लॉक डाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था के औंधे मुँह गिरने के आसार

लेखक: तरुण कुमार मिश्रा – चकाई ,जमुई

21वीं शदी में अपने आप को प्रकृति से ऊपर समझने वाला मानव एक अदना सा वायरस के सामने पूरी तरह नतमस्तक है। ऐसे में अपनी शक्तियों पर नाज करने वाला विश्वशक्ति भी मिमियाता नजर आ रहा है। आज जिधर भी नजर जाता है उधर कोरोना का ही कोहराम मचा है। सम्पूर्ण मानव जाति कई माह से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता दिखलाई पड़ रहा है। दुनियां के 180 से भी अधिक देश को इस वायरस नें अपने आगोश में ले रखा है। अब इससे निजात पाने के लिए पूरी दुनियां दिन रात जुटी है लेकिन समाधान निकलता दिखलाई नहीं पड़ा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का परिणाम आज नहीं तो कल जरूर भयावह होगा। इस वायरस के उतपत्ति का सीधा कारण प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ ही। चाहे जैविक हथियारों के निर्माण के दौरान यह वायरस निकला हो या फिर मानवों की दानवों जैसी मांसाहारी प्रवृति के कारण, दोनों ही स्थिति में प्रकृति को चुनौती देने का दुस्साहस किया गया है। कहा जाता है कि प्रकृति स्वयं से संतुलन स्थापित कर लेती है। यह सही प्रतीत भी होता दिखलाई पड़ रहा है।

लॉक डाउन नें ऐसा लॉक किया कि बिजली की रफ्तार से तेज भागने को आतुर मानव जान बचाने के लिए घरों में दुबकने को मजबूर है। औधोगिकीकरण एवं विकास की अंध दौड़ में प्रकृति की निर्मलता को तार-तार कर देने वाला मानव जाति को भविष्य की आशंकाओं नें अंदर से हिला कर रख दिया है। महज कुछ दिनों के लॉक डाउन नें पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी गंगा एवं यमुना जैसी नदियों को आचमन के लायक पवित्र कर दिया है। हिमालय सहित अन्य पहाड़ों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ जो प्रदूषण की धुंध से छिप सी गई थी वह कई सौ किलोमीटर से स्पष्ट दिखलाई पड़ रही है। अरबों खर्च करके जिन महानगरों के प्रदूषण को दूर करना नामुमकिन बन गया था वहाँ की हवा भी प्रदूषण रहित हो मन्द-मन्द मुस्कुरा रही है। एक ही छत के नीचे दुनियां को समेट लेने का दावा करने वाले बड़े-बड़े मॉल, आधुनिक साज सज्जा से सुसज्जित सिनेमा हॉल, अरबों की लागत से बने स्टेडियम, अपने सुनहरे भाग्य पर ईठलाता पाँच सितारा होटल आज महज शोभा की सामग्री बनकर रह गया है।

प्रकृति नें सीधे तौर पर आगाह कर दिया कि भौतिक सुख का मानव लाख जुगाड़ क्यों न कर ले लेकिन अगर प्रकृति से विमुखता जारी रहा तो तो इन भौतिक सुख सुविधाओं का कोई मोल नहीं है। महज कुछ दिनों के संकट नें मानव को उसके औकात से अवगत करा दिया है। जब तक विश्व के सभी देश एक साथ बैठकर मानव जाति को महफूज रखने की रणनीति नहीं बनाएगा ऐसे संकट आते रहेंगे। लेकिन हालात ये है कि प्रत्येक देश विकास के ग्राफ को ऊपर उठाने एवं जहरीले हथियारों को अधिक से अधिक जुटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। भुखमरी पर खड़े मुल्क भी हथियार निर्माण की इस होड़ में अपने आप को आगे रखना चाहता है। जनता को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर भी नए-नए हथियार ईजाद किए जा रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि एक वायरस तृतीय विश्वयुद्ध की भूमिका का सफल निर्वहन कर रहा है जबकि बड़े-बड़े हथियार एवं सैन्य शक्ति बस शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। भारतीय संदर्भ में ये बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में अर्थव्यवस्था का औंधे मुंह गिरना निश्चित है। देश को फिर से मजबूती के साथ खड़ा होनें में लंबा वक्त लगेगा। सरकार विकास की जगह जान-माल को प्राथमिकता दे रही है।

संक्रमण को रोकने के लिए कड़े से कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। सभी प्रदेशों एवं सभी दलों की सरकारें केंद्र सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। इन सबसे बढ़कर आम आदमी प्रधानमंत्री का हौसला आफजाई के लिए साथ खड़ा है। आम आदमी समाज के जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। सभी का प्रयास है कि कोई भी देशवासी भूखा न रह पाए। पूरे राष्ट्र भर में दानवीरों की टोली लोगों की मदद के लिए दिन रात जुटी हुई है। ऐसे में इन मजबूत हौसलों के सहारे हम कह सकते हैं कि जल्द ही जिंदगी की जीत और कोरोना महामारी की हार होगी।