रामदेव पर उंगली उठाने का मतलब खुद पर उंगली उठाना भी है

सौमित्र रॉय

हर-हर मोदी, घर-घर मोदी- इस नारे पर मुझे अभी भी यकीन है, क्योंकि वास्तव में हर घर एक नरेंद्र मोदी बैठे हैं जिनकी मूर्खता जग हाज़िर है। इसी तरह भारत के हर घर में एक रामकृष्ण यादव, उर्फ रामदेव बैठे हैं। तरह-तरह के अजीब, अवैज्ञानिक नुस्ख़े, सलाह, यंत्र-तंत्र-मंत्र और गंडा-ताबीज़ लेकर।
ये सब-कुछ स्वदेशी के नाम पर, जो सनातन भारत के लिए आरएसएस का नारा रहा है।

दो दिन से रामदेव बनाम एलोपैथी और मोदी सरकार का तमाशा चल रहा है। कई बार अस्पताल में एलोपैथी की मदद से जान बचाने वाला एक ठग बाबा कोविड इलाज़ को चुनौती दे रहा था। देश का स्वास्थ्य मंत्री रामदेव की कंपनी को निंदा वापस लेने की गुहार लगा रहा है, जिसने अपने एक और साथी मंत्री के साथ मिलकर रामदेव की कोरोनिल गोली का प्रचार किया था। रामदेव 10 हज़ार करोड़ का बिजनेस करता है। पतंजलि के शहद को विज्ञान ने फ़र्ज़ी बताया।

प्रियंका पाठक नारायण एक पत्रकार हैं।उन्होंने एक किताब “,गॉडमैन टू टाईकून: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ बाबा रामदेव ” लिखी है। प्रियंका लिखती हैं- रामदेव जो घी गाय का बताकर बेचते हैं, वह व्हाइट बटर से बनता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक से सबसे ज़्यादा व्हाइट बटर पतंजलि को मिलता है और एक लीटर घी पर कंपनी 50 रुपये का मुनाफ़ा कमाती है। विज्ञान को जानने वाला जानता है कि व्हाइट बटर से बना घी पोषक नहीं होता। यह भी कि व्हाइट बटर सिर्फ गाय ही नहीं, भैंस और बकरी…और न जाने और किन किन के दूध से बनता है।

न्यूज़ीलैंड में फार्म बिज़नेस एंड एग्रिफार्मिंग के प्रोफेसर कीथ वुडफोर्ड बताते हैं कि ढेर सारी संकर नस्ल की गायों के दूध में एआई बीटा केसिन नाम का प्रोटीन होता है, जिससे डायबिटीज और दिल की बीमारी से लेकर कई तरह की बीमारियां होती हैं। रामदेव की दुकान में इन बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। कोविड के दौरान इन्हीं बीमारियों के शिकार लोग सबसे ज़्यादा मरे हैं। फिर भी हमारा विज्ञान स्वदेशी को पहले अपनाने की बात करते हैं। इसलिए रामदेव जैसे ठगों ने इसे सियासत में मिला दिया है।

यही भारतीय समाज का अपना विज्ञान है, जिसे नरेंद्र मोदी अपनी सियासी जुबांन में वोकल फ़ॉर लोकल कहते हैं। लेकिन एक विरोधाभास सहस्राब्दी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच है, जिसकी कड़ी इंटरनेट से जुड़ती है। रामदेव इस कड़ी को नहीं तोड़ पाया। वायरस, संक्रमण, ऑक्सीजन, आईसीयू, इंजेक्शन, टीका आज की पीढ़ी के शब्द हैं। पुरानी पीढ़ी देसी इलाज़ में यकीन रखती है। रामकृष्ण यादव अगर सियासत को अपने प्रचार के नुस्ख़े में नहीं मिलाता तो बिज़नेसमैन नहीं बन पाता।

कोविड ने उनके बिज़नेस को सीधे चुनौती दी है, सो उन्होंने उसी डाल पर कुल्हाड़ी चलाई, जिस पर वह बैठा है। लेकिन सच यह भी है कि पेड़ तो आरएसएस का है और उसी आरएसएस के पेड़ को हमारे समाज ने सनातन संस्कृति के रूप में स्वीकार किया है। इसलिए रामदेव पर उंगली उठाना मतलब खुद पर उंगली उठाना भी है।