहीं दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात , तमिलनाडु, केरल, गोवा, कर्नाटका जैसे राज्यों से पलायन की संख्या काफी कम है जो इस बात को दर्शाता है  की जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी नहीं हुई उन राज्यों के नागरिक अपना जीवन वसर करने के लिए पलायन करने पर मजबूर हैं. इस अभियान के तहत अनेकों श्रोअताओं ने इस बात को स्वीकार किया की गृह राज्य में काम के आभाव में उन्हें पलायन करना पड़ा. जमुई जिले से अजित सिंह आई टी आई करने के बाद बिहार में काम  न मिलने पर उन्हें गुजरात के भुज जाना पड़ा ,वहां कंपनी में काम करते थे , इनके अनुसार भाषाई भेदभाव होता था, स्थानीय लोगों को बेहतर समझा जाता था और इन्हें हिन दृष्टी से देखा जाता था.

देवी कुमारी नालंदा जिले से कहती हैं उनके पति और गाँव के लोग बाहर जाकर इसलिए काम करना चाहते हैं की बेहतर कमाई से घर बना सकेंगे, किन्तु वहां भी काम का आभाव है , कभी भी काम से निकाल दिया जाता है फिर उन्हें वापस अपने घर लौटना पड़ता है, अगर हमारे पति को यहीं काम मिल जाये तो बहूत अच्छा होगा.

राज्यों का असमान विकास

हम सब आये दिन पढ़ते हैं की भारत में आर्थिक विकास हुआ है लेकिन यह उसी दर से रोज़गार के अवसर क्यों नहीं पैदा कर पाई एक बड़ा सवाल है- अजीम प्रेमजी विश्व विद्यालय की –स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट से यह स्पष्ट दिखता है की  सन 2000 में 10% की घरेलु उत्पाद विकास दर (जी डी पी ) केवल 1% रोज़गार को बढ़ाया, जबकि 1970-1980 के दशक में 3-4% जी डी पी  विकास दर से 2% रोज़गार में बढ़ोतरी हुई , वहीं 2011-2015 की चक्रवर्ती आर्थिक विकास दर 6.7% से 0.6% ही रोज़गार बढ़ा सकी. इस प्रकार आप देखेंगे की बेरोजगारी की दर में बढ़ोतरी उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादा हुई  है. अभी हाल ही में जारी NSSO द्वारा आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण को सरकार द्वारा सिरे से नकार दिया गया. हाल ही में एक अखबार बिजिनेस स्टैण्डर्ड में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया की 2017 -2018 में पिछले 4 दशकों में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी बढ़ी है जिसका अनुपात 6.1% है.

दूसरी तरफ जब इन सांखिकी पर नज़र डालते हैं तो हम पाते हैं की इन गंतव्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात ,तमिलनाडु में रोज़गार के दर, उद्योग और कृषि के विकास दर में कमी आई है जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को रोज़गार न मिलना एक बड़ी वजह रही है, इस वजह से स्थानीय लोगों को प्रवासी मजदूरों के बीच ईर्ष्या , जलन, तनाव बनना स्वाभाविक सा लगता है. माधवी गुप्ता और पुष्कर, वायर में लिखते हैं की क्या वजह रही शिक्षित युवाओं के बेरोजगार होने की इसे भारत जैसे राज्यों को गंभीरता से सोचना चाहिए. प्रवासी मजदूरों के साथ हुई हिंसा के कुछ दिनों बाद ही राजीव खन्ना लिखते हैं रोज़गार का बादा करने के बावजूद गुजरात में शिक्षित युवा बेरोजगार हैं युवा सरकार से प्रशन पूछने की वजाय प्रवासी मजदूरों के साथ हिंसा पर उताडू हो जाते हैं और इन्हें ऐसा लगता हैं की प्रवासी श्रमिकों ने ही उनकी नौकरी खायी है जिससे  बेरोज़गारी की डंक जीवन की शांति भंग कर रही है.

वह लोग बिहारी शब्द का इस्तेमाल हमें बेइज्जत करने के लिए करते हैं

जब हमने प्रवासी मजदूरों से जानने का प्रयास किया की उनके साथ गंतव्य राज्यों में किस प्रकार का वर्ताव होता है तो उनका जवाब  बहुत निराशाजनक था.

‘जब वो हमारी बात सुनते हैं तब उन्हें पता चल जाता है की हम यहाँ के स्थानीय नहीं हैं, वो लोग स्थानीय लोगों से डरते हैं, जिस कंपनी में काम करता हूँ वहां स्थानीय लोगों को काम पर नहीं रखा जाता है’ ऐसा कहना है मनोहर लाल कश्यप का जो दिल्ली के बहरी छेत्र में काम करते हैं ,इनका कहना है जब भी हमने अपनी मांग रखी या अपनी आवाज़ बुलंद करना चाहा तो हमें दवाराज़ा दिखा दिया गया.

नीतीश  कुमार बिहार जमुई के गिद्धौर से मुम्बई में रिक्शा चलाते हैं – इनका कहना है की परिवहन बिभाग के अधिकारीयों द्वारा शोषण का सामना करना पड़ा, इन पर अचानक से 13000 रूपये का जुर्माना  लगाया दिया और मेरे पास कोई रास्ता नहीं था की में इस जुर्माने को न भरूँ.वहां के स्थानीय लोगों के साथ ऐसा नहीं करते और इनका यह भी कहना है की बिहारियों के साथ भेदभाव रोजाना की बात है और अब तो आदत सा बन गया है. इसी कड़ी में महेश कुमार यादव कहते हैं की क्यों बिहारी बहार से आये लोगों के साथ अच्छा वर्ताव करती है जब उनके साथ अन्य राज्य के लोग बेहतर व्यवहार नहीं करते.

इस अभियान में आगे चलकर झारखण्ड राज्य हज़ारीबाग से तेक नारायण कुशवाहा कहते हैं किसी एक आदमी के गलती या जुर्म की सजा क्यों सभी को दी जाती है –पुलिस और प्रशाशन को समझना चाहिए की वह यहाँ अपने परिवार को छोड़ कर आए हैं परिवार के भरन पोषण के लिए.  

नागरिकों की गरीमा को बनाते हुए श्रमिक अधिकोरों को सुनिश्चित करना  चाहिए

अपमानजनक और अशिष्ट व्यवहार से आगे बढ़ते हुए, प्रवासी श्रमिकों ने बहुत से ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जिससे पता चलता है की जहाँ काम करने जाते हैं वहां  श्रमिकों के बुनियादी अधिकारों की भी रक्षा नहीं की जाती है. श्रम का सम्मान अभियान के तहत श्रमिकों ने कुछ ऐसे मुद्दे उठाये हैं जिसे यहाँ प्रस्तुत करना उचित होगा.

  1. श्रमिक चाहते हैं की उन्हें गृह राज्य में ही काम मिले तो क्यों उन्हें बाहर जाकर काम करना पड़े –इस प्रकार के विचार कई श्रमिकों ने रिकॉर्ड कराया और श्रमिकों के बीच यह आम राय है.
  2. श्रमिक चाहते हैं की गृह राज्य की सरकार का गंतव्य राज्यों की सरकार के साथ बेहतर ताल मेल हो ताकि प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा सरकार सुनिश्चित कर सकें, उदाहरण के लिए राखी कहती हैं की बिहार सरकार को असम, गुजरात और महाराष्ट्र  सरकार के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए ताकि श्रमिकों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा राज्य सरकार सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हो.
  3. श्रमिक चाहते हैं की जो भी मज़दूर पलायन करता है उसका पंजीकरण किया जाए और समय समय पर पता लगाया जाए की इन श्रमिकों की स्थिति उन राज्यों में कैसी है, यह भी सुनिश्चित करें की उनका वेतन और बीमा हो ताकि किसी अप्रिय घटना की निपटान बीमा की रकम से की जा सके. आप को ज्ञात हो की  अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1979 में इन सभी मांगों को शामिल किया गया है किन्तु प्रशासन की तरफ से हमेशा ही अनदेखी की जाती है.

भारत का संबिधान सभी नागरिकों को पूरी आज़ादी देता है की वह भारत के किसी भी राज्यों में जाकर अपनी जिंदगी वसर करें  किन्तु इन अधिकारों को  हमेशा ही अनदेखा किया जाता है, इन तथ्यों को कई श्रमिकों ने जोड़ देकर मोबाइल वाणी के अभियान में रिकॉर्ड किया और बताया की इस प्रकार की हिंसा प्रवासी श्रमिकों के साथ आम है, इन्द्रदेव चौहान ने भी जमुई से इसकी पुष्टि की है. भारत आर्थिक दृष्टि से ऐसे संक्रमण काल से गुजर रहा है जहाँ आप पाएंगे की कृषि आधारित व्यवस्था से आद्योगिक अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिली लेकिन अगर यहाँ नागरिक और श्रमिक के हितों की रक्षा नहीं की गयी तो कैसे भारत आद्योगिक राज्यों के रूप में विकसित होगा, जरूरत है बेहतर श्रमिक कानून की जो आर्थिक और सामजिक हितों की  रक्षा कर सकें.

काम का इंतज़ार करते प्रवासी श्रमिक

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