प्रोपेगंडा से दूर रहने में ही हमारी भलाई है

डॉ. मुमताज़ नय्यर, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी

जब से कोरोना का कहर भारत में शुरू हुआ है, तब से अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ऑक्सीजन,दवाई, हॉस्पिटल बेड से लेकर जरूरतमंदों को हर तरह का सहायता मुहैय्या कराने की कोशिश की है और ये काम अभी भी जारी है। किसी भी जरुरत का सामान या दवाई का कालबाज़ारी नहीं की, यहाँ तक की लाशों को अंतिमसंस्कार के लिए न सिर्फ श्मशान पहुँचाया बल्कि उनका अंतिम संस्कार भी किया। अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों ने सब कुछ भूला कर अपनी जान पर खेल कर मदद पहुँचाने की कोशिश की। करना भी चाहिए क्यूंकि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।

जब मोदी और अमित शाह बंगाल में बड़े बड़े चुनाव रैली कर रहे थे, इन्ही के खिलाफ ज़हर उगल रहे थे तब यह समुदाय रात दिन एक किये हुए थे लोगों को मदद पहुँचाने में। संघ हात पर हाथ धरे सब देख रहा था। सब तरफ से इस समुदाय की तारीफ़ हो रही थी खास तौर पे सोशल मीडिया लोग पे लोगों ने काफी सराहना की तब संघ से देखा न गया। एक झूठी कहानी बनाई और उसे मुख्यधारा की मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया से भी उसे वायरल करवाया कि नागपुर के किसी हॉस्पिटल में एक बुजुर्ग जिनका सम्बन्ध संघ से है, ने अपना बेड किसी और कोरोना पीड़ित को दे दिया। उन बुज़ुर्ग का यह कहते हुए दावा किया गया कि हमने अपनी ज़िन्दगी जी ली अब हमारा बेड किसी जरूरतमंद को दे दिया जाए। वैसे इस दावे को हॉस्पिटल प्रसाशन ने उसी दिन आधिकारिक रूप से खारिज कर दिया था। हॉस्पिटल प्रशासन का कहना था कि ऐसा कोई व्यक्ति हॉस्पिटल में भर्ती ही नहीं हुवा।

इसी विषय पर मैंने सोशल मीडिया पे एक पोस्ट लिखा था कि यह खबर झूठी है। फिर क्या था एक पढ़े लिखे संघी भी मुझे करने लगे और फालतू के बहस में कूद गए। अलग अलग लिंक देने लगे अपने बात को साबित करने के लिए लेकिन मुझे पता था कि ये सब झूठ है लेकिन वो नहीं माने। उसके जवाब में मैंने कई लिंक दिए यहाँ तक कि लोकल मराठी खबर का स्क्रीनशॉट और लिंक भी फिर भी वो नहीं माने। फिर एक ने कहा कि अगर इंडियन एक्सप्रेस इस खबर पुष्टि करता है तो वो मान लेगा कि यह खबर झूठी है।

फिर क्या था मैंने थोड़ा सर्च कर के वो भी दे दिया जिसमें इंडियन एक्सप्रेस इस बात को वेरीफाई किया था कि खबर झूठी है। हॉस्पिटल प्रसाशन का बयान भी प्रकाशित किया था लेकिन वह नहीं माना क्योंकि वो एक संघी था। संघ के प्रोपेगंडा को आगये बढ़ाना ही उसका धर्म है। सच से उसको कोई लेना देना नहीं था। वो अड़े रहा और बाद में मुझे ब्लॉक कर भाग गया! हालाँकि पिछले 20 सालों से हम एक दुसरे को जानते हैं!

बहरहाल पिछले सप्ताह एक और सोशल मीडिया पोस्ट पर एक फिरका वाराना बहस चल रही थी जिसे अक्सर मैं अनदेखा कर देता हूँ। क्यूंकि वहां वक़्त का नुक्सान के इलावा कुछ हासिल नहीं। मैंने आपसी भाईचारे की बात की पर वहां फिरका विशेष के लोगों को यह बात पसंद न आई। बस मेरा फिरका मेरा फिरका पर लगे हुए थे। मेरे फिरका को सताया जा रहा है, दबाया जा रहा है, हालाँकि सचाई ये है कि जहाँ वो रह रहे हैं वहां ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। मैंने इंकार भी नहीं किया की ऐसा नहीं होता होगा। अभी दुनिया में जहाँ जिनकी अक्सरियत है वहां अकलियतों को दबाया जाता है, मारा जाता है।

चीन से लेकर अमेरिका तक उदाहरण भरे पड़े हैं। कहीं वर्चस्व से जुड़ा मामला है तो कहीं राजनीति से प्रेरित। पर एक साहेब ने सीधे आकर चैलेंज कर दिया कि आप मुझे एक लिंक दे दीजिये जहाँ मेरे फिरका ने आपके फिरका पर या किसी पर जुल्म किया हो ! मैंने एक नहीं कई सारे लिंक दे दिए पर वो कहाँ मानने वाले थे। क्योंकि उनको तो अपना प्रोपेगंडा चलाना है। उनकी नियत सही होती तो वो बात मान लेते। आपसी भाईचारे की की बात करता, पर नहीं किया! बस इतना ही कहना चाहूंगा कि ऐसे प्रोपेगंडा चलाने वालों से दूरी बनाकर ही रहे इसी में हमारी भलाई है।