महागठबंधन से अलग होने के 6 महीने बाद ही नीतीश कुमार फिर महागठबंधन में शामिल होना चाहते थे

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बिहार के पूर्व सीएम और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने दावा किया है कि नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने और भाजपा से हाथ मिलाने के छह महीने बाद वापसी करना चाहते थे, लेकिन लालू ने उन्हें झिड़क दिया क्योंकि वह उनमें पूरी तरह से अपना विश्वास खो चुके थे. अपनी जल्द रिलीज होने वाली किताब गोपालगंज टू रायसीना: माई पॉलिटिकल जर्नी में लालू यादव ने दावा किया है कि नीतीश कुमार ने जनता दल सेक्युलर (जदयू) के उपाध्यक्ष और विश्वासपात्र प्रशांत किशोर को दूत के तौर पर पांच विभिन्न मौकों पर भेजा था. हर मौके पर लालू को इस बात के लिए मनवाने की कोशिश की गई कि उन्हें धर्मनिरपेक्ष गुट में दोबारा शामिल किया जाए.
लालू ने अपनी किताब में लिखा है कि किशोर ने इस बात के संकेत दिए थे कि जदयू को भाजपा से हटाकर महागठबंधन में शामिल कर लिया जाए. मेरे मन में नीतीश के प्रति कोई कड़वाहट नहीं है. मैं उनमें पूरी तरह से विश्वास खो चुका था. मुझे इस बात का यकीन नहीं था कि 2015 में जिन लोगों ने महागठबंधन के लिए वोट किया था और जो पार्टियां भाजपा के खिलाफ एकजुट हुई थीं वह किस तरह की प्रतिक्रिया देतीं यदि मैं किशोर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता.
लालू की इस किताब का नलिन वर्मा ने सह-लेखन किया है. यह किताब रूपा पब्लिकेशन इंडिया द्वारा प्रकाशित होगी. जदयू के महासचिव केसी त्यागी ने लालू के उस दावे को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि पार्टी के शीर्ष नेता होने के तौर पर मैं यह कहना चाहता हूं कि नीतीश ने 2017 में राजद से अलग होने के बाद दोबारा कभी वापस नहीं जाना चाहते थे. यदि ऐसी कोई इच्छा होती तो यह पार्टी की आंतरिक बातचीत में जरूर होती. जदयू का राजद को अस्वीकार कर देना स्थायी था और नीतीश कुमार भ्रष्टाचार पर समझौता कर लेने वाले आखिरी व्यक्ति होते. इसी कारण लालू के सभी दावे झूठे हैं.