राहुल गाँधी विपक्ष के कद्दावर नेता

डियर राहुल गाँधी,

आप कांग्रेस के अध्यक्ष हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष के कदावर नेता. समूचा विपक्ष आपको नेता मानता है कुछ दल और नेता को छोड़कर. इसमें कोई दो राय नहीं हैं। आप विपक्ष के मजबूत नेता है. लेकिन आप विपक्ष के मजबूत नेता अभी तक नहीं बन पाएं। मैं यह इसलिए पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ क्योंकि आप जनमुद्दों को तो छोड़िए। अपनी विरासत को ही संजो पाने में नाकाम रहे. आप सेकुलरिज्म की रक्षा करने की बात तो जाने दीजिए नेहरू-गाँधी के विरासत पर लगने वाले तमाम आरोपों को आगे बढ़कर जवाब नहीं दे पाएं। आप जवाब दे पाने में सक्षम ही नहीं हैं. आप पर और पूरी कांग्रेस पार्टी पर मुस्लिम परस्त होने का हमेशा आरोप लगता रहा। तो वहीं दूसरी तरफ ‘साॅफ्ट हिन्दुत्वा’ का. आप इस सवाल से कभी ईमानदारी पूर्वक सोचिए तो जूझ ही नहीं सके। फासीवादी राजनीति के उभार के बावजूद मुझे आपके नियति और नियत दोनों पर शक है.

अभी आपको बहुत जूझना है। आप पर अनमैच्योर होने का आरोप लगता रहा, अभी आप मैच्योर होने की प्रक्रिया से गुजर ही रहे हैं। राजनीति के अर्थशास्त्र में अभी तक आप फिसड्डी साबित हुए हैं. राजनीति अंकगणित में आप तकरीबन चार सालों से खुद उलझते रहे। आपके विरोधी आपको जब ‘पप्पू’ बुलाते हैं तो बेशक मुझे अच्छा नहीं लगता है. आप अपनी जटिलताओं को रेशे-रेश सुलझाने की कोशिश में लगे हुए हैं। आपके भाषण में अभी भी अपरिपक्वता साफतौर पर झलकता है. आप कई अर्धसत्य को सत्य बना ही नहीं पाए। आपके भाषण की खासियत जो मुझे पसंद है वो कि आप इतने शालीनता व सभ्य तरीके से अपनी बात रखते हैं उस क्रम में आपके विरोधी ही उल्टा आप पर हावी हो जाते हैं. जो लोग आपके भाषण और भाषा पर सवाल उठाते हैं तो मैं उनका शक्ल करीब से पढ़ने लग जाता हूँ.

सच कहिए तो आपको गंभीर आपके आलोचक ही बनाएंगे। अपनी आलोचकों के प्रति उबलिए मत. बहुत हद तक आप में गंभीरता आई है. अभी बहुत हद तक आना बांकी है. डियर राहुल गाँधी आप सेकुलरिज्म क्या बचाएंगे? जब गांधी-नेहरू पर लगे तमाम आरोपों का आप आगे बढ़कर खंडन ही नहीं कर पाएं। इतिहास की परत पर घिनौनी आरोप के बावजूद आपकी पार्टी (कांग्रेस) नेताओं की खामोशी पर मुझे शक है. वो केवल गांधी-नेहरू पर महज आरोप नहीं हैं बल्कि इतिहास की पूरी विरासत पर भद्दा आरोप है। तकरीबन चार सालों में आपकी पार्टी समूचा विपक्ष बुझदिल इंडिया का मुखौटा बनकर रह गया। जनता को बुझदिल और डरपोक बनाने में आपका भी कम भूमिका नहीं है। आप साहस ही नहीं जुटा सकें कि अपने अंदर के बुझदिली को तोड़ पाएं। आप नाकारा व नाकामयाब विपक्ष रहे हैं मेरी नजरों में। सरकार डर का कमरा बना रहा था तो आप उस डर को डर का डाइनिंग रूम बना रहे थे।

कांग्रेस पार्टी आज भी पुरानी मर्सिडीज है।कांग्रेस पार्टी परिवार के तरह व्यवहार करती है ना कि राजनीतिक दल के तरह। राजनीतिक दल बनने में अभी आपको अच्छा खासा वक्त लगेगा। सरकार का इकबाल और गुमान को तोड़ पाने में आप विफल रहे। आप चुनाव के भरोसे अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करने के चक्कर में बने रहे। फिलहाल देश चुनावी मूड में पहुंच भी गया जिसका आपको इंतजार था। सड़क पर जनता को गोलबंद कर आप कोई भी जुझारू आंदोलन नहीं खड़ा कर पाएं। तकरीबन चार वर्ष के दौरान मोदी सरकार के खिलाफ उपजे आक्रोश व हताशा जनता में साफतौर पर देखा गया। जनता सड़क पर मोर्चा ले भी रही थी। जगह-जगह स्वतःस्फूर्त ढंग से आंदोलन हुए भी। आप कहीं भी नेतृत्व की भूमिका में बिल्कुल भी नहीं थे। जनता महंगाई से त्रस्त थी तो बहुत देर के बाद आपकी आँख खुली। शायद आप बहुत गहरी नींद में सो रहे थे।

जनता खुद अपनी नेतृत्व कर रहा था। सरकार तक अपनी डिमांड पहुंचाने की हर संभव प्रयास कर रहा था. डियर राहुल गाँधी सच कहूँ आपमें राजनीति की वो चालबाजी करने की अभी तक समझदारी नहीं आई है। बढ़िया बात है. आपको अपने भीतर से कई जड़ता को तोड़ना आपके समक्ष चुनौती है. बांकी समूचा विपक्ष राहुल गांधी आपके भरोसे सत्ता की नैया पार करने की उम्मीद से जुट गई है। राजनीति में सत्ता तक पहुंचने की कुर्सी-कुर्सी का खेल का भी तो अलग किस्म का आनंद है। आप अभी चाहे लाख कोशिश कर लो अभी बहुत सारे प्रश्नों से जूझने में आपमें काबिलियत आनी है.हां राहुल गांधी जी राजनीतिक मैदान में अभी आपको फिलवक्त लंबी पारी खेलनी है इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

हां लेकिन विपक्ष की भूमिका में खुद को खड़ा करने की आप वास्तविक में राहुल गांधी बनने की जद्दोजहद कर रहे हैं.प्रश्न पूछने की आदत डाल रहे हैं. आपको राजनीतिक मैदान में आसपास घट रही घटनाओं पर बेशक चौंकन्ना रहने की जरूरत है. राजनीतिक बिसात में घिर मत जाइए उसे तोड़कर आगे बढ़िए। आपके सवालों को सत्ता बार-बार मजाक में क्यों खारिज कर दे रही है इस पर गंभीरतापूर्वक सोचिए। राजनीति सवालों का जवाब राजनीतिक लहजे में ही देना शुरू कीजिए। खैर…राजनीतिक मझधार में फंसी गाड़ी को तकरीबन सभी विपक्षी दल पार करने की जुगत में भिड़ गई है। स्पष्ट दृष्टि व योजना के बगैर क्षणिक लाभ लेने के लिए विपक्षी एकता बनने की सुगबुगाहट शुरू है. बांकी सब कुशल-मंगल है. अपने इधर बारिश हो रही है किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट लौट आई है.

आशुतोष आर्यन