यादवों के नेता शाहबुद्दीन नहीं अवधबिहारी चौधरी हैं

लहर डेस्क -23 अप्रैल -दो सप्ताह पहले चुनावी समीकरण समझने के लिए मैंने अपने एक मित्र को फोन लगाया। पूछा कि जिला का क्या समाचार है? उसने बताया कि सिवान से हिना शहाब निकल रही हैं।

मैंने पूछा अहीर लोग वोट देंगे इसबार उन्हें। तो उसने कहा, “हमारे नेता अवधबिहारी चौधरी अबकीबार साहेब के साथ हैं। वह निकल रही हैं।” उसकी बातों से सिर्फ एक बात समझ आई कि यादवों के नेता शाहबुद्दीन नहीं अवधबिहारी चौधरी हैं।

मतलब साफ था कि यादवों का नेता सिर्फ यादव ही हो सकता है और कोई नहीं। भले शहाबुद्दीन या हिना शहाब सिवान में खुद को राजद नेता बताते हों और वहाँ के मुसलमानों को राजद में हाँककर ले जाते हों मगर वे राजद पार्टी में मुसलमानों को इंसाफ दिलाने में असमर्थ हैं।

उसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जिले की राजद प्रत्याशी हिना अपने साथ मुसलमानों को लेकर नहीं घूम रही हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि यादव मुसलमानों को साथ देख बिदक जाएंगे और भाजपा के हाथ चले जाएंगे। सच्चाई केवल यह है कि राजद के लिए शहाबुद्दीन या दूसरे मुसलमान सिर्फ मज़बूरी हैं, मात्र वोटबैंक की सौदेबाजी हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में लालूवादी अहीर कहते थे-केंद्र में हिन्दू हृदय सम्राट मोदी जी और बिहार में लालू यादव। यही हाल उत्तर प्रदेश के सपा में है। समझने वाली बात है कि माई समीकरण से फायदा किसको है?

बेगूसराय में जो लोग पूँछ अलगा के राजद-राजद चिल्ला रहे हैं उन्हें आगे चलकर ‘घेवड़ा’ ना मिलने वाला है। स्पष्ट तौर पर एक बात ‘पिछलग्गू प्रजाति’ मानसिकता वाले बंधु समझ लें तनवीर हों, अब्दुलबारी सिद्दीकी हों या शहाबुद्दीन हों या कोई और मुसलमान, सभी केवल राजद प्रत्याशी हैं राजद नेता नहीं।

आपलोग दूसरे लोगों से बैर करने से पहले प्रत्यासी और नेता में फ़र्क़ को समझिए। चुनाव पाँच साल बाद आता है और चला जाता है मगर रहना आपको अपने पड़ोसी के साथ ही है। नहीं तो मियाँ जी की दाढ़ी कल भी वाहवाही में गई थी और आगे भी जाएगी।