मोदी का आत्मनिर्भर भारत और वैक्सीन की राजनीती

सौमित्र रॉय
इस साल की आखिरी तिमाही तक वैक्सीन के 2 अरब डोज़ शायद ही मिलें, क्योंकि सीरम और भारत बायोटेक दोनों ने अभी तक अपना उत्पादन नहीं बढ़ाया है। इसमें अभी डेढ़ से 2 महीने और लगने की सम्भावना है। तब तक हो सकता है कि कोरोना की तीसरी लहर के उभरने की आशंका पैदा हो जाए। वैक्सीन के मामले में भारत की हालत खराब क्यों है?
तस्वीर में बीबीसी ने एक ग्राफ़िक्स टेबल बनाई है।ग्राफ़िक्स को देखें तो पाएंगे कि कई समझदार देशों ने अपनी कुल आबादी का 2-5 गुना तक वैक्सीन पहले ही आर्डर कर दिया था। जब हम अपने देश को देखते हैं तो निराशा हाथ लगती है क्योंकि भारत और सऊदी अरब दोनों ने अपनी आबादी के सिर्फ 4% के लिए ही वैक्सीन आर्डर किया। ऐसा क्यों हुवा? इसका जवाब नरेंद्र मोदी, देश के स्वास्थ्य मंत्री और उनकी सरकार ही दे सकती है, लेकिन वह चुप है और सारा फोकस एक फर्ज़ी टूलकिट को आधार बनाकर कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों पर निशाना साधे है।
मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी ही बता पाएगी कि ये 4% उसके लिए क्यों खास हैं? मोदी सरकार की इस ग़लती की सज़ा सबको मिलेगी। आप एक घटिया ऐप्लिकेशन कोविन या आरोग्यसेतु में रजिस्ट्रेशन करवाकर हर रोज़ ओटीपी लेते ही रह जाएंगे, उधर स्लॉट बुक करने वाले घूस खाकर आपका हक़ किसी और को दे देंगे। दिल्ली वालों को 18 -44 वाले आयु वर्ग में कोई स्लॉट ही नहीं मिल रहा है। जनता जाए तो जाए कहाँ ?
अब दूसरी बात देश की जानी-मानी वैक्सीन विशेषज्ञ डॉ. गगनदीप कंग ने मटर छीलू स्वास्थ्य मंत्री के उस दावे को हवा में उड़ा दिया है कि अगस्त-दिसंबर तक देश में 2 अरब वैक्सीन के साथ दुनिया का बाजार सज जाएगा। जिस स्पुतनिक का देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन दम भर रहे है, वह हैदराबाद में रेड्डीज लैब से निकलते ही 1250 रुपये की हो चुकी है।
डॉ.कंग ने साफ कर दिया है कि भारत बायोटेक की नाक से ली जाने वाली और जायडस कैडिला की डीएनए वैक्सीन के बारे में डेटा उपलब्ध नहीं है। यानी यह भी डीआरडीओ के 2 DG जैसा हवा-हवाई मामला है। अब तो फिर एक ही रास्ता बचा है और शायद सरकार भी यही चाहती है। सब अपने स्तर पर वैक्सीन का जुगाड़ लगाएं और वक्सीनशन करवा लें इससे पहले कि तीसरी लहर हमारे सर पर हो।
मोदी राज में इसी को आत्मनिर्भर भारत कह जाता है।