राम राज्य में की इन्साफ की चिताएँ…!!!

फोटो साभार- दी प्रिंट

लहर डेस्क

अरे ओ उत्तर प्रदेश के गिद्धों शांत हो जाओ। हाथरस में पिछले 14 सितम्बर को 19 वर्षीय दलित लड़की मनीषा बाल्मीकि के साथ जो हुवा उसे व्यक्त करने के लिए हमारे पास शब्द काम पड़ रहे हैं. ऐसी हैवानियत और क्रूरता हमने निर्भया कांड में सुनने को मिली थी. ऐसा नहीं की बलात्कार की यह अकेली घटना है बल्कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार बिल्कुम एक आम किस्म का जुर्म बन गया है क्योंकि बलात्कारियों को हमेशा सरकार और प्रशासन का संरक्षण मिलता रहता है.

ऐसा क्या हो गया कि दुनिया सर पर उठा ली? जब सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और डीएम ने कह दिया कि दस लाख दिए गए तो बात ख़त्म। अब क्यों पीछे पड़े हो भाई ? वह तो कहो सीएम साहब के पास टाइम नहीं है नहीं तो पीड़ित मृतक के घर भी हो आते। साथ में सोफ़ा, एसी भी ले जाते। बिना एसी के जाते तो पूरे उत्तर प्रदेश की बेइज्जती ना होती? घर वालों को साबुन शैंपू देते मिलने से पहले नहाने के लिए। घर की रंगाई पुताई भी हो जाती। लौटकर गंगाजल से खुद नहाते भी। लेकिन यह मत भूलो की वह सीएम हैं प्रदेश के।

अब सीएम के पास क्या यही काम रह गया है कि वह लोगों के दुख दर्द दूर करे ? बाढ़, सूखा, गरीबी, रोज़गार, चोरी, डकैती, बलात्कार, भूखमरी क्या इसी सब पर नजर रखने के लिए आपने बाबाजी को वोट दिया था ? क्या यही सब पहले मायावती, अखिलेश नहीं कर रहे थे? अरे भाई लोगों हमने इतने बड़े बहुमत से भाजपा को इसलिए थोड़ी जितवाया था। एक मठाधीश के कुर्सी पर बैठने पर हमनें आपने मिठाई बांटी थी। क्यों ? क्योंकि हमें मन्दिर चाहिए था। अयोध्या में बिल्कुल उसी जगह मन्दिर जहां कभी मस्जिद थी। मिल गया मन्दिर। आपके मन की मुराद पूरी हो गई। बाबाजी अब आपके सामने काशी मथुरा ला रहे हैं प्लेट में सजाकर। आपको खुश होना चाहिए।

अब जो यह विधवा विलाप कर रहे हो ना एक दलित बिटिया के बलात्कार पर, उसका खोखलापन तुम्हे नहीं मालूम है तो तुम असली हिन्दू नहीं हो। यह इसलिए बोल रहा हूं कि कल को यही हिंदुस्तान की बेटी जब उस अयोध्या के मन्दिर में जाती तो तुम ही उसे अन्दर भी नहीं घुसने देते। तब उसकी जान ले लेते। आज भी ले ली। यह बेशर्मी हम सब पहली बार थोड़ी देख रहे हैं। आदत पड़ गई है।

चलो अब यह नाटक बंद करो। और वापस आईपीएल, दीपिका रिया पर ध्यान लगाओ।  वह जो मुस्कुराहट छिपाने की कोशिश कर रहे हो ना, वह सबको दिख रही है। उसी मुस्कुराहट को देखकर ही तो बाबाजी ने पूरी बेशर्मी से उस बेचारी के शरीर को चिता पर रख पुलिस वालों से ही अंतिम क्रिया करवा दिया। घर वाले घर में ही बंद कर दिए गए। वैसे राम राज्य में चिताएं ऐसे ही रात के अँधेरे में जलाई जाती हैं.

अभी मनीषा की चीता की आग ठण्ढी भी नहीं हुई थी की बलरामपुर में एक और दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना सामने आ गयी और आती रहेगी जबतक लोग चुप बैठे रहेंगे जुर्म के खिलाफ.  सुशांत सिंह राजपूत के मौत पर लगभग 3 महीने से मातम मनाने वाली गलाफाड़ मीडिया  को  भला एक गरीब लड़की से बलात्कार के बाद मौत पर क्यों आवाज़ उठाये? मीडिया को टीआरपी थोड़े ना मिलने वाली है ऐसे ज्वलंत समस्याओं से? अब  राजनितिक दाल को यही काम रह गया है की वो दलितों पे हुवे ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाये चाहे वो मायावती ही क्यों न हो. वैसे मायावती उन दलितों के वोट से ही लखनऊ की गद्दी पर आसीन हो चुकी हैं. तो क्या हुवा? भले ही या मायावती भी दलित हैं , महिला हैं लेकिन गरीब नहीं हैं।