महिलाएं अभी भी सामंती वयवस्था का शिकार

मुग़ले आज़म फिल्म का अंतिम दृश्य अनारकली बेहोश सलीम को छोड़कर क़ैदख़ाने में मरने के लिए जा रही है उसके पिछे बीसियों मुग़लिया सलतनत के सिपाही तलवार थामें चल रहे हैं…… ये थी सामंती व्यवस्था ग़रीब आम लड़की को मुहब्बत का हक़ नहीं…. और उसकी संगीत नृत्य की कला से आनंद लिया गया वो महल में गा सकती है नाच सकती है, परन्तु मुहब्बत नहीं कर सकती,शहज़ादे की दुल्हन नहीं बन सकती….शादी के वक़्त अनारकली की संगीत नृत्य की कला उसे छोटा बना देती है हीन बना देती है नफ़रत हिक़ारत का पात्र….।वहीं दूसरी तरफ़ शहज़ादे सलीम को ज़िंदगी बख़्श दी जाती है.. और बाद में सलीम जहाँगीर के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, नूरजहाँ से विवाह होता है उनका परिवार वंश आगे बढ़ता है… अनारकली कहाँ गई ज़िंदा है कि मुर्दा जहाँगीर बादशाह इसकी खोजबीन नहीं करते। अकबर बादशाह कैसे मुसल्ले पर असल बादशाह से नज़रें मिलाते होंगे…. अपने राजनीतिक लाभ के लिए वो ग़ैरमुस्लिम को पत्नी बनाते हैं ….जोधा भी अगर एक राजकुमारी न होकर राजपूतानी न होकर साधारण सी गायकार या नृत्यांगना होती तब अकबर बादशाह शायद उन्हें भी अपनी पत्नी न बनाते…..ग़रीब को अभिव्यक्ति का हक़ नहीं मुहब्बत करने का हक़ नहीं, और सलतनत इन ग़रीबों को मोटी-मोटी ज़ंज़ीरों में जकड़कर निहत्थे लोगों को हथियारों से घेरकर अपना ज़ोरा दिखाती है शक्ति प्रदर्शन करती है दहशत बिठाती है।

आज बॉलीवुड में हिरोइन फिल्मों में अभिनय करती हैं नृत्य करती हैं तो इज्ज़त पाती हैं सेलीब्रिटी कहलाती हैं, प्रशासन उन्हें संसद का मेम्बर बनाते हैं, इलेक्शन में राजनीतिक दल उन्हें टिकट देते हैं.. अभिनेत्रियां जीतकर संसद में आती हैं… बड़े-बड़े पूंजपति उन्हें अपने घर की बहू बनाते हैं….. इन सब बदली स्थितियों से क्या ये कहा जा सकता है कि महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है… शिक्षा से महिलाओं की स्थिति में थोड़ा बदलाव तो आया है…. पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भी उनपर पड़ा है, शहरी महिलाओं की वेशभूषा खानपान बातचीत के तौर तरीक़े बदलें हैं… भौतिक सुख सुविधाओं का लाभ महिलाएं उठा रही हैं… बाज़ार का लाभ भी उठा रही हैं, भूमंडलीकरण के तहत बाज़ार गाँव कस्बों में भी गया है….. मगर महिलाओं की असल ज़िंदगी में उनकी सोच में उनकी मानसिक तनाव में बदलवा हुआ है या नहीं ?मध्यकालीन परपंरा अभी भी महिलाओं का दामन पकड़े है कि नहीं ?।

ग़रीब मज़दूर महिला निम्न वर्ग मध्यवर्ग की महिलाओं की सामाजिक आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव हुआ है ? निम्न मध्यवर्ग की महिलाएं अपने फैसले ख़ुद ले पा रही हैं ? अपने शरीक़ेहयात का इंतख़ाब अपनी पसंद से कर पा रही हैं ? उच्च शिक्षा तक पंहुच पा रही हैं ? गाँव कस्बों की महिलाएं ख़ासकर मुस्लिम महिलाओं की स्थिति कैसी है ? वो कॉलेज युनीवर्सिटी में जा पाती हैं ? उन्हें शिक्षा के स्वास्थ्य के पर्याप्त अवसर मिलते हैं ? क्या महिलाएं उच्च शिक्षा के बाद छोटे कस्बों में अपना करियर बना रही हैं ? कितनी उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों को रोजगार के लिए बाहर जाने दिया जाता है शादी से पहले और शादी के बाद ? कितनी उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियां महिलाएं ख़ुदमुख़्तार हैं ? कितनी ग़रीब महिलाओं को राजनीतिक दलों ने अपनी पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया ? कितनी ग़रीब दलित अल्पसंख्यक महिलाएं संसद में जा पाती हैं ? कितनी महिलाएं संसद में दहेजप्रथा बलात्कार के विरोध में प्रश्न उठाती हैं संसद में इन समस्याओं को केन्द्र में ला पाती हैं ?

सामंती व्यवस्था अब समाप्त हो गई ? आईपीएल में लड़कियों को मनोरंजन के लिए लाकर नचाया जाता है उन्हें किस नज़र से देखता है समाज, उन्हें कोई सेलीब्रिटी समझता है ? उन्हें कोई पूंजपति अपने घर की बहू बनाएगा ? उन्हें कोई राजनीतिक दल हाशिए से उठाकर संसद में मेम्बर बनाएगा ? शादी ब्याह में अभी भी ग़रीब बेरोजगार लड़कियों को लाकर नचाया जाता है शहरों में भी और छोटे गाँव कस्बों में भी…उन लड़कियों को किस नज़र से देखता है समाज ? वो मुख्यधारा से कब जुड़ेंगी ? कब सम्मान की ज़िंदगी ज़ियेंगी,मनोरंजन के नाम पर विज्ञापन के नाम पर महिलाओं का ये शोषण कब बंद होगा…..आज तथाकथित महिला राजनीतज्ञ जो उच्च जाती से हैं बड़ी-बड़ी अभिनेत्री सांसद हैं संसद में कभी उन्होंने इन हाशिए पर पड़ी महिलाओं के बारे में सोचा है ? या फिर दलित छात्रों की आत्महत्या पर ख़ामोश रहना आता है ? क्या सिर्फ़ फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर क्षण भर के लिए बदलाव किया जाता है ? अर्थी तो छात्रों की भी उठी थी कांधा देना तो दूर संवेदना के दो शब्द भी ज़बान से नहीं निकले …..कार्यकर्ता की अर्थी उठाकर महान बनने से बाक़ी अर्थीयों से जुड़े सवाल ख़लां में उड़ गए उनके कोई मायने नहीं वो अदृश्य हैं अब ?

मेहजबीं