महाराजा हरिसिंह व शेख अब्दुल्ला बनाम पंडित नेहरु व सरदार पटेल

कश्मीर के भारत में विलय का फैसला पंडित नेहरु का था व सरदार पटेल इस विलय के खिलाफ थे जब की धारा 370 के प्रावधान सरदार पटेल ने संविधान में तय किये और नेहरू इस के पक्ष में नहीं थे

सुनने में ये सब अजीब लगता है क्यों की आजाद भारत में ज्यादातर यह फैलाया गया कि पंडित नेहरू ने कश्मीर मामलों में सरदार को फ्री हैंड नहीं दिया इस कारण कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया ये भी कहा जाता है की नेहरू जी ने पटेल को कश्मीर मामले में दखल नहीं देने दिया औऱ कश्मीर के मामले में सभी निर्णय नेहरू ने खुद किये जब की बाकी सारी रियासतों का भारत में विलय में सरदार पटेल ने अहम भूमिका निभाई

पर सच्चाई इस के ऐन उल्ट है इस की शुरुआत देश की आजादी से पहले 1946 से होती है कश्मीर के सबसे लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला ने आजादी के आन्दोलन में बढ चढ कर हिस्सा लिया था वे महात्मा गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान व पंडित नेहरु के बहुत विश्वसनीय साथी थे 1946 में जब देश की आजादी की सुगबुगाहट शुरू हुई तब शेख अब्दुल्ला चाहते थे की कश्मीर भी आजाद हो पर शेख वहां लोकतंत्र चाहते थे और महाराजा हरिसिंह चाहते थे कश्मीर पर उन का वंश ही शासन करें इन्हीं सब कारणों से महाराजा हरिसिंह ने 1946 में शेख अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया कांग्रेस की तरफ से पंडित नेहरू महाराज को समझाने गये तो महाराजा हरिसिंह की डोगरी सेना ने उन्हें कश्मीर में नहीं घुसने दिया और महाराजा का आदेश सुनाया की नेहरु के कश्मीर में घुसने पर पाबंदी लगाई जाती है और फिर भी अगर नेहरू कश्मीर में घुसना चाहेंगे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जायेगा

इस पर शेख अब्दुल्ला ने कहा की अंग्रेजी सरकार ने उन्हें कई बार गिरफ्तार किया जिस का उन्हें कभी दुख नहीं हुआ पर जब आजादी मिलने जा रही है तो लोकतंत्र की मांग करने पर वहां के महाराजा द्वारा जेल में डालने का दुख ताजिंदगीं रहेगा 1947 में देश आजाद हो गया पर कश्मीर के राजा तब भी निर्णय पर नहीं पहुंच पाये तब सरदार पटेल ने कश्मीर के भारत में विलय पर हरिसिंह से बात की तो महाराज हरिसिंह ने साफ कर दिया की वे कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र रखना चाहते है जिस पर उन के वंश डोगरा का राज रहेगा

पर महाराज हरिसिंह कश्मीर में मुसलमानों की बहुलता से डरते भी थे महाराजा खुद को कितना असुरक्षित महसूस करते थे इस का पता इस बात से चलता है की उन की सेना में सिर्फ डोगरी राजपूत शामिल थे और मुसलमानों के अलावा कश्मीर के सिक्खों को भी उन्होंने सेना से दूर रखा इसी डर के कारण उन्होंने सरदार पटेल से स्वीटजरलैंड जैसी स्वायत्ता की मांग की जिस में वहां के महाराजा की इजाजत से भारत की सेना बाहरी आक्रमण या आंतरिक लङाई पर दखल देगी व कश्मीर की सुरक्षा की गांरटी भारत सरकार की होगी

सरदार पटेल ने इस तरह के किसी समझोते पर बात करने से ही इन्कार कर दिया जब पंडित नेहरू ने कश्मीर मसले पर बातचीत को कहा तो सरदार पटेल ने साफ किया की वो नहीं चाहते की कश्मीर का भारत में विलय हो उन्होंने कश्मीर को बाहरी व आंतरिक हिंसा से ग्रस्त एक ऐसा राज्य कहा जिस की सीमायें सुरक्षित रखना बहुत मुश्किल होगा चीन अफगानिस्तान व पाकिस्तान के कारण ये क्षेत्र हमेशा देश के लिए मुश्किलें खङी करता रहेगा और इस का भारत में विलय बिल्कुल भी उचित नहीं होगा औऱ जब वहां का महाराजा स्वतंत्र देश चाहता है तो हम क्यों दखल दें

पर महाराजा हरिसिंह की चिंता गलत नहीं थी और पाकिस्तान की तरफ से कबायलियों ने जब आक्रमण शुरू किये और डोगरी सेना उस के सामने ना टिकने पर उन्होंने भारत सरकार से सहायता की गुहार लगाई पर सरदार पटेल ने किसी भी सहायता से साफ इन्कार कर दिया औऱ कहा की स्वतंत्र राष्ट्र के महाराजा अपने देश की रक्षा खुद करें

तब महाराजा हरिसिंह ने भारत के प्रथम गवर्नर जनरल माउंटबेटन से भारत सरकार से सहायता की बात करने की फरियाद की पर सरदार पटेल ने साफ कर दिया की जब तक कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय ना हो तब तक कोई सहायता नहीं की जायेगी

तब महाराजा हरिसिंह ने सिक्किम की तरह भारत में विलय की हामी भरी सिक्किम के भारत में विलय में वहां के नाम ग्याल राजवंश ने विदेश व रक्षा सरकार के पास रखने व शेष निर्णय खुद राज्य सरकार द्वारा लेने की शर्त पर भारत में सिक्किम के विलय को मंजूरी दी थी पटेल इस के लिए तो तैयार हो गए पर उन्होंने कहा की कश्मीर के भारत में विलय पर वहां के महाराजा की इजाजत काफी नहीं है कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का असर महाराजा से भी ज्यादा है उन से भी बातचीत करनी होगी

इस तरह बातचीत में सरदार पटेल महाराजा हरिसिंह व शेख अब्दुल्ला शामिल हुए शेख अब्दुल्ला ने कहा की वे और कश्मीर की जनता भारत में विलय चाहती है पर स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा रखने के लिए वहां से जनमत संग्रह करवाया जाये और उसी जनमत संग्रह को भारत में विलय की अंतिम स्वीकृति माना जाये और इसे एक शर्त के रूप में भारत के संविधान में शामिल किया जाये सरदार पटेल और भारत सरकार ने इस पर अपनी सहमति दी

इस विलय के बाद सेना के उच्चाधिकारी के एस थिमैय्या के नेतृत्व में भारतीय सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया कबायलीयों से लङाई के लिए थीमैय्या ने टैंकों को 11575 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर अपने युद्ध कौशल से पूरी दुनिया को चकित कर दिया काबायली आगे बढने से रूक गए पर जितने भूभाग पर उन्होंने कब्जा कर लिया था वो पाकिस्तान के पास ही रहा और उस का फैसला जनमत संग्रह के नतीजे पर रखा गया

जनवरी 1948 में भारत गवर्नर जनरल माउंटबेटन की राय पर कश्मीर का मामला नवगठित संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए हालांकि तब भी कई उच्चस्तरीय नेताओं व अधिकारी वर्ग का कहना था की ब्रिटेन इस में पाकिस्तान का पक्ष लेगा और हुआ भी यही और कश्मीर हमेशा के लिए उस समस्या से ग्रसित ही रहा

संविधान सभा की मीटिंग में सरदार पटेल ने स्वयं वो प्रस्ताव रखा जिस से जम्मू कश्मीर के स्वायतत्ता की वो शर्ते पूरी हो जिन पर सहमति के बाद कश्मीर का भारत में विलय संभव हुआ था तब संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने इस का विरोध किया इस पर सरदार पटेल ने कहा की हमें समझोते का पूर्णतः पालन करना चाहिए हम एक नए राष्ट्र का निर्माण कर रहे है और शुरू में ही अगर तय की गई शर्तो से हम मुकरने लगे तो देश की विश्वसनीयता को धक्का लगेगा इस तरह धारा 370 संविधान में आ गई यहां ये भी उल्लेखनीय है की जिस संविधान सभा ने इसे मंजूरी दी उस में जनसंघ या संघ के तत्कालीन सर्वेसर्वा डाक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे

1952 के चुनाव के बाद शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में फिर से स्वायत्तता का आन्दोलन शुरू कर दिया तब पंडित नेहरू ने देश के लिए अपने घनिष्ठ मित्र पर सबसे सख्त कदम उठाया और राष्ट्र सुरक्षा कानून के तहत शेख अब्दुल्ला को 9 अगस्त 1953 को गिरफ्तार कर लंबे समय के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया गया शेख अब्दुल्ला पर कितना सख्त कानून लगाया गया इस का अंदाजा इस बात से हो जाता है की शेख अब्दुल्ला 10 साल से भी अधिक की जेल काट कर 06 अप्रैल 1964 को तब रिहा हुए जब जनमत संग्रह की राग वो भूलने को तैयार हुए

जब पंडित नेहरू का निधन हुआ तो यही शेख अब्दुल्ला फूट फूट कर रोये उन्होंने कहा की नेहरु से बङा राष्ट्रवादी कोई नहीं हो सकता जेल में अपनी बातचीत के बारे में शेख ने बताया की जनमत संग्रह की बात स्वीकार करने को नेहरू सरकार की गलती मानते थे और कहते थे ये गवर्नर जनरल माउंटबेटन की गलत सलाह के कारण हुआ जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर के भारत में विलय पर ब्रिटेन द्वारा भारत का पक्ष लेने की गारंटी ली थी पर दस महिने गवर्नर जनरल रहने के बाद माउंटबेटन तो इंग्लैंड लोट गए और कश्मीर समस्या को हमेशा के लिए समस्या बना कर छोड़ गए

शेख अब्दुल्ला ने इस के बाद समझोते के तहत स्वायतत्ता की बात तो की पर पंडित नेहरु से हुए अपने समझोते के तहत जनमत संग्रह की बात फिर कभी नहीं उठाई वे 1975 से लेकर 1982 तक कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे शेरे कश्मीर कहलाने वाले शेख अब्दुल्ला के समय कश्मीर पर आतंकवाद का साया कभी नहीं रहा

वर्तमान आतंक 1988 के बाद शुरू हुआ तब तक कश्मीर में अमन चैन था और ये क्यों शुरू हुआ क्या कारण रहा ये एक अलग यक्ष प्रश्न है हमारे सामने जिसे सभी पक्षों को मिलकर इसका समाधान ढूँढना होगा.

राजेंद्र गोदारा