मेहनत करने वालों अपनी ताकत को पहचानों। तुम्हारे ही करने से दुनिया का चक्कर चल रहा है।

हिन्दू के लिये गाय खाना पाप है। मुसलमान के लिए सुअर खाना पाप है। लेकिन, ईसाई बिना पाप-पुण्य की चिंता किए ये दोनों खा सकता है। लेकिन, जहर की एक निश्चित मात्रा खाने पर इनमें से कोई भी मर सकता है। पाप और विज्ञान में यही अंतर है।

डीडी कौशांबी ने यह बात कहीं पर लिखी थी। आज मेहनत करने वालों के दिन पर फिर याद आई। विज्ञान पूरी मानवता के लिए एक है। पाप-पुण्य, अंधविश्वास, धर्म और ढकोसले सबके लिए अलग-अलग हैं। विज्ञान हमें एक करता है। लेकिन, पाप-पुण्य हमें विभाजित कर देता है। इस हद तक कि हम एक दूसरे की जान लेने तक पर उतारू हो जाते हैं।

मेहनत इस दुनिया का भगवान है। किसी आसमानी भगवान ने नहीं, मेहनत ने इस दुनिया को बनाया है। पूरी दुनिया में आज जो कुछ हम दखते हैं, वह सब किसी न किसी के श्रम का नतीजा है। जाहिर है, इसमें अच्छी चीजें भी हैं और बुरी चीजें भी। हम अपने श्रम के नतीजे जब खुद देखते हैं तो दंग रह जाते हैं।

एक मामूली सा मजदूर जब पचास मंजिला इमारत बनाने में जुटता है तो उसे आभास भी नहीं होता कि उसकी और उसके साथियों की मेहनत क्या रंग लाने वाली है। जब वह खुद इमारत के सामने खड़ा होता है तो अपने आप को तुच्छ समझता है। उसे खुद पर यकीन नहीं होता कि यह उसी की मेहनत का करिश्मा है। उसकी मेहनत ही दुनिया का खुदा है।
विडंबना यही है कि आज वह अपनी शक्ति भूल गया है। ऐसा कोई काम नहीं है जो उसकी मेहनत न कर सके। मेहनत ही इस दुनिया का नियंता है। लेकिन, मेहनत करने वालों को खुद इस बात का अहसास नहीं। ‘का चुप साध रहा बलवाना।’
मेहनत करने वालों अपनी ताकत को पहचानों। तुम्हारे ही करने से दुनिया का चक्कर चल रहा है।