बिहार को आदत है शर्मनाक विषयों को अपना गर्व बना लेने का

लेखक: संजीवन कुमार सिंह – जमुई , बिहार
मुख्यमंत्री नीतीश दिल्ली जाते थे तो सभाओं में बड़े गर्व से कहते थे की हमें आप सब बिहारियों की इतनी बड़ी संख्या यहां देखकर गर्व होता है। मजदूर पलायन जो शर्म का विषय होना चाहिए था, उसे हमारे नेताओं ने गर्व की तरह प्रदर्शित किया। बताइए जो मजदूर 10-12 हजार की नौकरी के लिए अपना गांव घर छोड़कर दिल्ली मुंबई के स्लम में मजदूरी कर रहे हो उसको जाकर ये झूठा गौरवबोध बेचा जाता था की “आप लोगों के कारण ही यह प्रदेश चल रहा है, आप चले जाएंगे तो ये प्रदेश रुक जाएगा।”
ठीक यही केस हुआ है फिर 15 साल की ज्योति कुमारी के साथ । वास्तव में ये घटना समाज को झकझोरने वाली थी की एक 15 साल की बेटी को अपने मजदूर बाप को साईकिल पर बिठाकर 1200 किमी आना पड़ा। एक व्यवस्था के लिए, एक सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती है। इस घटना के बाद लोगों को प्रश्न करना चाहिए था की क्यों हमारे यहां से लोगों को मजदूरी करने के लिए इतनी दूर जाना पड़ता है। आवाज उठनी चाहिए थी हमारे लोगों को अपने प्रदेश में रोज़गार कब मिलेगा। लेकिन नहीं, इस शर्मनाक स्थिति को भी झूठे आडंबर में बांधकर एक गर्व का विषय बना दिया गया।
ज्योति बहादुर है, उसके जज़्बे को सलाम है। लेकिन उसके कृत्य पर गर्व करने का अधिकार सिर्फ उसके परिवार को है। एक समाज के तौर पर हमारे लिए लिए ज्योति की मजबूरी केवल शर्म का विषय हो सकता है, गर्व का नहीं। उसके शौर्य के गौरव गान के पीछे उसकी मजबूरी और अपने शर्म को मत छुपाईए। समाजिक तौर पर थोड़े गंभीर बनिए और अपनी जिम्मेदारी को समझिए.
आज नेता लोग जाकर उसका सम्मान कर रहे हैं, उसके पढ़ाई के खर्चे उठाने की घोषणा कर रहे हैं, 7 गियर वाला साईकिल प्रोत्साहन में दे रहे हैं, फोटो खिंचवा रहे हैं, उसे गौरव का विषय बता रहे हैं। इन निर्लज्ज नेताओं को पूछिए की तनिक पता करे की जिस ज्योति के पढ़ाई खर्च वहन करने का झूठा आडम्बर ये कर रहे हैं, उसे किन मजबूरियों के चलते कक्षा पहली के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। ये साईकिल भी उसका नहीं बल्कि उसके छोटी बहन को मिला था। ये बेशर्म नेता सब सत्ता में थे जब ज्योति के पिता को मजदूरी करने के लिए घर से 1200 किमी दूर पलायन करना पड़ा। और क्या यह केवल ज्योति की एकलौती घटना है या बड़े स्तर पर समाज में सभी गरीब के साथ होता , समाज और सरकार बड़ी आबादी को अकिसे अनदेखा कर दे यह सब आडम्बर केवल उस दिशा में तय किया जारहा है , की आप बड़े सवाल को पूछने की जहमत ही न करे. बेशर्म नेता सत्ता में थे जब ज्योति कक्षा पहली के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। वो बच्ची इस व्यवस्था के कुव्यस्था और लापरवाही की मारी झेली। लेकिन आज उसके व्यक्तिगत शौर्य को व्यवस्था ने अपना गर्व बना लिया। इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है।
तुम्हें बहुत सारा आशीर्वाद, प्यार ज्योति साथ ही क्षमा मांगता हूं। पीपली लाइव के नत्था की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं ये तुम्हें। ईश्वर तुम्हें इन चिल, गिद्दों से बचने की शक्ति दे।
अगर हमारा समाज और बुद्धि जीवी आज अपना परिचय देना चाहता है तो सत्ता में बैठे मोती चमड़ी वाले नेताओं से इनके पलायन पर सवाल करे , शिक्षा व्यवस्था की बदहाली और एक मान बाप की मजबूरी को समझे , समाज में सभी के लिए स्वास्थय और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने में अपनी भमिका निभाए , सरकारी नाकामी को जनता के सामने लाए न की सरकारी वकील तुषार मेहता की तरह सरकार का गुणगान शुरू कर दे.