बंगाल के चुनावी नतीजे और राजनितिक हिंसा

रिज़वान रहमान
बंगाल में अब तक किस पार्टी के कार्यकर्ता ने किसकी पिटाई की है, यह अपने आप में अलग मुद्दा है। सब जानते है, बंगाल राजनीतिक हिंसा की धरती रही है। लेकिन अभी जो चल रहा है, उस हिंसा को अलग रंग दिया जा रहा है। इसे समझना पड़ेगा। बड़े-बड़े पत्रकार, तथ्य को कमो-बेस सही रखते हुए भी, एक खास तरह की नैरेटिव में फंसे हुए हैं। बीजेपी बंगाल की दूसरी पार्टियों की तरह नहीं है इसलिए किसी भी तरह की हिंसा को कोई भी रूप दे सकती है।
बंगाल में जो चुनाव के बाद की जो हिंसा चल रही है, इसमें सोशल मीडिया पर सीपीएम के हाई-प्रोफाइल कैडर्स बीजेपी को बायपास दे रहे हैं। यह अपने आप में बलंडर है। और वहां ग्राउंड पर चल रही हिंसा में मुख्य धारा की मीडिया द्वारा बीजेपी को शिकार बताया जा रहा है। सोशल मीडिया के वॉर रूम में उसकी रुपरेखा तैयार की जा रही है। तथा कथित बड़ी पार्टियों के आईटीसेल सक्रिय हैं। बंगलादेश की तस्वीर और वीडियो में छेड़खानी कर सांप्रदायिक उन्माद खड़ा करने की हर संभव कोशिश की जा रही है। ये मैं नहीं कह रहा हूं, फैक्ट चेकर्स उन वीडियो और तस्वीर के मुताल्लिक बता रहे हैं। जबकि इस हिंसा में सभी पार्टी को नुकसान हुआ है। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी और टीएमसी, दोनों के ही कार्यकर्ता मारे गए हैं।

लेकिन बीजेपी, आईटी सेल और मेनस्ट्रीम मीडिया के बल पर बंगाल में सांप्रदायिकता का खेल खेलने की कोशिश में लग चुकी है। अस्थिरता खड़ा करना चाहती है, जिसके अपने राजनीतिक फायदे हो सकते हैं. #PresidentRuleInBengal नाम से हैशटैग चल ही चुका है। चुनाव परिणाम के दिन से ही हम सब देख रहे हैं कि किस प्रकार जनमत को बदनाम करने के प्रयास हुए।
यही नहीं बीजेपी अपने चुनावी कैंपेन और उससे बहुत पहले से बंगाल का माहौल खराब करने में लगी हुई थी। कम्यूनल प्रोजेक्ट लॉंच कर दिया गया था जो चुनावी गणित के हिसाब से असफल प्रयोग रहा। लिहाजा अंतत: चुनाव हारना ही पड़ा। सीट कितने आएं और क्यों आएं, यह अलग विश्लेषण है। लेकिन अभी बीजेपी फेक न्यूज के सहारे बंगाल में सांप्रदायिक सड़ाँध भरना चाहती है। उम्मीद है सोशल मीडिया पर एक्टिव सीपीएम के कैडर्स इस चाल को समझेंगे और बंगाल बचाने के लिए हर संभव बीजेपी के प्रोपगांडा मशीनरी को धवस्त करेंगे।
वात ये भी है की चुनाव के बाद की जो हिंसा भड़की उसके लिए कोण ज़िम्मेदार ठहराया जाये. चूँकि बंगाल में ममता बनर्जी के शपथ लेने तक कानून – व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग या यूँ कहें सिधे गृह मंत्रालय की है जो बीजेपी के दूसरे सबसे बड़े शक्तिशाली नेता अमित शाह के अधीन है। ऐसे में बीजेपी का विक्टिम कार्ड खेलना एक सड़यंत्र का हिस्सा लग रहा है ताकि राज्य में हिंसा के बहाने अस्थिरता पैदा कर राष्ट्रपति लगाने का रास्ता साफ़ हो सके और जनमत को ठेंगा दिखा सके। वैसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के कटटर समर्थक अभिनेत्री कंगना रानावत ने बंगाल के चुनावी नतीजे के बाद नरसंहार कराने का आवाहन किया था। उनका ट्वीट सामाजिक उन्माद पैदा करने के लिए काफी था लेकिन समय रहते ट्विटर ने उनका अकाउंट निलंबित कर दिया। बताते चलें कि कंगना को वाई प्लस की सुरक्षा देश के कर दाताओं के पैसे पे मिली हुई है। उम्मीद है कि बंगाल की जनता और खास तौर पे सी.पी.एम. और टी एम सी के कार्यकर्ता इस बात को समझेंगे और बीजेपी को इरादे को कामयाब नहीं होने देंगे।