नो, मोदी इज नॉट हिटलर, ये झूठ है !!!

मनीष सिंह
मोदी विरोधियों के बीच उनकी तुलना हिटलर से करने की प्रवृत्ति समान्यत: देखी गयी है। लोकतांत्रिक चुनाव जीतकर आये हिटलर के तानाशाह बन जाने, विरोधियों को चुप या खत्म कर देने, भयंकर प्रोपगंडा और नफरती राजनीति की वजह से हिटलर को मोदी से जोड़कर देखा जाता है। हालाँकि ये तुलना एक तानाशाही प्रविर्ती के नेता केा दूसरे तानाशाही प्रविर्ती के नेता के साथ जोड़कर देखा जाता है। खास तौर पर भारत में सरकार की निति या सरकार द्वारा उठाये गए कदम के आम जनता या पार्टी विशेष का कोई विरोध /प्रतिरोध /आंदोलन में एक नारा बहुत ही प्रचलित है “जो हिटलर की चाल चलेगा वो हिटलर की मौत मरेगा”। याद रहे कि ये तुलना अच्छे सन्दर्भ में नहीं की जाती है लेकिन मोदी उसमे भी फिसड्डी हैं। आइए इस बहस को आगे बढ़ाते हुवे इसकी पड़ताल करते हैं कि आखिर दो ऐसे नेता जिनकी सोच मिलती जुलती हो उनकी तुलना क्यों बेमानी है।
हिटलर की सत्ता दो हिस्सों में देखी जा सकती है। 1933 से 1939 का तुलनात्मक शांतकाल, और उसके बाद युध्द का समय। नरेद्र मोदी के बचे हुए दौर में संभव है कि छोटी मोटी सर्जिकल स्ट्राइक होती रहे, मगर हिटलर की तरह भूगोल और इतिहास बदलने वाले के युद्ध की संभावना, परमशून्य है। ऐसे में हिटलर के पहले 6 साल के तुलनात्मक शांतकाल की मोदी के 7 साल के साथ ही तुलना की जा सकती है।
1933 में हिटलर के सत्तारोहण के वक्त जर्मनी गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी के चरम पर था। 1929 के बाद वैश्विक मंदी एक ओर थी, दूसरी ओर वारसॉ की संधि के प्रतिबंध। मोदी को इसके मुकाबले सत्ता सँभालते वक़्त दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था मिली। हिटलर अच्छे दिन के वादे पर आया था। बेरोजगारी प्रथमिकता थी। हिटलर ने तेजी से पब्लिक वर्क्स शुरू करवाए। करीब 7000 किलोमीटर नये हाइवे, नई रेल लाइन्स, स्कूल, कॉलेज, प्रशासनिक भवन बनने लगे। अचानक ही निर्माण उद्योग में नौकरियां मिलने लगीं। हमारे देश मे चरम पर पंहुचा हुवा निर्माण सेक्टर, मोदी के सत्ता सँभालने के बाद उल्टा बैठ चुका है।
हिटलर को छोटे और मझोले व्यवसायों का समर्थन था। उसने पलटी मारी और देश मे 40 हजार डॉलर से कम वाले सारे उद्योगों को अपंजीकृत कर खत्म कर दिया। पर इन तमाम लोगो को बडे उद्योगों के चैनल में कहीं ना कहीं सेट कर दिया। हमारे यहां छोटे मझोले व्यापारी का व्यापार बड़ी कम्पनियां खा रही हैं। सरकार को कोई मतलब नही है। हिटलर ने तमाम सरकारी उपक्रम, नाजी पार्टी समर्थक उद्योगपतियों को बेच दिये। रेलवे, बैंक, स्टील, इंश्योरेंस, पेट्रोलियम सब मुट्ठी भर कारपोरेट के हाथ मे। लेकिन डिविडेंट (मालिकों की जेब मे जाने वाला मुनाफा) 6% पर फिक्स कर दिया। भारत में ऐसा सोच भी नहीं सकते।
कम्पनियों को बैंक से कर्ज, सरकार से ऑर्डर मिलते, सुनिश्चित मुनाफा मिलता, लेकिन निर्धारित मुनाफे से ज्यादा पैसा, सरकार को वापस करना पड़ता था।
उन्हें नए प्लांट्स, नई तकनीक, नए अविष्कार पर इन्वेस्ट करना था उन जरूरतों की ओर, जिस तरफ देश की जरूरत हो। सीधा मतलब ये, की हिटलर की मुट्ठी में सारे उद्योगपति थे, उद्योगपतियों की औकात हिटलर को नचाने की नही थी। हमारे यहां का हाल आप जानते हैं। हमारे यहां एक निजी कम्पनी अपना प्रोडक्ट लांच करती है तो प्रधान मंत्री का फोटो उसपे छप जाता है सेल्स मैन की तरह। मतलब साफ़ है कि उद्द्योगपति यहां सरकार चलाते हैं या सरकार के काम काज में उनकी दखल होती है।
हिटलर ने मजदूर यूनियन प्रतिबंधित कर दिए। धरना (जो मजदूर करते है) और तालाबंदी ( जो मालिक करते हैं) दोनों को गैर कानूनी कर दिया। काम के घण्टे बढ़ा दिया लेकिन प्रोडक्शन इन्सेंटिवाइज किया। लोगों की औसत आय बढ़ी, ट्रेनिंग, स्किल पर भी खास जोर दिया। मजदूरों की आय में 20% और मैनजर्स कि आय में 50% तक बढ़ोतरी हुई। हमारे यहां फैक्ट्रियां अपनी क्षमता का 50-60 उत्पादन करने को विवश हैं। मैनेजर और स्किल्ड कर्मी काम से निकाले जा रहे हैं। वही भारत चाहे बड़ी कंपनी हो या छोटी काम करने का तरीका अभी भी साहूकार वाला ही है।
हिटलर का किसान फायदे में थे क्योकि हिटलर आत्मनिर्भरता का प्रेमी था। उसे मालूम था कि वह युध्द करेगा, और इसके लिए खाद्यान में आत्मनिर्भर होना चाहिए। उसने चार साल में किसानों की आय लगभग दो गुनी कर दी। सब्सिडी, एश्योर्ड प्राइज और मेकेनाइज फार्मिंग से यह चमत्कार किया। हमारे किसान राजधानी की सीमाओं पर सूखे मुंह, मीडिया अटेंशन की बाट जोह रहा हैं। जो सरकार किसानों की आय दो गुनी करने का वादा लेके आयी थी वो आज किसान विरोधी नजर आ रही है। बल्कि न सिर्फ नज़र आ रही है बल्कि सरकार ने घोर किसान विरोधी कानून संसद में पास करवा लिए और कानून पास करवाने के बाद उसका विरोध करने पर उसके फायदे गिनवा रही है। जबकि ये कानून मूल रूप से किसान विरोधी है और दमन कारी भी। इससे केवल कुछ कॉर्पोरटे घरानों को फायदा होगा ऐसा प्रतीत हो रहा है।
हिटलर की इंडस्ट्रियल बुम में बड़ा हिस्सा युद्ध सामग्री का था। वारसा की संधि को ठेंगा दिखाकर हिटलर ने खुलेआम जर्मनी की सेना बढ़ानी शुरू की। बंदूक, टैंक, हवाई जहाज, गोले बारूद, पनडुब्बी, फ्रिगेट, डिस्ट्रॉयर, वॉरशिप.. जर्मनी छह साल में यूरोप की ऐसी ताकत बन गया कि उससे आंखे मिलाने की किसी की हिम्मत न थी। हमारे यहां लैंड हुए 4 रफेल के बदले मोदी सरकार सेना का आकार, पेंशन , वेतन घटाने की जुगत है।
हिटलर की इकॉनमी पांच ही साल में जो नेगेटिव थी, 10% की विकास दर से दौड़ने लगी। बेरोजगारी 30% से लगभग शून्य पर आ चुकी थी। हमारा विकास दर 10% से नेगेटिव में चला गया। बेरोजगारी 3 से 30% हो चुकी। बल्कि नए आकड़े बता रहे हैं कि आज से 45 साल पहले इतनी बड़ी बेरोज़गारी थी। हिटलर के पांच साल में, जर्मनी के घर घर मे, जनता की कार याने वोक्सवैगन खरीदी जा रही थी। हिटलर पहली बार किश्तों में खरीद का फंडा लाया। हमारे यहां किस्तें छाती का बोझ हो चुकी हैं। कारो की बिक्री छह साल में हर साल घट रही है।
हिटलर के हर घर मे जनता का रेडियो,याने वोक्सएम्फेन्निजर रखा था। यहां आपको, अपने डेटा से “मन की बात” सुननी है। हिटलर के देश मे शादी करने वाले को 1000 डॉलर मिलते थे और बच्चा पैदा होने पर 250 डॉलर। पांच बच्चे पैदा करने वाली महिला को ताम्र पदक और आठ से अधिक बच्चों पर स्वर्ण पदक मिलता था। यहां बात बात अधिक जनसँख्या का रोना ऐसा है, जैसे विगत सरकारों के वक्त ये जनसँख्या थी ही नही।
हिटलर जहां जाता, लोग उसके भाषण सुनने के दीवाने थे। इसलिए कि वो जो कहता था, करके दिखाता था। जब उसने युध्द का आव्हान किया, हजार साल तक राएख का वादा किया, तो लोगो मे भरोसा किया। आम जर्मन काम छोड़, बन्दूक लेकर दुनिया जीतने निकल पड़ा। विलियम शीरर लिखते हैं, कि जब जर्मन सिपाही लड़ने को बर्लिन से निकले, तब उनकी फौज की तरह तंदुरुस्त, सुदर्शन, अनुशासित, सुसज्जित, और आत्मविश्वास से भरी सेना पूरे यूरोप में नही थी।
नेता के रूप में उसने जर्मन एथनिक नेशन की किस्मत छह साल में पलटकर रख दी थी। असल मे हिटलर में रशिया पे हमला न किया होता, या जापान ने अचानक यूएस को युध्द में न घसीटा होता, तो शायद हिटलर को दुनिया किसी और तरीके से याद करती। यूरोप एक देश होता और उसका एक डिक्टेटर। मोदी उसके तौर तरीकों को अपनाते हुवे लगते है, मगर उससे ज्यादा वक्त और बेहतर परिस्थितियां पाने के बावजूद, नतीजों में वह हिटलर के आसपास भी नही फटकते।
यहां तक की मोदी की पार्टी जो आरएसएस की छात्र छाया में परवान चढ़ी है, वो हिटलर और नाज़ी पार्टी को अपना आदर्श मानती रही है। हालाँकि मोदी को एक ही कामयाबी मिली है और वो है मुसलमानों के प्रति घिरना/द्वेष /नफरत। हिटलर और उसकी नाज़ी पार्टी भी यहूदियों से घोर नफरत करती थी। यही वजह है कि हिलटर के राष्ट्रवाद के नाम पे लाखों यहूदियों यहां तक की छोटे बच्चों, बूढ़ों को भी मौत के घाट उतार दिया और ऐसा करने पे गर्व महसूस किया। भारत में आरएसएस और उसकी राजनितिक इकाई जिसके मुखिया मोदी हैं , भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करती है और यही वजह है कि मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नफरत फ़ैलाने में कामयाब रही है। लेकिन भाइयो और बहनों, नेवर बिलिव दैट मोदी इज एनी क्लोज टू हिटलर।
ये झूठ है, झूठ है, झूठ है।