वोटों पर निर्भर सरकार जनता को आत्मनिर्भर बना रही है

रफ़ी अहमद सिद्दीकी
ग़ुलामी की ज़ंजीरें टूटती जा रही हैं नौकरी के नाम पर नौकर बनाने वाले सरमायेदार अपनी सरकारों को तबाही के दहलीज़ पर ले आएं हैं। बिना काम के काम पैदा करना,दलाल पैदा करना,दलालों के लिए काम पैदा करना,दलालों के नाम पर काम पैदा करना और नौकरी देना कंपनियों और उनकी सरकारों के बस में नहीं रहा। जहाँ दुनियाभर में नौकरियों का बाजा बज गया है, वहीं आत्मनिर्भरता शब्द नया झुनझुना लेकर प्रजातांत्रिक बाज़ार में आया है। यह कम्पनियों की सरकारों के लिए दलाली,ठेकेदारी,जोड़ीदारी आदि का रास्ता आसान करता है , दुनियाभर की सरकारें केवल ठेका देने का विभाग बन गई वहीं आत्मनिर्भरता,वोट निर्भरता बनाये रखने का नया फार्मूला है जो यह बताता है कि प्रजातांत्रिक बाज़ार में निर्भरताओं का संकट गहरा रहा है। जिसको आत्मनिर्भरता के माध्यम से बचाने का प्रयास किया जा रहा है|
नौकरी निर्भरता,आत्मनिर्भरता, नेता निर्भरता, कंपनी निर्भरता, आदि पूँजी निर्भरताओं के भिन्न भिन्न रूप हैं जो श्रम संकट जूझ रहे हैं। अलग अलग रूप धारण करने पर भी पूँजी का संकट कम नहीं हो रहा है और नौकरियां का समाप्त होना यह दिखा रहा है कि सेवाओं या निर्भरताओं की ज़रूरत अब नहीं रही| आवश्यकताओं के लिए काम करना,आवश्यकताओं को कम कर रहा है। जिससे क्रय विक्रय का चक्र,चकरा गया है और GDP ऊपर नीचे के चक्कर से आज़ाद हो रही है।
दिल्ली के कापसहेड़ा गाँव में रहने वाले एक मज़दूर साथी बताते हैं किसानी चौपट हुई तो नौकरी करने शहर चले आए अब नौकरियां खत्म हो रही हैं तो जरूरत भी कम करनी पड़ेगी 10 साल से शहर में रह रहे थे अब तो गाँव ही जाना है अब तो बेकार कि जरूरतों को भी तो कम करना है| शहरों में तो बेकार के ख़र्च हैं।
उधर विश्व भर की GDP आत्मनिर्भरताओं की कमी से झूझ रही है दुनियाभर के कंपनियों के लिए बने नेता लोगों के बीच गला फाड़ के यह यक़ीन दिलाने में लगे हैं कि आपके वोट निर्भरताओं पर हम मौज नहीं कर रहे थे इसलिए आप अब हमपर निर्भर न रहें क्योंकि अब नेताओं की आत्मनिर्भरता संकट में है।
एक मज़दूर साथी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं जब यह सब हम पर निर्भर हैं और हमें ही आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रहे हैं फिर यह क्यों वोट निर्भर बने हुए घूम रहें हैं। आत्मनिर्भर होने के लिए बैंक से लोन लेना और उस पर ब्याज, इसके बाद सभी बैंक हम लोगो पर ही निर्भर हो जायेंगे। यह आत्मनिर्भरता के नाम पर पैसा वसूली का नया हथकंडा हैं। उधर योजनाओं के पेचीदगियों में उलझी कंपनियों की सरकारें,अपनी छोटी छोटी सरकारों के रूप में संस्थाओं को पाल रही है।
गुड़गांव के मानेसर में काम करने वाले एक मज़दूर साथी कहते हैं योजनाओं का जाल फैला है भिन्न भिन्न प्रकार की रंगबिरंगी योजनाएं हैं योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों के अलावा,अलग से भी दलालों की लम्बी कतार है,योजनाओं के बारे में जानकारी देने से लेकर फ़ोटो खिंचाने तक हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं इसके बाद भी योजनाओं पर लोगों का यक़ीन न होंना,कंपनियों की रंगबिरंगी सरकारों को योजनाओं का ताबूत उठाने को मज़बूर कर रही है। कोई भी योजना पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही है। सफलता दिलाने के लिए अगल से दलाल भी नियुक्त हैं। सरकारी योजनाओं इसके सञ्चालन के लिए नियुक्त गैर सरकारी संगठन जो कभी सिक्षा , जानकरी , कभी नागरिक उत्थान के नाम पर योजनाओं का , कार्यक्रमों का जाल बिछाते हैं , जिनके लिए कार्यक्रम का सञ्चालन करते हैं उनके लिए तो 20 प्रतिशत और अपने बटन किराए पैर 80 प्रतिशत खर्च करने वालों की भी दुकान नहीं चल रही है , कई तो ऐसे भी थे जो सरकारी योजनों को धरातल पर लागू करने के लिए मोटी रकम सरकार से लेते थे और बिल बनाकर कार्यक्रम का निपटारा कर देते हैं , आज कल बहोत परेशान है , खबर ये भी आई है की स्वस्थ्य मंत्रालय सभी सकरारी महकमों के अधिकारियों , एन जी ओ के अधिकारीयों को फटकार लगाया है की क्यों जनता में जागरूकता कोरोना वैक्सीन के प्रति नहीं आरही है , क्यों वैक्सीन बर्बाद हो रहा है , क्यों आम जनता का यकीन इन सरकारी वैक्सीन पर नहीं बन रहा है , क्य्यों सकरी की बदनामी करने पर जनता तुली है . क्यों ये लोग सरकारों की बैसाखी नहीं बन पा रहें हैं???? ये कुछ बड़े सवाल है जिनका जवाब अभी ढूँढा जा रहा है …..
मज़दूरों का रंगबिरंगी योजनाओं के चक्कर में न पड़ना,न उलझना ही कितने ही संस्थाओं के ऊपर तबाही के बादल के रूप में मंडरा रहा है। कानून रूपी योजनाओं से तो मज़दूर साथियों को जन्मजात नफ़रत हो गई है। कानून और हक़ की बात करते ही यह ज्ञात होता है विफल योजनाओं में कानून रूपी योजना का स्थान सबसे ऊपर है। कुछ मज़दूर साथी कहते हैं कानून के चक्कर में यूनियनों को छोड़ दिया आप भी कानून की ही बात कर रहे हो।
अगर आप भी संगठित ,गैर संगठित मजदूर किसान के साथ काम रहे होंगे तो आप भी अपना अनुभव जरूर हमरे पाठकों के साथ साझा करें ,सरकार की इन रंगबिरंगी योजनाओं की हकीकत पर पडी मोटी चादर को हटाने में जनता और गरीबों की मदद करें .