ब्रांड मोदी बचाने के लिए तेजपाल की “पत्रकारीय हत्या” जरूरी थी

शशि शेखर

तरूण तेजपाल अब बरी हो गए हैं लेकिन कुछ महत्वपूर्ण सवाल उनके रिहाई के बाद मन में आ रहे हैं। क्या वह ब्रांड तहलका जर्नलिज्म दुबारा शुरु करेंगे? या फिर तेज-तर्रार पत्रकार वीनित नारायण (हवाला डायरी) की तरह चुपचाप मथुरा-वृन्दावन में जा कर भजन करेंगे? यानी, क्या तेजपाल की रिहाई कहीं कोई शर्त आधारित तो नहीं हुई है?

2013 के अगस्त-सितंबर का महीना था। मैं आशीष खेतान के साथ गुलेल.कॉम हिंदी की कमान संभाल रहा था। एक दिन आशीष खेतान ने बताया कि एक बडी घटना घटी है। उन्होंने ने बताया कि देश के जाने-माने खोजी पत्रकार तरूण तेजपाल ने अपने सहकर्मी को एक मेल भेज कर अपनी “गलती” के लिए सॉरी बोला है। कहानी ये थी कि तेजपाल ने अपने एक जूनियर सहकर्मी का यौनउत्पीडन किया था। उन पर मुकदमा दर्ज हुआ। वह जेल गए। जमानत मिली। 8 साल केस चला और 21 मई को वे बरी कर दिये गए। “गलती” साबित हुई, नहीं हुई, जजमेंट पढने पर ही पता चलेगा। मान कर चलिए, “गलती” साबित नहीं हुई होगी, तभी बरी हुए है।

खैर, अब जरा खबरों के पीछे की खबर पर चलते हैं। घोषित-अघोषित तौर पर तरूण तेजपाल की पत्रकारिता दक्षिणपंथी राजनीति को निशाने पर लेने के लिये जानी जाती है। बंगारू लक्ष्मण, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैमरे पर रिश्वत लेते दिखे थे। ये तेजपाल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के पन्ने ही थे लेकिन, मामला इतना भर नहीं है। माया कोडनानी याद हो, बाबू बजरंगी याद हो, तो उन सबका भी ऑन कैमरा स्वीकारोक्ति याद कीजिये कि कैसे उन्होंने गुजरात दंगे की आग भडकाई थी और उसी स्टिंग के कारण वह जेल में थे।

ये स्टिंग करने वाला कौन था? आशीष खेतान। वही, तेजपाल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के सुपर स्टार खोजी पत्रकार। आप आसानी से कह सकते है कि वे टार्गेटेड जर्नलिज्म कर रहे थे, कर रहे होंगे। लेकिन, जो 3-4 महीना मैंने उनके साथ काम किया, मुझे कभी ऐसा नहीं लगा। आप भी चाहे तो आशीष खेतान के दर्जनों खोजी रिपोर्ट पढ सकते है, जो महाराष्टृ में शरद पवार के भ्रष्टाचार से जुडे रहे है। और हां, इन रिपोर्ट्स को करने के लिए जितने डोक्यूमेंट्स पढने पडते है ना, उतनी मेहनत में एक साधारण विद्यार्थी भी पहले प्रयास में आईएएस बन जाए। लेकिन, ब्रांड मोदी, मोदी के इमेज के लिए संभावित खतरा अभी टला नहीं था।

2014 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले एक ऑडियो स्टिन्ग आया था। जिसमें किसी महिला की जासूसी की बात थी। “साहेब” शब्द का इस्तेमाल था। मीडिया में काफी हो हल्ला भी मचा था. आशीष खेतान के साथ एक और नाम था, कोबरा पोस्ट वाले अनिरूद्ध बहल का। एक बार फिर वही तेजपाल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से निकले जांबाज पत्रकार हैं।

इस स्टिंग पर खूब बवाल हुआ। लेकिन, कमाल ये हुआ कि लडकी का पिता खुद आगे आ कर, प्रेस कांफ्रेंस कर ये साफ कर गए कि उसकी बेटी की “जासूसी” उसके अनुरोध पर ही हो रही थी। कांग्रेस तब तक नैतिक रूप से पस्त हो चुकी थी। अपने ही मंत्रियों के सलाह को नजरान्दाज कर गई कि इस मामले की जांच के लिए एक आयोग बना दिया जाए। जरा सोचिए, आयोग बन गया होता, तो आज “ब्रांड” का, “इमेज” का क्या हाल होता? लिस्ट अभी खत्म नहीं हुई है।

तेजपाल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के स्टार हार मानने को तैयार नहीं थे। सहारा डायरी याद होगा? एक डायरी मिली, जो पीआईएल के लिए मशहूर वकील प्रशांत भूषण तक पहुंची। अब डायरी के पंख तो थे नहीं कि उड कर खुद पहुंच जाती? सूत्रों के मुताबिक, ये डायरी एक पत्रकार को मिली, जो दिल्ली के एक बडे नेता तक पहुंचाई गई। वहां से वो डायरी प्रशांत भूषण तक पहुंची। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और मामला खत्म हो गया। अब, सोचिये, मामला कहीं टिक गया होता तो “ब्रांड” का क्या होता, “इमेज” का क्या होता?

बहरहाल, सोचने वाली बात ये है कि ये सारा खुरपेंच तब हुआ, जब तरूण तेजपाल जेल में थे या पत्रकारिता से बिल्कुल बाहर कर दिए गए थे। अगर वे पहले की तरह ही पिछले 7 सालों के दौरान सक्रिय होते, तो क्या होता? वहीं होता, जो द वायर की एक रिपोर्ट से हो जाता है? दो-चार पत्रकार हर महीने जेल जाते। वहीं होता, जो “होवाने” की नाकाम कोशिश एनडीटीवी वाले रविश करते है। हालांकि, रविश फीचर पत्रकार है, खोजी पत्रकारिता वे चाह कर भी नहीं कर सकते। इतना दम उनमें है नहीं।

लेकिन, तरूण तेजपाल अब अदालत से बरी हो गए है। तो सवाल है कि क्या वे एक बार फिर “तहलका” पत्रकारिता करेंगे? या हवाला डायरी का भंडाफोड करके देश की पत्रकारिता-राजनीति में तहला मचाने वाले वीनित नारायण की तरह अचानक पत्रकारिता छोड कर वृन्दावन में ठाकुर जी की सेवा में जुट जाएंगे?